जब मोदी ने केजरीवाल को मिलने का भी वक्त नहीं दिया...
जब मोदी ने केजरीवाल को मिलने का भी वक्त नहीं दिया...
वे, जो अब तक देखते नहीं थे, चाय पर बुला रहे हैं...जब मोदी ने केजरीवाल को मिलने का भी वक्त नहीं दिया...
उनके लिए 'भारत' इंडिया है/ उनके लिए ये वतन नहीं एक कंट्री है और कंट्री को वो 'कम्पनी' की तरह चलाते है। ज्यादातर मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री खुद को 'रहनुमा ' की बजाय
पिछले कुछ सालों में सत्तारूढ़ नेताओ में ऐसे लोगो की भरमार होती रही है जो गद्दीनशीन होते ही अभिमान में चूर हो जाते हैं/ कोई उनका विरोध करे तो उसे 'देश द्रोही' जैसे तमगों से नवाजने लगते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए किसी शायर ने कहा है –
"तुझसे पहले एक शख्स जो यहाँ तख्तनशीं था,
उसको भी अपने खुदा होने का उतना ही यकीं था "
दिल्ली के तख्तोताज पर मरहूम नेहरू, शास्त्री , इंदिरा गांधी और वाजपेयी जैसे नेता आसीन रहे हैं, मगर कभी ये नहीं सुना कि उनमे कोई गरूर था। राजस्थान में हरिदेव जोशी, भैरों सिंह शेखावत और अशोक गेहलोत जैसे लीडर मुख्यमंत्री रहे हैं, मगर उनके धुर विरोधी ने भी कभी उन पर अहंकार का इल्जाम नहीं लगाया। मगर बदलते हुए भारत में ऐसे रहनुमा अवतरित हुए है जो घमंड से लबरेज हैं।
ये भारत के जम्हूरियत की ताकत है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अरविन्द केजरीवाल को चाय पर दावत दी है। मगर वो मंजर लोगों की स्मृति में अब भी दर्ज है जब केजरीवाल पिछले साल 7 मार्च को अहमदाबाद गए और मोदी से मिलने के लिए उनके घर तक गए। किन्तु मोदी ने वक्त नहीं दिया और खाली हाथ लौटा दिया। लोग ये भी नहीं भूले है जब गणतंत्र दिवस पर मोदी सरकार ने केजरीवाल को समारोह के लिए न्योता देने से इंकार कर दिया, बल्कि किरण बेदी को बाइज्जत बुलाया।
ये लोकतंत्र की शक्ति है उसी केजरीवाल को बुलाना पड़ रहा है, लोग अपने रहनुमा में शालीनता, विनम्रता और गरिमा के दर्शन करना चाहते है, मगर नेता हैं कि बार बार गरूर का प्रदर्शन करते है।
- नारायण बारेठ


