जब कैप्टन अब्बास अली ने पंडित नेहरू की कार रोककर उनकी गाड़ी पर लगा राष्ट्रीय झंडा उतरवा दिया
1951-52 में हुए पहले आम चुनाव का चुनाव प्रचार चल रहा था। उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनाव प्रचार के लिए बुलंदशहर आये थे और उस समय के युवा सोशलिस्ट नेता कैप्टन अब्बास अली ने उनकी कार रोक कर उस पर लगा राष्ट्रीय ध्वज उतरवाने के लिए उनको बाध्य किया था।

जब कैप्टन अब्बास अली ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की कार रोक दी और उनकी गाड़ी पर लगा राष्ट्रीय झंडा उतरवा दिया
(यह क़िस्सा लगभग तिहत्तर वर्ष पुराना है जब 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव का चुनाव प्रचार चल रहा था। उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनाव प्रचार के लिए बुलंदशहर आये थे और उस समय के युवा सोशलिस्ट नेता कैप्टन अब्बास अली ने उनकी कार रोक कर उस पर लगा राष्ट्रीय ध्वज उतरवाने के लिए उनको बाध्य किया था। साभार कैप्टन अब्बास अली की आत्मकथा 'न रहूँ किसी का दस्तनिगर-मेरा सफ़रनामा'।)
आज शायद इस बात पर कोई यक़ीन नहीं करेगा कि देश के पहले आम चुनाव के दौरान सोशलिस्ट पार्टी के एक मामूली कार्यकर्त्ता के विरोध करने पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अपनी कार पर लगा राष्ट्रिय झंडा उतारने के लिए बाध्य होना पड़ा था। यह क़िस्सा है नवम्बर 1951 का। दरअसल अक्टूबर 1951 से लेकर फ़रवरी 1952 तक देश के पहले आम चुनावों के लिए चुनाव प्रचार ज़ोरों पर था। इसी दौरान कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता और देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू नवम्बर-दिसंबर माह में दिल्ली के नज़दीक संसदीय क्षेत्र बुलंदशहर में चुनाव प्रचार के लिए आये थे। उस समय बुलंदशहर के काला आम स्थित सोशलिस्ट पार्टी के जिला कार्यालय में पार्टी की जिला कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। इस बैठक में पार्टी के एक वरिष्ठ कार्यकर्त्ता हरिकेश जी ने बताया की प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनाव प्रचार के लिए शहर में आये हुए हैं और अपनी कार पर राष्ट्रीय झंडा लगाकर चल रहे हैं। युवा सोशलिस्ट नेता कैप्टन अब्बास अली उस समय जिला कार्यकारिणी के सदस्य थे और बैठक में मौजूद थे यह सुनते ही वह सड़क पर आ गए और जैसे ही नेहरू जी की कार वहां से गुज़रने वाली थी वह उनकी कार के आगे लेट गए। यह मंज़र देखते ही पंडित नेहरू अपनी कार से उतर पड़े और कैप्टन अब्बास अली पर आग बबूला होते हुए उन्हें डांटने लगे कि "यह क्या तरीक़ा है"? इसपर कैप्टन अब्बास अली ने कहा कि "पंडित जी दरअसल नाराज़ तो हमें होना चाहिए क्यूंकि आप संविधान और आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करके कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार केर रहे हैं और आपकी कार पर राष्ट्रीय झंडा लगा हुआ है जो सर्वथा अनुचित है।" यह सुनते ही जवाहरलाल नेहरू को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और उन्होंने साथ चल रहे ज़िले के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बनारसीदास (वे बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुए) को डांटा कि उन्होंने ऐसा ग़लत काम क्यूँ होने दिया और साथ ही कैप्टन अब्बास अली से माफ़ी मांगते हुए तुरंत अपनी कार से राष्ट्रीय ध्वज को उतरवाया।
यह थी उस महानायक की शान की देश का सबसे बड़ा नेता और प्रधानमंत्री होने के बावजूद जवाहरलाल नेहरू ने अपनी ग़लती का एहसास करने में एक मिनट का भी समय नहीं लगाया और अपनी ग़लती के लिए सोशलिस्ट पार्टी के एक मामूली कार्यकर्त्ता से भी माफ़ी मांगी।
उल्लेखनीय है कि देश के पहले आम चुनाव के दौरान खुद प्रधानमंत्री नेहरू ने 29 अगस्त 1951 को देश के गृह सचिव को एक नोट लिखकर यह नियम बनाया था कि "वह इस बात से सहमत हैं कि मंत्रियों को, चाहे वे केंद्र के हों या राज्य के, अपनी चुनावी गतिविधियों और अपनी अन्य गतिविधियों के बीच स्पष्ट रूप से अंतर करना चाहिए।इसमें कोई संदेह नहीं कि कभी-कभी वे ओवरलैप होते हैं। ऐसे में भी इन्हें आम तौर पर चुनावी सभा ही माना जाना चाहिए। किसी भी चुनावी बैठक या अन्य गतिविधि का भुगतान पार्टी या व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए, न कि सरकार द्वारा। न ही मंत्रियों को उन यात्राओं के लिए अपने यात्रा व्यय या दैनिक भत्ते वसूलने चाहिए, जिनका मुख्य उद्देश्य चुनाव अभियान है। मैं कहूंगा कि आम तौर पर सार्वजनिक बैठकों से जुड़े सभी खर्चों को निजी तौर पर वहन किया जाना चाहिए, न कि सरकार द्वारा, दुर्लभ अवसरों को छोड़कर जब बैठक पूरी तरह से सरकारी है। (गृह सचिव को नोट 29 अगस्त 1951)
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इसी आधार पर 1971 के आम चुनावों के दौरान सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग करने के आरोप में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा चुनाव अवैध घोषित कर दिया था। इस इलेक्शन पिटिशन में भी कैप्टन अब्बास अली, इंदिरा गांधी के प्रतिद्वंदी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण के इलेक्शन एजेंट थे।
क़ुरबान अली
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
When Captain Abbas Ali stopped Pandit Jawaharlal Nehru's car and removed the national flag from his car.


