भोपाल में संपन्न एक संयुक्त सम्मेलन में वामपंथी दल का एक घोषणापत्र जारी किया गया
घोषणापत्र ; वामपंथी पार्टियों का प्रदेश स्तरीय सम्मेलन 24 मई, भोपाल
भोपाल। भोपाल से वामपंथी दल एकजुट होने की राह पर आगे बढ़ लिए हैं। भाकपा और माकपा की राष्ट्रीय कांग्रेस के बाद चार वामपंथी दल, मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हुए और एक संयुक्त सम्मेलन कर प्रदेश भर में तीन स्तरीय आंदोलन छेड़ने का एलान किया।

वामपंथी पार्टियों का प्रदेश स्तरीय सम्मेलन का घोषणापत्र
मध्यप्रदेश की वामपंथी पार्टियों का यह प्रदेश स्तरीय सम्मेलन प्रदेश की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लागू की जा रही लुटेरे कार्पोरेट, ज़ुल्मी सामन्त और दकियानूस-फूटपरस्त-बर्बर साम्प्रदायिक शक्तियों की हिमायत वाली नीतियों की भर्त्सना करता है। इन जैसी ही उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों पर चलते हुए पहले पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों ने तथा पिछले एक दशक से भाजपा सरकारों ने प्रदेश की जनता को विनाश और लूट का जरिया बनाकर रख दिया है। भ्रष्टाचार और जनता के हितों पर हमलों के नए रिकॉर्ड बनाये हैं तथा मध्य प्रदेश को एक तरह से मृत्यु प्रदेश में बदल दिया है।
जनता के खून पसीने की कमाई के हजारों करोड़ रुपये फूंक कर अपने आत्मश्लाघा पूर्ण प्रचार के जरिये शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व तथा आरएसएस के नियंत्रण वाली भाजपा सरकार ने जिस मध्यप्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने की दम्भोक्ति की है उस प्रदेश की कुछ बानगियाँ इस प्रकार हैं ;
@ भ्रष्टाचार तथा कुप्रबंधन के चलते आर्थिक दिवालियापन यहाँ तक पहुँच गया है कि ढाँचागत कार्यों, कर्मचारियों के वेतन भत्तों, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार क़ानून के मजदूरी और वृद्धावस्था-विधवा-एवं निराश्रित पेंशन की मामूली राशि का भुगतान करने के लिए भी सरकारी खजाने में पैसा नहीं है।
@ दरिद्रता और गरीबी बड़ी है - असमानता भी तेजी से गहरी हुयी है। राष्ट्रीय एवं प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय में 1999 -2000 में अंतर 3455 रुपये था जो अब बढ़कर 20890 रुपये हो गया है। इसमें भी आंतरिक असमानता बढ़ी है, बाकी जिलों की प्रति व्यक्ति आय ऊपर के 12 जिलों की आय से आधी या उससे भी कम है।
@ खेती बर्बादी की ढलान पर है। प्राकृतिक आपदाओं के समय नुक्सान के मौकों पर सरकार राहत देने की बजाय ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसा काम करती है। नतीजे में कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्यायें बेहद खतरनाक तेजी से बड़ी हैं और अपने दायरे में पूरे प्रदेश को ले लिया है। खाद, बिजली, सिंचाई, ऋण और उपज की खरीद के संकट के चलते खेती के अलाभकारी होने के कारण प्रति दिन 523 किसान किसानी छोड़ रहे हैं। दस साल में करीब बीस लाख किसान किसानी छोड़ चुके हैं।
@ खेती की जमीन सहित आदिवासियों की भूमि, जंगल की जमीन कार्पोरेट कंपनियों को थमाए जाने का सिलसिला जारी है। चौथाई सदी गुजर जाने के बाद भी नर्मदा की डूब में आये विस्थापितों तक का पुनर्वास नहीं हुआ- बाकी बेदखलों के पुनर्वास का तो सवाल ही नहीं है। प्रदेश में भूमिहीनता तथा खेतमजदूरों की तादाद में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुयी है।
@ देश की सर्वाधिक आदिवासी आबादी वाले प्रदेश में आज तक पेसा ( पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट ) क़ानून के अमल हेतु नियम नहीं बनाए गए हैं। हाल ही में सरकार ने आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी द्वारा खरीदे जाने पर लगी रोक हटाने की मंशा जाहिर करके स्थिति को और विकराल किया है। ग्राम सभाओं की स्पष्ट मनाही के बावजूद उनकी जमीन तथा नदियों सहित प्राकृतिक संसाधन, बिना समुचित मुआवजे और पुनर्वास के, कार्पोरेट्स के हवाले किये जा रहे हैं।
