जब कोई शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है, देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने की पूरी तैयारी... शर्म उनको मगर नहीं आती....
जब कोई शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है, देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने की पूरी तैयारी... शर्म उनको मगर नहीं आती....
अभी और कुरुक्षेत्र के दर्शन करने होंगे। देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने की पूरी तैयारी।
तेलंगाना संवाद और पाश की कविता, तूफानों ने कभी मात नहीं खायी
भारी विरोध, हंगामे और छिटपुट हाथापाई के बीच तेलंगाना विधेयक गुरुवार को राज्यसभा में पास हो गया। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है। तेलंगाना देश का 29वां पूर्ण राज्य बनेगा। सीमांध्र को विशेष पैकेज देने की भी घोषणा की गयी। पोलावरम कृषि परियोजना को भी वैधता दे दी गयी इसी के साथ जिसके तहत पोलावरम बाँध के डूब में शामिल होने वाले हैं महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडीशा के दंडकारण्य इलाके, जो प्रकृति और मनुष्य के विरुद्ध है।
आदरणीय सुरेंद्र ग्रोवर ने फिर अनिवार्य प्रश्न झोंके हैं, संसद के सत्रावसान के साथ तेलंगाना राज्य निर्माण सुनिश्चित हुआ। हम हर हालत में तेलंगाना के साथ हैं। तो हम किसी भी सूरत में आंध्र के विरुद्ध भी नहीं हैं। हर परिवार में बँटवारा सामाजिक विरासत है। लेकिन हर परिवार में कुरुक्षेत्र नहीं रचा जाता। तेलंगाना को राजनीतिक बिसात की फसल बनाकर जिन लोगों ने हमारे गुरुजी ताराचंद्र जी के शब्दों में भारत को महाभारत बना दिया है वे लोग कितने तेलंगाना के हक में हैं और कितने आंध्र के, कहना मुश्किल, लेकिन यह राजनीति हमेशा भारत को महाभारत बनाने की महारत से देश और देशवासियों को लहूलुहान कर देती है।
इसी सिलसिले में सुरेंद्र जी के सवाल मौजू हैं। जवाब दर्ज कराना जरुरी भी नहीं है, लेकिन जवाब अपनी- अपनी अन्तरात्मा में (अगर कहीं उसका कोई वजूद है) तो सोचें जरूर।
क्या विशेष राज्य का दर्जा तभी मिलता है जब लोकसभा अध्यक्ष की आँख में मिर्च झोंक दी जाये? संसद में मारपीट की जाये !
बिहार का भी पूरा औद्योगिक क्षेत्र विभाजन में निकल गया था। भाजपा ने बिहार के लोगों को क्यों धोखा दिया था! कब तक बिहार के लोग लूटे जाते रहेंगे! बिहार में क्या इसका जवाब माँगने वाला कोई नहीं है?
राजेश कुमार सिंह ने सही लिखा है
बड़ा गहरा ताल्लुक है सियासत का तबाही से।
जब कोई शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है॥
मोहन क्षोत्रिय जी का मत है कि
तेलंगाना तो बन गया, पर आंध्र की जनता कुछ ज़्यादा ही बँट गयी !
संसद में चलने वाली नंगई भी कुछ ज़्यादा ही उजागर हो गयी ! समूचे देश को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है।
काश वे भी शर्मिंदा होते अपनी हरक़तों पर, जो इस राष्ट्रीय शर्म की जड़ में हैं, और जो निर्लज्जता से संस्थाओं की अवमानना करने में लगे हैं !
माया मृग जी सही फरमाते हैं
शर्म उनको मगर नहीं आती....
