जन विश्वास रैली का संदेश
जन विश्वास रैली की अपार सफलता ने तेजस्वी को बिहार के इतिहास के सर्वाधिक जनप्रिय नेताओं को कतार में खड़ा कर दिया है।

x
ऐतिहासिक जन विश्वास रैली से हिल गई भाजपा
कई ऐतिहासिक रैलियों का साक्षी पटना के गांधी मैदान में बीती 3 मार्च को एक और ऐतिहासिक रैली हो गई, जिसका आयोजक रहा राष्ट्रीय जनता दल। राजद द्वारा आयोजित जन विश्वास रैली में खराब मौसम के बावजूद जैसी भीड़ उमड़ी, जिस तरह भाजपा की अप्रतिरोध्य सत्ता को उखाड़ फेंकने का उत्साह लोगों में दिखा, उससे यह नई सदी में पटना की संभवतः सबसे महत्वपूर्ण रैली में जगह बना ली। इस महारैली को देखकर राजनीतिक विश्लेषकों को जय प्रकाश नारायण (जेपी) की पाँच जून 1974 वाली रैली की याद आ गई।
पाँच जून 1974 को ही पटना के गांधी मैदान से जेपी ने इंदिरा गांधी की तानाशाही सत्ता के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति की घोषणा की थी। तब उस दिन गांधी मैदान में लाखों की भीड़ उमड़ी थी। सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, का नारा भी उसी रैली में दिया गया था। परवर्तीकाल में पटना में हुई वह रैली ही इंदिरा जी जैसी सर्वाधिक शक्तिशाली प्रधानमंत्री के सत्ता से आउट होने का सबब बनी थी।
1974 में इंदिरा गांधी ने विपक्ष के समक्ष जैसी स्थिति पैदा कर दी थी, उससे भी कहीं ज्यादा विकत स्थिति देश और विपक्ष के समक्ष वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर दिए हैं। उनसे पार पाने के लिए विपक्ष कुछ माह पूर्व इण्डिया गठबंधन वजूद में आया पर, विविध कारणों, खासकर जांच एजंसियों की सक्रियता के कारण वह कुछ शिथिल पड़ गया था। किन्तु कुछ दिन पूर्व अखिलेश यादव और राहुल गांधी की सक्रियता से उसमें नई जान पड़ी। लेकिन गांधी मैदान की जन विश्वास रैली से वह गठबंधन मोदी के समक्ष खौफ खड़ा करने की स्थिति में आता दिखा।
दरअसल गांधी मैदान में आयोजित राजद की जन विश्वास रैली इंडिया गठबंधन की महारैली में तब्दील हो गई, जिसमें इंडिया ब्लॉक के मल्लिकार्जुन खड़गे, लालू प्रसाद यादव, राहुल गांधी, सीताराम येचुरी डी. राजा, दीपांकर भट्टाचार्य, तेजस्वी यादव, प्रो. मनोज झा, तेज प्रताप यादव, तारिक अनवर, उदय नारायण चौधरी, अब्दुल बारी सिद्दीकी इत्यादि जैसे अन्य कई नेता भाजपा भगाओ- देश बचाओ की हुंकार भरे। इनके साथ दस लाख से अधिक की संख्या में इंडिया ब्लॉक के समर्थक और कार्यकर्ता पहुंचे। इसमें इंडिया ब्लॉक के नेताओं का सम्बोधन रोंगटे खड़े कर देने वाला रहा। उनके भाषणों पर जिस तरह लाखों की तादाद में पहुंची जनता की ओर से उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया मिली, उससे निश्चय ही नरेंद्र मोदी की शिराओं में सत्ता खोने के भय का संचार हो गया होगा एवं पूरे देश में उनकी सरकार की नीतियों से त्रस्त वंचित वर्गों में खुशी की लहर दौड़ गई होगी। लोगों के सत्ता विरोधी उत्साह को देखते हुए राहुल गांधी को शायद जेपी का दौर याद आ गया जिसका इजहार उन्होंने इन शब्दों में किया ’ देश में जब भी कोई( राजनीतिक) बदलाव आता है तो बिहार में तूफान शुरू होता है। यहां से तूफान बाकी प्रदेशों जाता है। बिहार देश की राजनीति का नर्भ सेंटर है यही से बदलाव की शुरुआत होती है.’