@ परिवहन, बिजली, स्थानीय निकायों, निर्माण विभाग के कार्यों के निजीकरण के बाद अब सरकार सफाई तथा पेयजल तक के काम निजी मुनाफे के लिए खोल रही है।
@ श्रम कानूनों पर हमले बढ़े हैं। खुद मुख्यमंत्री ने काम के घंटे बढ़ाकर 12 किये जाने का एलान किया है - सारे श्रम क़ानून स्थगित किये जा रहे हैं। लगाओ भगाओ की नीति लागू की जा रही है। ठेकेदारी प्रथा बढ़ी है। न्यूनतम वेतन के निर्धारण में भी घपला हुआ है-उसे भी लागू नहीं किया जा रहा है।
@ श्रमिकों को बंधुआ जैसी स्थिति में पहुंचाए जाने तथा "जिस जमीन पर उद्योगपति अंगुली रख देंगे वह उसे दे दी जाएगी" जैसी मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद प्रदेश के औद्योगीकरण में नकारात्मक विकास हुआ है। गुजरे तीन वर्षों में मात्र 105 नए कारखाने पंजीकृत हुए हैं जबकि इनसे कई गुना औद्योगिक इकाइयां बंदी की शिकार हुयी हैं।
@ बेरोजगारी पहले से ही अधिक थी इन नीतियों, रोजगार विनाशक तथा रोजगारहीन निवेश के चलते बेकारी और अर्ध-बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। इन सब स्थितियों के चलते प्रदेश से नागरिकों का पलायन बढ़ा है। पहले पलायन का अभिशाप सिर्फ बुंदेलखंड के नागरिक भुगतते थे अब इसने पूरे प्रदेश को अपनी चपेट में ले लिया है।
@ कल्याण योजनाएं ठप्प पड़ी हैं। जाति प्रमाणपत्रों को बनाने की प्रक्रिया को अत्यंत अतार्किक और जटिल बनाकर उन्हें हासिल करना और असंभव बना दिया गया है।
@ मध्यप्रदेश शिक्षा के व्यापारीकरण एवं निजी शिक्षण संस्थाओ की अनाप शनाप लूट का केंद्र बनकर उभरा है। निजी शिक्षण संस्थाओं को फीस तथा अन्य बहानो से मनमानी राशि वसूलने की छूट दे दी गयी है। अब सरकारी स्कूलों को भी पीपीपी के नाम पर निजी हाथों में तैयारी है। शिक्षा की पाठ्यसामग्री एवं प्रणाली का योजनाबध्द तरीके से साम्प्रदायिकीकरण किया जा रहा है।
@ सामाजिक उत्पीड़न - महिलाओं, दलितों, आदिवासियों पर अत्याचार और उत्पीड़न के मामले में मध्यप्रदेश पहले से ही पहले या दूसरे स्थान पर रहता आया है। इस बीच मनु स्मृति जैसे घोर अमानवीय ग्रन्थ को अपना आदर्श मानने वाली पार्टी के सत्ता में आ जाने की वजह से इस अत्याचार और वंचना की रफ़्तार और तेज हुयी है।
@ प्रदेश को योजनाबद्ध तरीके से साम्प्रदायिकता की प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया गया है। धीमी तीव्रता की दर्जनो घटनाएं रोज घटित हो रही हैं। राजनैतिक संरक्षण और पुलिस तथा प्रशासन की पक्षधरता के चलते अल्पसंख्यकों पर हमले एवं साम्प्रदायिक हिंसा में बढ़ोत्तरी हुयी है। धर्मस्थलों पर हमले बढ़े हैं - मुस्लिम युवाओं को लक्ष्यबद्द करके उत्पीड़ित किये जाने की घटनाएं आम हुयी हैं।
@ सार्वजनिक वितरण प्रणाली लगभग पूरी तरह से ध्वस्त कर दी गयी है। अब उसे, सर्वोच्च न्यायालय के ऐसा न किये जाने के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है। खाद्य सुरक्षा के समाप्त हो जाने के चलते कुपोषण, बाल मृत्यु, महिला मृत्यु दर में इजाफा हुआ है। प्रदेश के नागरिकों की औसत आयु देश की तुलना में 5 से भी अधिक वर्ष कम रह गयी है।
@ स्वास्थ्य सुविधाओं का पूरी तरह निजीकरण करके, उस पर सरकारी खर्च घटाकर सरकारी इलाज प्रणाली को निरर्थक बना दिया गया है। नतीजे में प्रदेश की विराट आबादी की पहुँच से सेहत का अधिकार छीन लिया गया है।
@ प्रदेश में गुमशुदा होने वाली बच्चियों तथा महिलाओं की संख्या में खतरनाक तरीके से बढ़ोत्तरी हुयी है। महिलाओं के साथ बलात्कार पहले से ही अधिक संख्या के मुकाबले 27.28 प्रतिशत की दर से बढ़े हैं।
@ स्मार्ट सिटी पहले से विशाल आवासहीन आबादी वाले प्रदेश में और कहर बरपाने वाली हैं। 64 लाख शहरी नागरिक बिना किसी सुविधा तथा सुरक्षा के झुग्गियों में रहने के लिए विवश हैं।
