वर्ष 2005 से अब तक लोगों की मौत में आठ गुनी वृद्धि

नई दिल्ली, 7 अक्टूबर। ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। फिर भी, विरोध और चेतावनी के बावजूद प्रस्तावित लेमरु हाथी रिजर्व को अधिसूचित करने या इस समस्या के प्रबंधन के लिये कोई ठोस कदम उठाने की बजाय ऐसा लगता है कि राज्य सरकार जंगलों में खनन के लिये अधिक उत्सुक है।

रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ी है। ओडिशा और झारखंड में जंगलों की अंधा-धुंध कटाई की वजह से 80 के दशक में हाथियों ने राज्य के जंगलों की तरफ पलायन करना शुरू किया था। इसके परिणामस्वरुप मानव-हाथी संघर्ष बढ़ने से मानव मौत, जानवर और संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। हाथियों के हमले से मरने वाले लोगों की संख्या में आठ गुनी वृद्धि हुई है। साल 2005 के बाद 25 लोगों की औसत मृत्यु प्रति साल दर्ज की गयी है।

रिपोर्ट “एलिफेंट इन द रूम”(1) में छत्तीसगढ़ के चार वन प्रभागों दक्षिण सरगुजा, कटघोरा, कोरबा और धर्मजयगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष के बारे में अध्ययन किया गया है। इन चार वन प्रभागों में दो कोयला क्षेत्र हसदेव अरंद और मंडरायगढ़ स्थित है। यह रिपोर्ट इन चार वन प्रभागों में, जहाँ कोयले की खदानें प्रस्तावित हैं, मौजूदा मुद्दों पर गहराई से नजर डालता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2005 से 2013 के बीच छत्तीसगढ़ में 14 हाथियों की बिजली के झटके से मौत हुई। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 198 मानव मौत हुई। राज्य में 2004 से 2014 के बीच 8, 657 घटनाएँ संपत्ति नुकसान और 99,152 घटनाएँ फसल नुकसान की दर्ज की गयी। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 2,140.20 लाख मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया।

संयोग से, अध्ययन क्षेत्र में स्थित अधिकांश कोयला ब्लॉक में हाथियों की उपस्थिति दर्ज की गयी है, जिसे सरकार ने खनन के लिये पहचान किया है। इन वन प्रभागों में पहले से ही राज्य की औसत 30 प्रतिशत मानव मौत और फसल नुकसान की घटनाएँ होती हैं। इसलिए, यहां के जंगलों के खनन में बदलने से मानव-हाथी संघर्ष में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

ग्रीनपीस के कैंपेनर और इस रिपोर्ट के लेखक, नंदीकेश शिवलिंगम ने कहा, “इन वन प्रभागों में हाथियों की मौजूदगी के स्पष्ट सबूत और कोरबा तथा धर्मजयगढ़ के जंगलों को बचाने के लिये विशेष संस्थाई निकायों की सलाह के बावजूद सरकार संभवतः खनन हितों के लिये प्रस्तावित लेमरु हाथी रिजर्व के प्रस्ताव से पीछे हट गयी है। यह जंगल न सिर्फ हाथियों के लिए बल्कि भालू, तेंदुओं और संभवतः बाघों के लिए भी घर है। यह विडंबना है कि केंद्र से लेमरू के लिए 2007 में हरी झंडी मिलने के बावजूद, राज्य सरकार ने इसे रद्द कर दिया।“

इस विडंबना की और इशारा करते हुए गोल्डमैन इनवॉयरमेंट पुरस्कार के विजेता कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल कहते हैं, “राज्य द्वारा इन जंगलों से दूर हाथियो के लिये सुरक्षित क्षेत्र का प्रस्ताव स्पष्ट रूप से इस समस्या का कोई हल नहीं है। हाथियों ने छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहना और प्रजनन करना शुरू कर दिया है। राज्य को उथले समाधान सुझाने बंद कर देने चाहिए जो असल समस्या को हल नहीं करते। इससे राज्य के लोगों और हाथियों की जिन्दगी का नुकसान हो ही रहा है, साथ ही लोगों को पैसे की क्षति भी हो रही है। इसलिए राज्य के लोगों और वन-जीवन की सुरक्षा के लिए एक सक्षम रणनीति की जरूरत है।“

पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए 214 कोल ब्लॉक के आवंटन को अवैध घोषित कर दिया था। हाल के फैसले से भारतीय जंगलों को बचाने का प्रयास कर रहे कार्यकर्ताओं में खुशी है। शिवलिंगम ने कहा, “सरकार को गलत को सही करने का एक और अवसर मिला है। अब हम लोग केन्द्र और राज्य सरकार से मांग करते हैं कि वो जंगल क्षेत्र के भीतर स्थित ब्लॉक की नीलामी से बचे और एक स्वतंत्र समिति का गठन करे जो राज्य में हाथियों की गतिविधियों का अध्ययन करके उनके प्रवासी मार्ग और मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिये आवश्यक सुझाव दे”।

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