शिक्षा के मुद्दों (Education issues) को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सक्रिय आर.टी.ई.फोरम (RTE Forum) की ओर से ए.एन. सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान, पटना (A. N. Sinha Institute of Social Studies, Patna) के सभागार में स्टॉकटेकिंग सम्मेलन (StockTaking Conference) का आयोजन किया गया.

सम्मेलन में देश के विभिन्न राज्यों एवं बिहार के 20 जिलों के अलग – अलग इलाकों से आये बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षक एवं छात्र संघ के प्रतिनिधियों और विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों ने एक स्वर से बिहार में शिक्षा का अधिकार कानून – 2009 के धीमे क्रियान्वयन, सरकारी बजट में शिक्षा पर कम खर्च, विद्यालय प्रबंध समिति की अप्रभावी भूमिका, शिक्षा के मसले पर सामुदायिक भागीदारी की अनदेखी, स्कूली बच्चों, खासकर लड़कियों की सुरक्षा एवं प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की अनुपलब्धता और सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के सशक्तिकरण के अभाव पर गंभीर चिंता जाहिर की.

वक्ताओं में देश और खासकर बिहार में शिक्षा की दिनोंदिन दयनीय होती व्यवस्था को लेकर भारी निराशा थी. उनमें इस बात को लेकर आम सहमति थी कि सार्वजानिक शिक्षा को मजबूत बनाये बगैर समानता पर आधारित एक विकसित समाज का सपना साकार करना संभव नहीं है. उनका मानना था कि शिक्षा के व्यावसायीकरण की तेज रफ़्तार से असमानता की खाई पटने के बजाय और चौड़ी ही होती जायेगी. असमानता की यह चौड़ी खाई देश और समाज के विकास में गंभीर अड़चन पैदा करेगी और विभिन्न किस्म की विकृतियों को जन्म देगी.

उनका पुरजोर मानना था कि शिक्षा को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और राजनेताओं के बीच एक किस्म की अघोषित एकता दिखायी देती है और शिक्षा का मुद्दा राजनीतिक विमर्शों में सिरे से गायब है. उनकी यह स्पष्ट राय थी कि राजनीतिक दलों और राजनेताओं की चिंताओं में शिक्षा को शामिल कराये बिना और कोई विकल्प नहीं है. और इसके लिए आगामी आम चुनावों में शिक्षा को एक मुख्य राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए चलाये जा रहे देशव्यापी अभियान को मजबूती देने के लिए बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षक एवं छात्रों को कंधे से कंधा मिलाकर जुटना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक राजनीतिक दल अपने एजेंडे में शिक्षा के मसले को सबसे ऊपर स्थान दे.

वक्ताओं ने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि आज़ादी के 70 सालों के बाद भी एक देश के तौर पर हम शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत राशि नहीं खर्च कर पाये हैं. जबकि कोठारी आयोग ने 1966 में ही इसकी सिफारिश की थी.

इस सम्मेलन में वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य मे शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष को तेज करने के लिए आर.टी.ई.फोरम समेत नागरिक समूहों की भावी भूमिका और हस्तक्षेपों के स्वरूप पर भी विस्तार से विचार से विमर्श किया गया.

सम्मेलन को अन्य लोगों के अलावा आर.टी.ई.फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष एवं बिहार विधान परिषद के सदस्य केदारनाथ पाण्डेय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के डॉ. संजीव राय, बिहार पीयूसीएल की अध्यक्ष एवं पटना विश्वविद्यालय की प्रो. डेज़ी नारायण, बिहार अनुसूचित आयोग के पूर्व अध्यक्ष विद्यानंद विकल, ऑक्सफेम इंडिया की क्षेत्रीय प्रबंधक सुश्री रंजना दास, बिहार बाल आवाज़ मंच के प्रांतीय संयोजक राजीव रंजन, वरिष्ठ पत्रकार हेमंत कुमार, पत्रकार एवं रंगकर्मी निवेदिता शकील, बिहार विकलांग अधिकार मंच के राकेश कुमार, बिहार इक्वल एजुकेशन इनिशिएटिव के राकेश रजक, एक्शन ऐड के पंकज श्वेताभ और गुजरात माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमिटी के संयोजक मुजाहिद नफीस ने संबोधित किया.

सम्मेलन का संचालन डॉ. अनिल कुमार राय ने और धन्यवाद ज्ञापन शत्रुघ्न पंडित ने किया.

आर.टी.ई.फोरम विभिन्न प्रांतों में हर वर्ष शिक्षा का अधिकार कानून – 2009 की स्थिति व परिस्थिति के आकलन के लिए स्टॉकटेकिंग सम्मेलन का आयोजन करता है. इसी क्रम में, फोरम ने इस वर्ष भी बिहार में स्टॉकटेकिंग सम्मेलन का आयोजन किया.