विद्या भूषण रावत

नई दिल्ली, 16 जनवरी। जज लोया की मौत के कारणों पर चर्चा करने के लिए बुलाये गए आल इंडिया पीपल'स फोरम के सम्मेल्लन में कल दिल्ली में हमारी उम्मीद से कई ज्यादा लोगों की उपस्थिति ने साबित किया कि आज के हालत पर लोग अब बेहद चिंतित हैं और हर ऐसे आन्दोलन से जुड़ेंगे जो उनके कॉमन कंसर्न के बारे में बात रखेगा।

ऐसा नहीं था कि यह पहला बड़ा सम्मलेन था। हकीकत यह है कि हम लोगों ने इससे बहुत बड़े सम्मेलन देखे और किये हैं, लेकिन एक ही अंतर होता था कि मीडिया उन बड़े सम्मेलनों, सभाओं और आन्दोलनों को नज़रन्दाज कर देता था। लेकिन आज लोगों के वहां आने से ही पहले चैनलों के कैमरा अपनी जगह बना चुके थे। पैनालिस्ट्स के सामने ही बड़े बड़े कैमरों की अभेद्य दीवार बन चुकी थी और कुर्सियों पर बैठे लोगों के लिए पैनल की ओर देखना मुश्किल हो रहा था।

अब तो मोबाइल से भी लाइव दिखाया जा रहा है इसलिए पत्रकारिता बिरादरी बढ़ रही है। लेकिन हमें इस बात का पता था कि आज भीड़ ज्यादा होगी। वैसे आल इंडिया पीपल'स फोरम का यह कार्यक्रम दो महीने से प्लान हो रहा था और किन्ही कारणों वश नहीं हो पा रहा था, लेकिन जब इसको जनवरी में करवाने की बात आई तो वो केवल इसलिए कि दिसंबर में गुजरात के चुनाव और अन्य कई कारण थे।

चार दिन पूर्व ही सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायधिशो ने जो कहा उसके बाद इस मुद्दे की महत्ता बढ़ गयी, लेकिन हकीकत यह कि पूरा मीडिया जज लोया से ज्यादा सुप्रीम कोर्ट के बारे में ज्यादा बहस करना चाहता था। हमें पता था कि मडिया के लोग ज्यादा से ज्यादा बाइट लेंगे ताकि समय आने पर हमारी कमियों को ढूंढ कर उन पर अपने चैनलों में गर्म चर्चा कर सकें।

इस कार्यक्रम में हमने उन लोगों को सीधे सुना जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर जज लोया के मामले को मुद्दा बनाया। कारवां पत्रिका के जानदार पत्रकार निरंजन टाकले का विस्तृत विवरण दर्शाता है के ये कार्य कितना जटिल और खतरनाक था। उन्होंने इस कार्य को लेकर जितनी मेहनत की, ताकि सत्य की तह तक पहुंचा जा सके। एक पत्रकार का काम होता है निर्भय होकर अपनी बात को रखना और शायद टाकले ने अपना करियर दांव पर रखकर ये कार्य किया।

जिस समय टाकले ये कार्य कर रहे थे उनके पास कोई स्पेसिफिक नौकरी नहीं थी। उन्होंने वीक जैसी पत्रिका में भी कार्य किया है और कांग्रेस के कारनामों का भी पर्दाफाश किया है, लेकिन आज उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि गुजरात के चुनावों को प्रभावित करने के लिए उन्होंने यह स्टोरी लिखी।


style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268″
data-ad-slot="8763864077″>

टाकले कहते हैं कि अक्टूबर नवम्बर 2016 से उन्हें इस बात का पता चला था और वह अपनी स्टोरी पर काम कर रहे थे। पूरी जांच रिपोर्ट उन्होंने फरवरी 2017 में पूरी कर ली थी। अब सवाल यह था कि इसे छापे कौन।

आज के दौर में महत्वपूर्ण ये नहीं कि आप क्या लिखते हैं या आपने क्या लिखा, लेकिन आपके लेखन को छाप कौन रहा है। टाकले इन कई पत्र-पत्रिकाओं को ये कहानी भेजी लेकिन किसी ने भी उसे छापने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। शायद इस लिए कि कहानी में एक मज़बूत खलनायक है और राजनैतिक ताकत की वजह से उस कहानी को पूर्णतः किल करने की कोशिश की गयी। वैसे भी न्यूज़ की एक वैल्यू होती है और वह है उसका टाइमिंग। अगर किसी स्टोरी को छपने में बहुत समय लग जाता है तो महत्ता और उससे अधिक उसके साथ जुडा न्याय का मामला है वो टल जाता है।

