छत्तीसगढ़ : आदिवासियों के विरोध से भाजपा संकट में
छत्तीसगढ़ : आदिवासियों के विरोध से भाजपा संकट में
छत्तीसगढ़ का राजनैतिक समीकरण बदल सकता है बस्तर
अंबरीश कुमार
दंतेवाड़ा /बीजापुर। बस्तर का यह अंचल छतीसगढ़ का राजनैतिक समीकरण बदल सकता है। छतीसगढ़ विधानसभा चुनाव में इस बार भारतीय जनता पार्टी की रमन सिंह सरकार बस्तर के बदलते माहौल को लेकर संकट में है। बस्तर के सात जिलों की बारह सीटों पर इस बार भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। समूचे बस्तर में केंद्रीय बलों ने जिस तरह का दबाव बना दिया है उससे सत्तारूढ़ दल को ज्यादा दिक्कत हो रही है क्योंकि माओवादियों का डर दिखा कर पिछली बार की तरह इस बार के विधानसभा चुनाव में फर्जी मतदान की सम्भावना भी नहीं है।
कांग्रेस के आदिवासियों को मुफ्त चावल देने का एलान कर चाउर वाले बाबा यानी रमन सिंह की चावल राजनीति को भी ध्वस्त कर दिया है। बस्तर में पिछले चार दिन से जमकर बरसात हो रही है इसलिए चुनाव प्रचार में हेलीकॉप्टर भी नहीं चल पा रहे हैं। पर दूर दराज के इलाकों में कांग्रेस अपने नए नारे 'चल संगी चल हल्ला बोल’ के साथ बढ़ती नजर आ रही है। यहाँ के जंगलों के बीच से गुजरती सड़क के किनारे सिर्फ कांग्रेस के बड़े-बड़े पोस्टर और होर्डिंग नजर आते है। नए-नए नारों और वायदों के साथ कांग्रेसी नेताओं की शहादत भी याद दिलाते हैं। पर यहाँ न मोदी है न आडवाणी। न ही आदिवासी उन्हें जानते हैं। पर वे नेहरू, इंदिरा से लेकर राहुल गांधी को जरूर जानते हैं इसलिए इंदिरा गांधी यहाँ कांग्रेस की होर्डिंग्स में जरूर नजर आती हैं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हों या भाजपा के शीर्ष नेता आडवाणी, कहीं उनका कोई फ़ोटो किसी होर्डिंग या पोस्टर पर नजर नहीं आता। बस्तर के दूर दराज इलाकों में भाजपा की यह अनुपस्थिति हैरान जरूर करती है। दंतेवाड़ा से लेकर बीजापुर तक लोगों से बातचीत से यह साफ़ हो गया कि कांग्रेस आक्रामक तेवर में चुनाव लड़ रही है तो भाजपा कई वजहों से बचाव की मुद्रा में है। कई राज्यों में चुनाव सर्वेक्षण में लगी एजंसी इलेक्ट लाइन के सीईओ विजय शुक्ल के मुताबिक कई वजहों से भाजपा का संकट बढ़ा जिसमें बागी उम्मीदवार तो वोट ही काट ही रहे हैं साथ ही आदिवासियों और पिछड़ों का संयुक्त मोर्चा भाजपा को नुकसान पहुँचा रहा है।
दंतेवाड़ा के आगे एक जगह माओवादियों की मौजूदगी का संकेत और संदेश दोनों मिला। एक पोस्टर पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की तरफ से जारी पोस्टर में लिखा था -छतीसगढ़ विधानसभा के झूठे चुनाव का बायकाट करो! गांव-गांव में क्रांतिकारी जनसत्ता का निर्माण ही एकमात्र विकल्प है। वोटों से नहीं संघर्ष से बदलो जिंदगी।
पर इस बार के चुनाव में माओवादियों की ज्यादा चलने की सम्भावना बहुत कम नजर आती है। बीते रविवार को रायपुर से लेकर दंतेवाड़ा तक समूचे राजमार्ग की नाकेबंदी कर दी गयी और हर फर्लांग पर केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान गश्त करते नजर आये। ऐसी व्यवस्था पहले के चुनाव में नहीं थी और जिला प्रशासन की शह का फायदा सत्तरूढ़ दल ज्यादा उठाता था। इस वजह से भी भाजपा का नुकसान होगा। बस्तर में बहुत सी सीटें भाजपा ने कम अंतराल से जीती थी जिन पर ज्यादा खतरा मंडरा रहा है।
बस्तर क्षेत्र में कुल बारह सीटें हैं जिनमें से ग्यारह पर भाजपा है। पर इस बार आदिवासी, दलित पिछड़ा आदि का संयुक्त मोर्चा बस्तर की तीन सीटों पर मुकाबले को तिकोना बना चुका है। बस्तर में भाकपा के राज्य सचिव डीपीएस राव का दावा है कि वामपंथी असर वाली दो तीन सीट भाकपा या संयुक्त मोर्चा जीत सकता है जिसमे कोंटा, चित्रकोट और
जगदलपुर शामिल है। राव ने साफ़ कहा- बस्तर में भाजपा को बड़ा झटका लगने जा रहा है। उसकी सीटें आधी से भी कम होती नजर आ रही हैं। इस वजह से छतीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनना अब आसान नहीं है। बस्तर के चित्रकोट में कुछ आदिवासी गांव का दौरा करने पर पता चला कि इस बार पिछड़े, दलित और आदिवासी भाजपा ज्यादा मुखर है। ऐसे में भाजपा शहरी मध्य वर्ग या अगड़ी जातियों के भरोसे ज्यादा है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान संयुक्त मोर्चा पहुँचा रहा है जिसमें भाकपा, माकपा, जनता दल (यू), छतीसगढ़ स्वाभिमान मंच, छतीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी आदि शामिल है। यह मोर्चा भाजपा का ही वोट काट रहा है जिससे कांग्रेस को फायदा हो रहा है। दूसरे जिस तरह मायावती ने शशांक शेखर सिंह को आगे बढ़ाया था उसी तरह मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किन्ही अमन सिंह को प्रदेश का सबसे बड़ा अफसर बनाकर नौकरशाही को नाराज कर दिया है। अमन सिंह इस बार मुद्दा बनते जा रहे है खासकर धन को लेकर। पहले रमन सिंह की छवि एक सौम्य और ईमानदार नेता की थी जो अब ध्वस्त हो गयी है। उन पर जातिवाद से लेकर संपति बनाने का आरोप उनकी पार्टी के नेता लगा रहे हैं। अटल विहारी वाजपेयी की भतीजी और पूर्व सांसद करुणा शुक्ल तो ऐसे ही आरोपों को लेकर पार्टी छोड़ चुकी हैं। अब तक करीब अठारह बागी उम्मीदवार भाजपा के सामने आ चुके हैं और अंतिम समय में इनकी संख्या बढ़ कर चालीस हो सकती है।
बस्तर में अंतागढ़ में भाजपा के जिलामंत्री भोजराज नाग बागी बन गये हैं। इसी तरह भानुप्रतापपुर में ब्रह्मानंद नेताम, चित्रकोट में लच्छू राम कश्यप आदि ऐसे बागी है जो पार्टी के लिये संकट बने हुये हैं। गुटबाजी कांग्रेस में भी है पर अजित जोगी के समर्थन की वजह से कांग्रेस की स्थिति बेहतर होती जा रही है। आदिवासी समाज जोगी का समर्थन करता नजर आ रहा है।