वीर विनोद छाबड़ा जी का कहना वाजिब है
समझ में नहीं आता कि तेलंगाना बनने से कौन सा कुफ्र टूट पड़ेगा? क्या सीमांध्र में अकाल पड़ जायेगा? कभी तेलंगाना अलग था और जब उसे आंध्र में मिलाया गया था तो क्या गुज़री थी उन पर। पिछले साठ सालों से संघर्ष कर रहे थे. इस बीच जाने कितने ऊपर चले गये। आज उनकी आत्मा को सुकून हासिल हो रहा होगा। यों मेहनतकशों को घबराना नहीं चाहिए। सीमांध्र वालों को चाहिए कि तेलंगाना से आगे निकल कर दिखाएँ।
जगदीश्वर चतुर्वेदी जी ने लिखा है कि-
किरण रेड्डी ने आँध्र के मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफ़ा दिया। रेड्डी को नपुंसक नेता के रूप में याद किया जायेगा।
दिलीप मंडल की राय है-
स्वागत है तेलंगाना। तरक्की कीजिए। सुखी रहिए। खुश रहिए। मिलकर रहिए। छोटे राज्यों के एक कट्टर समर्थक की शुभकामना कबूल करें।
अब तेलंगाना अलग राज्य बनने के संसदीय अनुमोदन के बाद चुनावी राजनीति के तहत पूरे आंध्र में गृहयुद्ध के हालात हैं और जो पंजाब के विभाजन के बाद हुआ, आत्मघाती राजनीति आंध्र में उसकी पुनरावृत्ति की तैयारी में है। आग अन्यत्र भी सुलगायी जा रही है।
आग अन्यत्र भी सुलगायी जा रही है। मसलन गोरखालैंड और विदर्भ में। देश को अभी और कुरुक्षेत्र के दर्शन करने होंगे। अभी आग और बाकी है। अस्मिता संसाधनों के न्यायपूर्ण बँटवारे के लिये, जल जंगल जमीन नागरिकता, प्रकृति पर्यावरण और मानवाधिकार के लिये अनिवार्य है। समान अवसरों के लिये संविधानसम्मत है अस्मिता, जिसके तहत सामाजिक न्याय और समता के सिद्धांन्त प्रतिपादित हैं और बदलाव के घोषित लक्ष्य भी ये ही हैं। लेकिन अस्मिता जब सत्ता की राजनीति और राष्ट्रविरोधी साजिशाना गतिविधि में तब्दील हो जाती है, तो अस्मिता की यह लड़ाई सर्वनाश का आवाहन कर देती है। कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर में, पंजाब और तमिलनाडु में, भाजपाई पहल पर बने तीनों राज्यों में हम यह खेल बेपर्दा होते देखते रहे हैं।
विडंबना है कि आज राजीव गांधी के हत्यारों को फाँसी देने की माँग करने वाले सिख जनसंहार के युद्ध अपराधियों का न सिर्फ बचाव कर रहे हैं बल्कि कोई इस कांड के लिये माफी तक नहीं माँगने को तैयार दीख रहा है। धर्म अस्मिता धर्मोन्माद में तब्दील है और राजनीति की मुख्य धुरी है जिसके तहत मानवता विरोधी युद्ध अपराधियों का न सिर्फ निर्लज्ज महिमामंडन कर रहे हैं हम बल्कि उन्हें राष्ट्र की बागडोर सौंपने के लिये बेताब हैं हम। जाति उन्मूलन की अंबेडकरी विचारधारा अस्मिता आधारित सत्ता की राजनीति में ही विसर्जित हो गयी है।
तेलंगाना महाविद्रोह भारतीय जनता के इतिहास की विरासत है।
तेलंगाना के जो खेत जागे थे कभी, वहीं बदलाव की फसल लहलहा सकती थी।
भारत में सत्ता और राज्यतंत्र में बदलाव और शोषणविहीन वर्गविहीन सर्वहारा के अधिनायक्तव की विचारधारा का परचम जिन्होंने उठाया, उन्होंने ही तेलंगाना को भारतीय सत्तावर्ग के सैन्यतंत्र के हवाले कर दिया। इस विश्वासघात के सदमे से बदलाव के ख्वाब को जो जख्म मिले, वे रिसते ही रहे। तेलंगाना बाकी देश की तरह राजनीति के बिसात में तब्दील है। लेकिन तेलंगाना के आदिवासी इलाकों में अब भी निजाम का कायदे कानून लागू हैं, भारतीय संविधान नहीं। तेलंगाना में जिस परिवर्तनकारी शक्ति ने कभी पूरे देश को दिशा दिखायी थी, हम आज भी उसके साथ खड़े हैं। लेकिन तेलंगाना को सीमांध्र के खिलाफ खड़ा करने की सत्ती की राजनीति ने जो विस्फोटक हालात पैदा कर दिये हैं, आज बाकी देश उसके मुखातिब खड़ा है।