अन्ततः दोस्तों के सहयोग से, टाकले कारवां पत्रिका के संपर्क में आये और कारवां पत्रिका ने उस पर और कार्य कर विशेषकर कानूनी पक्ष को जाँच पड़ताल कर वो कहानी विस्तार पूर्वक छापी।

Amit Shah must ask the Supreme Court and seek an impartial probe into the death of judge Loya - Caravan editor Hartosh Bal

कारवां पत्रिका के सम्पादक हरतोष सिंह बल ने कहा कि आज के दौर में मीडिया अपना रास्ता खो चुका है। इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण खबर को वो दबाने की कोशिश कर रहा है और उसमे अपने जीवन भर के पूरी इज्जत को मटिया मेट कर रहा है। उन्होंने कहा कि किस तरह से इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट को बिना देखे जांचे कारवां की स्टोरी को गलत साबित करने की कोशिश की।

हरतोष कहते हैं कि आज के मीडिया के हालत बहुत भयानक हैं। आज अमित शाह कटघरे में है और उन्हें तो स्वयं सुप्रीम कोर्ट में जाकर एक निष्पक्ष जांच की मांग करनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।


style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268″
data-ad-slot="8763864077″>

जज लोया ने ईमानदारी को चुनकर मौत को गले लगाया- उदय गरवारे (लातूर बार एसोसिएशन)

लातूर बार एसोसिएशन के उदय गरवारे ने जज लोया के विषय में अपने व्यक्तिगत संस्मरण सुनाये।

उदय और जज लोया मित्र थे। उनका कहना था कि जज लोया बहुत ईमानदार थे और ये लातूर बार में सबको पता था। आज पूरी बार में ये खबर भी साफ़ है कि जज लोया की हत्या की गयी है।

उदय गार्वारे का साफ़ कहना था कि जज लोया ने ईमानदारी को चुनकर मौत को गले लगाया। उनको पैसा ऑफर किया गया था और उन पर बहुत बड़ा राजनीतिक दवाब था।

उदय गरवारे ने ये भी कहा कि जज लोया के बाद जो नए जज आये उन्होंने सोहराबुद्दीन case में सी बी आई की 10 हज़ार पेज की चार्ज-शीट पर तुरंत ही निर्णय देकर सभी को रिहा कर दिया। क्या दस हज़ार पेज की चार्ज-शीट पढ़ने के लिए समय नहीं चाहिए होता है?

उदय आगे कहते हैं कि लोया, महेश्वरी समाज के थे जो लातूर में बहुत कम हैं और इसके लिए राजनैतिक तौर पर इस प्रश्न को बहुत मजबूती से नहीं उठा सकता इसलिए बार और अन्य लोग उनके साथ न्याय के प्रश्न को उठा रहे हैं।


style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268″
data-ad-slot="8763864077″>

Justice Kolse Patil spoke from heart and brahmanical prejudices in judiciary. Wonderful to hear him standing wholeheartedly with those fighting for justice to judge Loya.

बम्बई हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी जी कोलसे पाटिल ने कहा के जज लोया को अपनी नौकरी खो देने का भी खतरा था।

जस्टिस बी जी कोलसे पाटिल ने कहा कि उनको खुद कई मामलों में धमकी मिल चुकी है लेकिन अब आवश्यकता है कि लोग एक हों और मरने के लिए भी तैयार रहें। जज लोया का मामला बहुत गंभीर है और सुप्रीम कोर्ट को इस पर कार्यवाही करनी चाहिए।

उन्होंने चार जजों द्वारा चीफ जस्टिस मिश्र के खिलाफ की प्रेस कांफ्रेंस को उचित ठहराया और इसे न्याय पालिका का स्वर्णिम अवसर बताया।

जस्टिस बी जी कोलसे पाटिल का कहना था कि उन्हें इन चार माननीय जजों पर गर्व है क्योंकि उन्होंने न्यायपालिका को गर्त में जाने से बचाया।

कोलसे पाटिल ने आगे कहा कि न्यायपालिका में जातीय पूर्वाग्रहों के कारण बहुजन समाज और उनके लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा है और इस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। इसके अलावा हमारे सामाजिक आन्दोलन बंद नहीं होने चाहिए।

जस्टिस पाटिल ने आज के राजनैतिक हालात और मीडिया की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने खुल कर कहा कि बीजेपी के अध्यक्ष श्री अमित शाह को स्वयं सुप्रीम कोर्ट जाकर एक निष्पक्ष जांच की बात करनी चाहिए ताकि उन पर जो आरोप लग रहे हैं वे हट सकें क्योंकि ये उनके लिए राजनैतिक तौर पर भी जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट के मसले पर उन्होंने कहा कि इस पर राजनैतिक नेताओं के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है क्योंकि राजनेता कैपेबल नहीं है और ये न्यायपालिका का अंदरूनी मामला है जिसे वे आपसी बातचीत से निपटा लेंगे।

