चुनाव आया, फिर राम याद आए
चुनाव आया, फिर राम याद आए
फिर राम की शरण में
अब तक भगवान राम ने भाजपा की बहुत मदद की है। भाजपा ने राम मंदिर मुद्दे (Ram Mandir Issue) पर पूरे देश को बांटने में सफलता हासिल की। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा, अपने पीछे खून की एक लंबी और गहरी लकीर छोड़ गई थी।
बाबरी मस्जिद को योजनाबद्ध ढंग से ढहाए जाने के बाद, देश में साम्प्रदायिक हिंसा का एक लंबा दौर चला और धर्म के नाम पर राजनीति का बोलबाला बढ़ा। इस सब से भाजपा की चुनावी ज़मीन मज़बूत हुई।
स्वतंत्रता के बाद से ही राष्ट्रीय स्तर पर यह पार्टी हाशिए पर थी। राम मंदिर आंदोलन की बदौलत वह सन 1996 में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। सन 2014 के चुनाव में उसे बहुमत मिल गया (282 लोकसभा सीटें, 31 प्रतिशत मत)। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का वायदा, पार्टी के एजेंडे में लंबे समय से है।
भाजपा भी जानती है कि विवादित स्थल पर मंदिर बनाना लगभग असंभव है परंतु अगर इस बहाने वह लोगों को लुभा सकती है और उनके वोट पा सकती है तो उसे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती।
वैसे भी, भाजपा का अपने वायदों से मुकरने का लंबा इतिहास है।
क्या देश में ‘अच्छे दिन’ आ गए हैं?
क्या हम सब के खातों में विदेशों में जमा कालाधन पहुंच गया है?
राम मंदिर निर्माण का वायदा, केवल समाज के कुछ वर्गों को भुलावे में रखने का उपक्रम है। यह वायदा, यह जानते हुए किया जा रहा है कि राम मंदिर का मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है और कानूनी दृष्टि से वहां मंदिर बनाना संभव नहीं है।
संघ परिवार जानता है कि कानून का उल्लंघन कर किसी ढांचे को ध्वस्त तो किया जा सकता है परंतु किसी नए ढांचे का निर्माण नहीं किया जा सकता। परंतु इससे कुछ वोट मिलते हैं तो क्या बुरा है।
आश्चर्य नहीं कि उत्तरप्रदेश के चुनाव नज़दीक आते ही भाजपा ने राम मंदिर का नारा फिर से बुलंद करना शुरू कर दिया है।
इसी माह (अक्टूबर 2016) लखनऊ में दशहरे के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जय श्रीराम का उद्घोष किया।
दशहरे के कुछ दिन बाद, एक बिजली संयंत्र के उद्घाटन के कार्यक्रम में मोदी का इसी नारे से स्वागत किया गया। यह वही नारा है जिसे संघ परिवार के सदस्य, राम मंदिर आंदोलन के दौरान लगाते थे।
इसी आंदोलन के नतीजे में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी। यह नारा हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया है।
भाजपा ने यह भी घोषित किया कि अयोध्या में ‘राम संग्रहालय’ बनाया जाएगा। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार भी इस दौड़ में शामिल हो गई और उसने रामलीला थीम पार्क बनाने की घोषणा कर डाली।
राम मंदिर, भाजपा का ट्रेड मार्क है परंतु भाजपा को इससे चुनावों में जो लाभ हुआ है, उसे देखते हुए अन्य पार्टियां भी उसकी ओर आकर्षित हो रही हैं।
कांग्रेस के राहुल गांधी ने अपनी किसान यात्रा के दौरान अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर में माथा टेका।
भाजपा के विनय कटियार, जो उस दल का हिस्सा थे जिसने 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराया था, भी चुप नहीं रहे। उन्होंने कहा कि संग्रहालय और थीम पार्क से काम नहीं चलेगा। ये तो मात्र लॉलीपॉप हैं। असली चीज़ है मंदिर का निर्माण।
आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत बार-बार यह घोषणा करते आ रहे हैं कि मंदिर उनके जीवनकाल में बनेगा।