बहरहाल 3 मार्च की जन विश्वास रैली में राजनीति के जानकारों को 5 जून 1974 वाली जेपी के रैली का रूप दिखा है तो उसका प्रधान श्रेय बिहार के पूर्व उप- मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को जाता है, जिन्होंने 20 फरवरी से 2 मार्च तक चली जन विश्वास यात्रा में इसकी जमीन तैयार की थी। जन विश्वास यात्रा में उन्होंने 17 वर्ष बनाम 17 महीने का सवाल खड़ा कर बिहार की जनता में ऐसा उद्वेलन पैदा किया कि लोग उनमें बिहार के भावी सीएम की छवि देखने लगे। इसलिए 3500 किमी की जन विश्वास यात्रा में उन्हें सुनने लिए लोगों का हुजूम उमड़ता गया। इस यात्रा के दौरान वह हर जगह अपने पिता लालू प्रसाद यादव की ओर से लोगों को तीन मार्च को पटना पहुंचने का न्योता देते गए। उनकी अपील पर लोगों के रेस्पॉन्स को देखते हुए राजनीति के जानकारों को लगता रहा कि 3 मार्च को पटना में रिकार्ड भीड़ जुटेगी और वैसा हुआ भी।
जन विश्वास रैली की अपार सफलता ने तेजस्वी को बिहार के इतिहास के सर्वाधिक जनप्रिय नेताओं को कतार में खड़ा कर दिया है।
इस रैली ने लोगों को आश्वस्त कर दिया है कि तेजस्वी के रूप में बिहार को अगला सीएम मिलने जा रहा है। वह नौकरी के पर्याय के रूप में उभरे हैं। इसलिए रैली को संबोधित करने वाले अधिकांश वक्ताओं ने जब हवा में सवाल उछाला कि नौकरी मतलब क्या तो जनता की ओर से शोर उठा तेजस्वी यादव! उन्होंने अपने सम्बोधन कहा कि लोग कहते आरजेडी माई(मुस्लिम – यादव) की है। लेकिन आरजेडी माई ही नहीं, बाप की पार्टी है। बी से बहुजन, ए से अगड़ा,ए से आधी आबादी और पी से पुअर! बाप का यह रूप जानकार जनता खुशी से फट पड़ी। लेकिन जनता ने सिर्फ तेजस्वी के सम्बोधन पर ही प्यार नहीं लुटाया: इंडिया ब्लॉक के हर नेता पर ही तेजस्वी की भांति प्यार लुटाया।
दरअसल तेजस्वी ही नहीं दीपांकर भट्टाचार्य, डी राजा, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, मल्लिकार्जुन खड़गे इत्यादि हर किसी का सम्बोधन प्रायः समान रूप से जनता को स्पर्श किया। मैं ग्यारह बजे से चार बजे तक यूट्यूब चैनलों पर लगातार रैली का लाइव देखता रहा। हर किसी का भाषण एक से बढ़कर एक लगा, खासकर लालू प्रसाद यादव का सम्बोधन सुनकर तो खुशी से पलकें नाम हो गईं। जन विश्वास रैली ने लालू प्रसाद यादव को फिर से लोगों के हृदय सिंहासन पर आरूढ़ कर दिया है। अस्वस्थता के बावजूद वह फिर कुछ-कुछ पुराने रंग में नजर आए।
भीड़ लालू प्रसाद यादव को सुनने के लिए कुछ ज्यादा ही उत्साहित दिखी और उन्होंने निराश भी नहीं किया। उन्होनें कहा, ’तेजस्वी जब जन विश्वास यात्रा पर थे, तब आप लोगों से कह रहे थे कि रैली में आइएगा,पापा ने बुलाया है। लाखों की संख्या में आप लोग आए हैं सभी को धन्यवाद। उन्होंने जब पीएम मोदी पर निशाना, लोग खुशी से फट पड़े। उन्होंने कहा कि मोदी क्या है, क्या चीज है ? मोदी परिवारवाद पर बोलते हैं, यह बताओ मोदी जी आपको संतान क्यों नहीं हुआ? तुम्हारे पास परिवार नहीं है! मोदी तुम हिन्दू भी नहीं हो। किसी की माँ मरती है तो बेटा अपना बाल छिलवाता है, तुम क्यों नहीं छिलवाए जब तुम्हारी माँ का निधन हुआ ? मोदी कहे थे कि मेरी सरकार बनी तो सब के खाते में 15 लाख आएगा। हम भी विश्वास कर लिए कि 15 लाख आएगा। सबका खाता जन-धन योजना के तहत खुला लेकिन 15 लाख आया नहीं, सब को मोदी ने ठेंगा दिखा दिया।
लालू ने कहा कि बिहार जो फैसला लेता है,वही देश के लोग अनुकरण करते हैं। सब विपक्षी दल मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे व मोदी को विदा करेंगे। दिल्ली पर हम लोगों को कब्जा करना है!