When judges spoke to the media hence this was moment of history and nothing more - Indira Jai Singh

सुप्रीम कोर्ट की सीनियर अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने कहा के कोर्ट के अन्दर हुए घटनाक्रम से वो चार न्यायाधीशों का शुक्रिया करेंगी क्योंकि ये ऐतिहासिक अवसर था जब जजों ने न्यायपालिका के सिस्टम को ही चुनौती दी है। उनका कहना था कि इस मामले में न्यापालिका, बार एसोसिएशन आदि मिलकर सुलझा लेंगी।

We must get out of our fear - On behalf of All India People's Forum vetaran editor Dr John Dayal speaking as why media ignored this story.

आल इंडिया पीपल'स फोरम की और से प्रख्यात पत्रकार डॉ जॉन दयाल ने याद दिलाया कि मीडिया इस प्रकार की बातो को ज्यादा बेहतरी से उठा सकता है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि हम लोग ऐसे सम्मेलन आगे भी करते रहेंगे क्योंकि ये फोरम किसी पार्टी से सम्बंधित नहीं हैं और इसमें वे सब लोग हैं जो मानवाधिकारों के लिए समर्पित हैं, जो सामाजिक जीवन में कार्य कर रहे हैं या जन पक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं और हम सभी की मजबूती के लिए कार्य कर रहे हैं, ताकि देश तोड़ने वाली शक्तियां कामयाब न हों।

शाम को भक्तों के हैश टैग देखकर पता चल चुका था कि वे कितने आहात हैं। क्योंकि लोया के बेटे ने 'प्रेस कांफ्रेंस' करके कह दिया कि उनको चैन से रहने दो, उनको किसी पर शक नहीं है, इसलिए इस पर अब आगे चर्चा नहीं होनी चाहिए। और फिर गाली देने का सिलसिला शुरू हुआ।

खतरा बड़ा है, मीडिया पर बहुत दवाब है

चैनलों ने अब गाली को हमारे राजनीतिक डिस्कोर्स का हिस्सा बना दिया है, जहां संबित पात्रा जैसे सड़कछाप भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोगों को महिमंडित करके दूसरों को गरियाने का पूरा अवसर मिलता हो और अगर वो कही चूक जाएँ तो भाड़े की बकैती करने वाले उसे पूरा करें तो ऐसे मीडिया से क्या उम्मीद करनी।


style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268″
data-ad-slot="8763864077″>

मैंने कोशिश की कि सभी चैनल्स और न्यूज़ साईट देखने की, लेकिन मुझे कोई स्टोरी मुख्या समाचारों में नज़र नहीं आई। हां, दो भक्त चैनलों ने इस मुद्दे पर आसमान सर पर उठाया हुआ था।

पात्रा कविता कृष्णन को गालियां दिए जा रहा था और सभी राजनैतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को वल्चर कहे जा रहा था। जो वो ठंडा पड़ता तो अर्नब बैक-अप देता। इस प्रकार भडुआ पत्रकारिता की ये सबसे बड़ी मिसाल नज़र आये और उनसे हमें उम्मीद भी नहीं है, लेकिन सेकुलरो के प्रिय एनडीटीवी को क्या हुआ ? उसने तो पूरी स्टोरी की गायब कर दी और एक्सप्रेस में भी उसका कही भी अता पता नहीं था।

अन्दर के पन्नों पर कोई एक या दो कॉलम की छोटी रिपोर्ट हो तो और बात है। इसलिए खतरा बड़ा है, मीडिया पर बहुत दवाब है न केवल खबरे दबाने के लिए अपितु नयी खबरे गढ़ने का भी और नए खलनायक बनाने का भी।

मैं पुनः उसी बात पे आऊँगा जो कहता आया हूँ। आज के दौर के दलाल मीडिया से बच के रहना। ये देश भर में आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं। देश में सार्थक बहस को ख़त्म कर देना चाहते हैं और अगर आपके किसी कार्यक्रम में आते हैं तो केवल आपकी खामियों को ढूंढ़कर, तिल का ताड़ बनाकर, आपका चरित्र हनन करता रहेगा। नागरिक संगठनों, सामाजिक आन्दोलनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जनपक्षीय पत्रकारों, सोशल मीडिया पर कार्य करने वाले और सामाजिक सरोकार से वास्ता रखने वाले लोगों को हाथ मिलाने की आवश्यकता है, ताकि आज के दौर में झूठ को सच बनाने की जो कोशिश की जा रही है उसका न केवल मुकाबला कर सके अपितु उनको परास्त भी कर सके।

पुनः, आल इडिया पीपल'स फोरम को इस सफल आयोजन के लिए बधाई।


style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268″
data-ad-slot="8763864077″>