पंजाब के बंटवारे को लेकर जो आग सुलगायी गयी, उसके खतरनाक नतीजे हम देख चुके हैं। हम तेलंगाना के अलग राज्य बनने का स्वागत करते हैं, लेकिन जिस तरीके से संसद में बाकायदा आपातकाल लगाकर इस प्रस्ताव के विरोधियों को संसद से बाहर रखरकर संसदीय कार्यवाही का प्रसारण रोक कर सैन्य तरीके से लोकतांत्रिक पद्धति को तिलांजलि देकर सत्ता की बिसात पर भारतीय जनगण को कुरुक्षेत्र के आत्मघाती मैदान में एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने की कार्यवाही हुयी, हम उसके विरुद्ध हैं।
अस्मिता की राजनीति को जमीनी हकीकत के खिलाफ इस्तेमाल कर लेने के आधार पर जिस महाविध्वंस का कर्मकांडी आवाहन राजनीतिक पक्ष-विपक्ष ने किया, हम उसके भी विरुद्ध हैं।
हमारे युवा साथी सत्यनारायण ने हमारे प्रिय कवि पाश की कुछ पंक्तियां जो पेश की हैं, वे देश के मौजूदा हालात का सही सही बयान करते हैं। इस तेलंगाना संवाद की शुरुआत हम उन्हीं पंक्तियों से करते हैं।
मुक्तिबोध ने पचास साल पहले जो कविता अंधेरे में लिखी हैं, उस अंधकार के दुर्भेद्य किले में हम बुरी तरह फंसे हुये हैं लेकिन कवि ने जिस रोशनी की तलाश शुरु की थी और जनता के पक्ष में खड़े होने की सीधी चुनौती दी थी, हम उसके काबिल न बन सकें।
पाश की कविता सीमांध्र में तेलंगाना के खिलाफ बन रही सुनामी के पथसंकेत भी हैं।
तेलंगाना मुद्दा बेहद पेचीदा है। इसे वस्तुगत तरीके से सम्बोधित करने के बजाय भावनाओं का जो भयानक खेल खेला जा रहा है, वह पंजाब के बाद दक्षिण में भी एक और पंजाब बनाने की तैयारी है, जो खून से लथपथ होगी।
पंजाबी के बड़े कवि पाश जिन्होंने न केवल इन परिस्थितियों से जमीन पर खड़े होकर लोहा लिया, बल्कि अपनी जान तक दे देने से परहेज नहीं किया, उनकी पंक्तियों के साथ तेलंगाना पर संवाद का यह आवाहन, जिसे इस तेलंगाना विधेयक के राज्यसभा में पारित होने के बाद ही हम समेटेंगे।
तेलंगाना और सीमांध्र के इस गृहयुद्ध को कृपया खंडित आंध्र का क्षेत्रीय विवाद न समझे, सत्ता इस विवाद को हवा दे रही है तो इस खेल के विरुद्ध जनहस्तक्षेप होना ही चाहिए।
साथ ही तूफान के सच को समझना भी जरूरी है।
तेलंगाना की लड़ाई आज कल परसो की लड़ाई तो है नहीं, उसकी निरंतरता है। पीढ़ियों के साथ वह लड़ाई चल रही है। यह तूफान हरगिज राजनीतिक तरीके से शांत नहीं होने जा रहा है। याद यह भी रखने की जरूरत है कि तूफान ने मात कभी नहीं खायी है।
कवियों को कविता में अपनी राय देने की पूरी छूट है।
प्रधानमन्त्री तेलंगाना पर संसदीय निर्लज्जता के इंतहा के मध्य पास तेलंगाना बिल पास कराने की उपलब्धि गिनाते हुये कठिन फैसले लेने के राष्ट्र की शक्ति का हवाला दे रहे हैं।