संघ परिवार के कुछ अन्य सदस्य यह कह रहे हैं कि वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल में राम मंदिर बन कर रहेगा। इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, बाबरी मस्जिद की ज़मीन को तीन भागों में विभाजित किया जाना है। एक-तिहाई हिस्सा बाबरी मस्जिद एक्षन कमेटी को मिलेगा, एक-तिहाई, रामशिला न्यास को और बचा हुआ एक-तिहाई रामलला को।
उच्च न्यायालय ने लोगों की आस्था को अपने निर्णय का आधार बनाया।
शायद दुनिया में बहुत कम न्यायालयों ने कानून और तर्क की बजाए आस्था के आधार पर निर्णय सुनाए होंगे।
न्यायालय, आस्था और इतिहास में भी भेद नहीं कर सका।
दक्षिण एशिया के इस हिस्से में राम एक बहुत शक्तिशाली सांस्कृतिक, धार्मिक और मिथकीय हस्ती हैं। रामसेतु मुद्दे पर न्यायालय में दिए अपने शपथपत्र में यूपीए सरकार ने कहा था कि भगवान राम एक मिथकीय व्यक्तित्व हैं। इसकी आरएसएस ने कड़ी आलोचना की थी।
शायद संघ यह भूल गया था कि इतिहास और पौराणिकता अलग-अलग हैं।
भगवान राम निश्चित तौर पर एक सांस्कृतिक, पौराणिक और धार्मिक व्यक्तित्व हैं, परंतु यह कहना कि वे ऐतिहासिक शख्सियत भी हैं गलत होगा।
सांप्रदायिक राजनीति के उभार के साथ, राम को एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। सांप्रदायिक तत्व बाबरी मस्जिद की ज़मीन पर यह कहकर कब्ज़ा करना चाहते हैं कि यह वह स्थान है जहां राम जन्मे थे।
हम सब को याद है कि केरल के डॉ. एम.एम. बशीर, जो रामायण के विख्यात अध्येता हैं, को केरल के एक अखबार में रामायण पर अपना नियमित कॉलम इसलिए बंद करना पड़ा था क्योंकि वे मुसलमान थे। इसी तरह, प्रसिद्ध कलाकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी को अपने गांव में रामायण के एक चरित्र मारीच की भूमिका अदा करने से रोका गया था। उनके गांव की रामलीला में वे इस भूमिका को अदा करना चाहते थे परंतु उन्हें यह कहकर रोक दिया गया कि वे मुसलमान हैं।
भगवान राम का सांप्रदायिकीकरण अत्यंत दुःखद है।
पिछले कुछ वर्षों से भाजपा लगातार सांप्रदायिक राजनीति कर प्रजातांत्रिक मूल्यों पर हमला करती आ रही है। इसके कारण ही भारतीय राजनीति, धर्म-आधारित बनती जा रही है और यही कारण है कि राहुल गांधी को अपने राजनीतिक अभियान के दौरान अयोध्या के एक मंदिर में जाना पड़ा।
यही कारण है कि समाजवादी पार्टी, रामलीला थीम पार्क जैसी योजनाएं ला रही है और उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा पर रोक नहीं लगा रही है।
मुज़फ्फरनगर हिंसा (2013) के समय से ही समाजवादी पार्टी की भूमिका संदेहास्पद रही है, जिसके कारण भाजपा को उसके एजेंडे को लागू करने में मदद मिल रही है।
भाजपा का गणित यह है कि छोटे स्तर पर सांप्रदायिक हिंसा जारी रहने से उसे हिन्दुओं के वोट मिलेंगे। समाजवादी पार्टी यह सोचती है कि इस हिंसा से मुसलमान स्वयं को असुरक्षित महसूस करेंगे और उसकी शरण में आ जाएंगे।
भाजपा चुनावों में और कई भावनात्मक मुद्दे उभारने के लिए तैयार है। उसने सेना की सर्जिकल स्ट्राईक को भी एक मुद्दा बना लिया है। उसका दावा है कि भारत सरकार ने पहली बार ऐसी शौर्यपूर्ण कार्यवाही की है और यह भी कि यह मोदी के प्रेरणास्पद नेतृत्व और आरएसएस के प्रशिक्षण के कारण संभव हो सका।
मीडिया का एक हिस्सा इस मुद्दे पर अपनी छाती ठोक रहा है।
प्रश्न यह है कि क्या हमारे देश की राजनीति और विमर्श इस तरह के भावनात्मक मुद्दों के आसपास ही घूमते रहेंगे या हम गरीबी, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं का अभाव आदि जैसे मूल मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
-राम पुनियानी
(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)


