चोटी कटवा, मुंहनोचवा जैसी खबर फैलने का सच
चोटी कटवा, मुंहनोचवा जैसी खबर फैलने का सच
चोटी कटवा भूत की खबर से पहले मुंहनोचवा जैसी खबरें भी मीडिया की सुर्खियां बटोर चुकी हैं. ऐसी खबरें जब गांव - गांव के कोने तक पहुंच जाती है तो मीडिया की रफ्तार समझ में आती है. परंतु जब ऐसी खबरों पर चर्चा मजदूर-किसान और चारदीवारी में रह रही औरतें करने लगती हैं तो पता चलता है कि मीडिया कितना प्रभावशाली है. लेकिन ऐसी खबरों की सच्चाई से ना तो हमारा गंवई वर्ग वाकिफ रहता है और ना ही हमारा मीडिया. फिर भी हमारा मीडिया इसको छापने और दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है. परंतु यह सवाल अभी भी एक मुकम्मल जवाब खोज रहा है कि ये चोटी कटवा, मुंहनोचवा खबर का सच क्या है?
मां ने कहा- तू भी गलत खबर लिखता है!-
बेटा पत्रकार है तो फिर मां अपनी शंका दूर करने के लिए किसी और से सवाल क्यूं करे. माँ का फोन आया और वह पूछने लगी कि 'बेटा चोटी कटवा भूत सही में आ गया है क्या?' मैं अब क्या कहूं, बोल दिया मां यह सब गलत है पता नहीं वास्तविकता क्या है? तो फिर मां बोली कि 'तो फिर तू भी गलत-सलत खबरें लिखता है क्या?' मैं चुप हो गया और भला मैं क्या कहता? भूत होता है कि नहीं मुझे नहीं पता. और बिना तथ्य के कहने की अनुमति पत्रकारिता नहीं देता है. इसलिए मां को बोला कि खाना खाकर सो जाइए. पर मन में एक सवाल उठने लगा कि आखिर मेरी मां के पास किसान आत्महत्या, भ्रष्टाचार, जन आंदोलन आदि खबर नहीं जाती है पर भूतहा खबर कैसे पहुंच जाती है?
मैजिक बुलेट थ्योरी का कमाल-
पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान हमें मैजिक बुलेट थ्योरी पढ़ाया गया था जो कि रिसीवर (दर्शक) पर बिल्कुल किसी गोली की तरह जा कर लगती है और असरदार भी होती है. लेकिन यह थ्योरी भूतहा, अफवाह या बिजनेस वाली खबरों के लिए ही क्यों सिद्धदायक है बाकी मुद्दों जैसे कि जन आंदोलन, जन जागरूकता, किसान आत्महत्या, खेतीबाड़ी जैसे विषयों के लिए क्यों नहीं? जबकि इन मुद्दों के लिए तथ्य हैं जो कि स्टोरी में जान डाल देते हैं फिर भी ये सब किसी लावारिस लाश की तरह पड़े हुए हैं.
क्या है भूतहा खबर की सच्चाई
इन खबरों में लोगों की दिलचस्पी है यह कहना अनुचित नहीं है. ऐसी खबरों को दिखाना भी गलत नहीं है. पर इस तरह की खबरों को जागरूकता के आधार पर दिखाया जाना चाहिए ना कि लोगों में अंधविश्वास और भय पैदा करने के लिए. लोगों को भी यह सोचना चाहिए कि आज के जमाने में भूत नहीं बल्कि जान से मारने वाले और धमकाने वाले आतंकवादी और अपराधी होते हैं तो फिर ऐसी खबरों पर ध्यान क्यों देना. मीडिया तो सिद्धांतों को झोंककर अपनी रोटी सेंक रहा है मगर हम क्यों उनकी रोटी में मक्खन लगाने का काम कर रहे हैं. ऐसी खबरों को नजरअंदाज करने से ही तो जनवादी मुद्दे पर मीडिया काम करेगी. मनोरंजन करना है या भूत देखना है तो राम गोपाल वर्मा की फिल्म देखिये, मजा भी आएगा और टेंशन भी नहीं होगा.