बहरहाल पटना की जन विश्वास रैली का पूरे देश पर प्रभाव पड़ना तय है। इससे इंडिया गठबंधन में आत्मविश्वास का भारी संचार होगा और मोदी के लिए तीसरी बार सत्ता में आना कठिन होगा। किन्तु रैली ऐतिहासिक होने के बावजूद एक खास कमी नजर आई, वह यह कि इण्डिया के नेताओं में राहुल गांधी को छोड़कर चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करने की ललक किसी में नहीं दिखी।
जन विश्वास रैली में शामिल तमाम नेता ही मोदी के गारंटी की पोल खोलने के साथ संविधान और लोकतंत्र बचाने, बेरोजगारी और मंहगाई जैसे मुद्दे पर अपना भाषण केंद्रित करते दिखे। कुछ ने सामाजिक न्याय पर मुंह खोला भी तो ऐसा लगा उन्हें इस बात का इल्म ही नहीं है कि भारत में हजारों साल से हिन्दू धर्म के प्राणाधार वर्ण व्यवस्था के प्रावधानों द्वारा दलित, आदिवासी, पिछड़ों को शक्ति के समस्त स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक- से बहिष्कृत करके ही अन्याय की अतल गहराइयों में धकेला गया और शक्ति के समस्त स्रोतों में इनको संख्यानुपात में हिस्सेदारी दिलाकर ही मुकम्मल सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सकती है। दलित बहुजनों के साथ हुए अन्याय की सही समझ न होने के कारण ही अब तक सामाजिक न्यायवादी नेता और बुद्धिजीवी सिर्फ आरक्षण बचाने, निजी क्षेत्र, न्यायपालिका और प्रमोशन इत्यादि में आरक्षण की वकालत करते रहे। इस मामले में स्वाधीन भारत के इतिहास में एकमात्र राहुल गांधी ऐसे नेता हुए जो गत एक वर्ष से वंचितों को मुकम्मल सामाजिक न्याय दिलाने के लिए नौकरियों से आगे बढ़कर शक्ति के समस्त स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने की आवाज बुलंद किए जा रहे हैं और पटना में भी किए। इससे 2024 का चुनाव उस सामाजिक न्याय पर केंद्रित होता दिख रहा है, जिस पर भाजपा हमेशा हार वरण करने के लिए विवश रही। सामाजिक न्याय की पिच पर चुनाव केंद्रित होने पर भाजपा कभी जीत ही नहीं सकती, इसका दृष्टांत 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद 2023 में कर्नाटक में स्थापित हुआ। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही राहुल ही गांधी सामाजिक न्याय के एजेंडे को अभूतपूर्व विस्तार देने में जुट गए हैं। वह जिस तरह जितनी आबादी- उतना हक का मुद्दा उठा रहे हैं, उससे चुनाव के सामाजिक न्याय के एजेंडे पर केंद्रित होने के आसार दिखने लगे हैं। लेकिन पिछले कुछ माह से चुनावी मोड में आया विपक्ष वह करता नहीं दिख रहा है, जो राहुल गांधी करते दिख रहे हैं।
उम्मीद थी कि पटना की जन विश्वास रैली में इंडिया ब्लॉक के नेता वंचितों को समस्त क्षेत्रों में हिस्सेदारी दिलाने पर अपना सम्बोधन केंद्रित करेंगे पर, ऐसा हुआ नहीं! इस लिहाज से जन विश्वास रैली निराश करने वाली रही।
इंडिया ब्लॉक के नेताओं को ध्यान रखना पड़ेगा कि संघ के असंख्य आनुषंगिक संगठनों, मीडिया, लेखक-पत्रकार, साधु-संतों और अंबानी- अडानियों के समर्थन से पुष्ट भाजपा को सिर्फ चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करके ही मात दिया जा सकता है। चुनाव सामाजिक न्याय पर केंद्रित हो, इसके लिए नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति, जजों की नियुक्ति, मंत्रिमंडलों तथा देश के नीति- निर्धारक पदों में दलित, आदिवासी, पिछड़ों और इनसे धर्मांतरित तबकों संख्यानुपात में हिस्सेदारी दिलाने पर चुनावी एजेंडा स्थिर करना होगा, जैसे राहुल गांधी किए जा रहे हैं। सभी क्षेत्रों में हिस्सेदारी का सपना देने पर ही चुनाव उस सामाजिक न्याय पर केंद्रित होगा, जिस पर भाजपा कभी पार नहीं पाती, सभी क्षेत्रों में संख्यानुपात में हिस्सेदारी का ड्रीम देने पर ही दलित- बहुजन भाजपा की विभाजनकारी नीतियों तथा राम मंदिर, धारा 370, काशी-मथुरा इत्यादि के सम्मोहन से मुक्त हो सकते हैं।
राहुल गांधी की भांति सर्व-व्यापी हिस्सेदारी का सपना न दिखाकर यदि इंडिया ब्लॉक के नेता संविधान और लोकतंत्र बचाने, बेरोजगारी और मंहगाई इत्यादि जैसे रूटीन मुद्दों पर ही अपना चुनावी एजेंडा स्थिर करते हैं तो मोदी को तीसरी बार पीएम बनने से रोक पाना प्रायः असंभव हो जाएगा!
एच. एल. दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
प्रिय बिहारवासियों,
कल पटना के गांधी मैदान में जन विश्वास रैली के जरिए मुहब्बतों और उम्मीदों का जन सैलाब लाकर आपने एक नया इतिहास रच डाला। ऐसा लगा मानो पूरा बिहार ही गांधी मैदान में उपस्थित होकर नए बिहार का नया अध्याय लिखने को समर्पित और आतुर हो।
22 फरवरी को ही पटना के गांधी… pic.twitter.com/1Ot72k7ix5
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) March 4, 2024
Message of Jan Vishwas Rally