@ भ्रष्टाचार में प्रदेश के राजनेताओं तथा नौकरशाहों लगभग विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। मुख्यमंत्री से लेकर पटवारी तक भ्रष्टाचार में गले गले तक डूबे पड़े है। अभी तक 105 बड़े घोटाले सामने आ चुके हैं किन्तु व्यापम सहित किसी पर भी संतोषजनक कार्यवाही नहीं हुयी है। भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए आरटीआई के क़ानून को संकुचित और नख-दन्त विहीन बनाने की कोशिश हो रही है। जनहित याचिकाओं के मामले में भी हाल के संकेत कोई अच्छी उम्मीद नहीं जगाते हैं।
@ क़ानून व्यवस्था पूरी तरह ठप्प पड़ी हुयी है। पुलिस महकमा पूरी तरह आरएसएस के नियंत्रण में काम कर रहा है।
यह वह समय है जब अच्छे दिन का झांसा देकर कार्पोरेट धन से चुनाव जीतकर केंद्र की सत्ता में पहुँची भाजपा के पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा हो रहा है। देसी विदेशी पूंजी के लिए सारे खिड़की दरवाजे खोल देने और राष्ट्र को विभाजित कर देने की क्षमता रखने वाली साम्प्रदायिकता के विषैलेपन को उभारने वाले इस एक साल ने साबित कर दिया है कि देश तथा उसकी जनता के हितों की सलामती सुनिश्चित करने वाला विकल्प सिर्फ नेताओं भर के बदलने से नहीं निकलेगा- इसके लिए नीतियां बदलनी होंगी और ऐसी नीतियां देश में सिर्फ वामपंथ के पास हैं।
मध्यप्रदेश के वामपंथी दलों का यह सम्मेलन इन स्थितियों के विरुद्द संघर्ष छेड़ने का संकल्प लेता है।
सम्मेलन निम्नलिखित मांगों को लेकर प्रदेश भर में तीन स्तरीय आंदोलन छेड़ने का एलान करता है ;
1 -महंगाई रोकी जाए, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली सार्वत्रिक की जाए।
2 -निजीकरण रोका जाए। पानी, सफाई, बिजली बिल के नाम पर लूट बंद की जाए।
3 - स्मार्ट सिटी के नाम पर मुठ्ठी भर की ऐयाशी की बजाय सभी बेघरों को आवास दिए जाएँ।
4 - न्यूनतम वेतन घोटाले की जाँच कर नए तरीके से वेतन निर्धारण किया जाए, सारे श्रम क़ानून अमल में लाये जाएँ, ठेका प्रथा तथा अस्थायी नियोजन पर रोक लगाई जाए।
5 - पेंशन तथा छात्रवृत्ति सहित कल्याणकारी योजनाओं में समग्र आईडी तथा बीपीएल की नाजायज शर्तें हटाई जाएँ। ईपीएफ सहित समस्त पेंशन न्यूनतम 3000 रुपये मासिक की जाए।
6 - खाद-कीटनाशक उपलब्ध कराते हुए पूरे कृषि उत्पादन की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सुनिश्चित की जाए। बोनस बहाल किया जाए। वनोपज का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाए एवं खरीदी की जाए।
7 - दलित, आदिवासी, महिला तथा अल्पसंख्यकों सहित हर तरह का सामाजिक उत्पीड़न रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाएँ। जाति प्रमाणपत्र बनाने में खड़ी की जा रही बाधाएँ हटाई जाएँ।
8 - निजी शिक्षण संस्थाओं की लूट तथा शिक्षा का व्यापारीकरण एवं साम्प्रदायिकीकरण रोका जाए।
9 -साम्प्रदायिक आधार पर उत्पात तथा हिंसा करने वालों के विरुद्द कड़ी दंडात्मक कार्यवाही की जाए।
10 - व्यापम सहित सभी भ्रष्टाचार के मामलो में दोषियों को बचाने की बजाय उनकी निष्पक्ष, विश्वसनीय, उच्चस्तरीय जाँच कर सभी छोटे-बड़े अपराधियों को सजा दिलाई जाए।
11 - मनरेगा सहित सभी रुके हुए मजदूरी भुगतान अविलम्ब किये जाएँ।
12 - भूमि अधिग्रहण का कार्पोरेट परस्त क़ानून लाने का इरादा त्यागा जाए। वनाधिकार के मालिकाना पट्टे दिए जाएँ। विस्थापन के सभी मामलों में सम्पूर्ण पुनर्वास एवं समुचित मुआवजे दिए जाएँ।
13 - रोजगार सृजित करने की योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए - सभी बेरोजगारों को न्यूनतम 3000 रुपये मासिक की दर से बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।
इन माँगों को लेकर यह सम्मेलन
(अ) जिला स्तरीय सम्मेलनों के आयोजन
(ब ) जिला स्तरीय विरोध कार्यवाहियों के आयोजन तथा
(स ) राजधानी में एक राज्यस्तरीय प्रदर्शन आयोजित करने की कार्यवाहियों का एलान करता है।
सम्मेलन अन्य सभी वामपंथी दलों, संगठनों, वामपंथी सोच व रुझान के व्यक्तियों से इन कार्यवाहियों का समर्थन करने तथा उनमे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने का आव्हान भी करता है।
सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई(माले) लिबरेशन, एसयूसीआइ(कम्युनिस्ट)

का. देवेन्द्र सिंह चौहान CPI ML SUCI #CPIM #LeftFront