सपा के किरणमय नंदा एवं अन्य सदस्यों ने पिछड़े सात सात राज्यों को विशेष दर्जा दिये जाने एवं आर्थिक पैकेज दिये जाने की माँग की है। सदस्यों ने बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडि़शा सहित सात राज्यों की तरक्की के लिये विशेष पैकेज दिये जाने की माँग की। सदस्यों ने रघुराम राजन समिति की सिफारिशों पर गौर किये जाने की माँग की। किरणमय नंदा ने यह मुद्दा उठाते हुये कहा कि केंद्र सरकार उन सात पिछड़े राज्यों को आर्थिक पैकेज देने में नाकाम रही है जिनकी पहचान रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट में की गयी थी। यह माँग बिल्कुल जायज है।
समझ लीजिये कि यह दावानल किस तरह तेलंगाना के इतिहास के पार बाकी देश मे सुनामी परिदृश्य पैदा करने वाला है।
फिलहाल आंध्र के बाद बिहार की हालत सबसे पहले बिगड़ने वाली है। तो अब क्या करेंगे मनमोहन सिंह जबकि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के खिलाफ मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने आगामी एक मार्च को बिहार बंद का आवाहन किया। उधर मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 28 फरवरी को रेल चक्का जाम का आह्वान किया है।
जाहिर है कि सत्ता की राजनीति को न जनहितों की परवाह है और न किसी राज्य की, न जनता की और न देश की।
जो बदलाव की माँग कर रहे हैं वे भी उदात्त घोषणा कर रहे हैं कि वे पूँजीवाद के खिलाफ नहीं है। कॉरपोरट भ्रष्टाचार और पूँजी के खिलाफ लड़े बिना कैसे भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई होती है,ममता को आगे पर कांग्रेस की तर्ज पर नमोमय भारत निर्माण में फेल होने के बावजूद देश की सत्ता अपने ही कब्जा में रखने के संघी प्लानबी से जाहिर है कि ये तमाम दल किस तरह मिलीभगत के साथ देश को आग में झोंकने का काम करते हैं।
तेलगंना की लड़ाई (Battle of Telangana) कोई नयी लड़ाई नहीं है। राज्य पुनर्गठन (State reorganization) के एजेण्डे पर तेलंगाना को सर्वोच्च प्राथमिकता पर होना चाहिए था,जो कभी नहीं हुआ। तेलंगाना की आवाज अनसुनी करते हुये विशुद्ध वोट बैंक के तहत राजनीतिक अस्थिरता और चुनाव महारण के मध्य तेलंगाना अलग राज्य बनाने की यह कार्रवाई तेलंगाना की जनता के साथ सबसे बड़ी मजाक है। जबरन आंध्र को तेलंगाना के खिलाफ मोर्चाबद्ध कर दिया गया है और दोनों तरफ के सिपाहसालार सत्तावर्ग के ही मुख्यमन्त्री, मन्त्री, सांसद, विधायक हैं।
तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का यह फैसला संसदीय निर्लज्जता और वोट बैंक राजनीति के बगैर सर्वदलीय सहमति से किया जाना चाहिए था। लेकिन इस फैसले के साथ ही आंध्र और सीमांध्र के लिये पैकेज की घोषणा करते हुये अपनी टुनावी रणनीति के तहत राज्यों को जो विशेष पैकेज का ऐलान हुआ,उससे सत्ता राजनीति सरेआम नंगी हो गयी है। झारखंड के अलग होने पर बिहार को ऐसे किसी पैकेज से पुरस्कृत नहीं किया गया था और न उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को बँटवारे की क्षतिपूर्ति दी गयी। बिहार यूपी और बंगाल की माली हालत देश भर में वैसे ही सबसे संगीन है। अगर विशेष दर्जा दिया जाना था, तो इन राज्यों के हितों के बारे में भी ईमानदारी से गौर करना था। ऐसा नहीं हुआ। अब आंध्र में आग अभी पूरी तरह सुलगने से पहले ही बिहार को आग के हवाले कर दिया गया।
सत्ता राजनीति पूरे देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकना चाहती है और वह किसी तेलंगाना के हित में नहीं है।
पलाश विश्वास
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