जवाहर नवोदय विद्यालय : शिक्षा के क्षेत्र राजीव गांधी का स्वर्णिम योगदान
आपकी नज़र | हस्तक्षेप सच्ची बात तो यह है कि न्यूनतम खर्च में नवोदय जैसा उच्चतम गुणवत्ता युक्त प्राथमिक शिक्षा का केंद्र कोई है ही नहीं। राहुल गांधी का यह कहना भी सही है कि आधुनिक शिक्षा ही न्याय की लड़ाई की सबसे बड़ी शक्ति है।
Jawahar Navodaya Vidyalaya: Golden contribution of Rajiv Gandhi in the field of education.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीती 14 जनवरी को शुरू हुई मणिपुर से शुरू हुई ‘भारत जोड़ों न्याय यात्रा’ पर हैं, जिस पर पूरे की निगाहें टिकी हुई हैं। इस यात्रा के दौरान उनकी पहली रैली 30 जनवरी को गांधी जी के बलिदान दिवस पर बिहार के पूर्णिया मे हुई, जानकारों के मुताबिक इस रैली में दो लाख से अधिक लोग उनको सुनने के लिए आए। लेकिन यह रैली लोगों की उमड़े जन सैलाब से अधिक अपने क्रांतिकारी संदेश के लिए सामाजिक न्याय के इतिहास के पन्नों में जगह बना चुकी है।
राहुल गांधी ने पूर्णिया रैली में जो सवाल उठाए उसकी अनुगूँज दूर तक सुनाई पड़ना तय है। उन्होंने वहां जोर देकर कहा कि देश में 500 बड़ी कंपनियों की लिस्ट निकाल लीजिए और ढूंढिए कि उनमें कितनों के मालिक और मैनेजर दलित, आदिवासी, पिछड़े हैं? कितने हॉस्पिटल दलित, आदिवासी, पिछड़ों के हैं? इसी तरह अखबारों और टीवी के कितने मालिक दलित, आदिवासी, पिछड़े हैं?
उन्होंने अपने सम्बोधन के अंत में जो कुछ कहा, वह तो भारत के सामाजिक न्याय के इतिहास की अमर पंक्तियों में शुमार हो चुका है। उन्होंने कहा, ‘आर्थिक और सामाजिक न्याय सबसे बडा मुद्दा है। यदि आप हिंदुस्तान का भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो देश की जनता को आर्थिक और सामाजिक न्याय देना होगा!’
पूर्णिया से आर्थिक और सामाजिक न्याय का बेजोड़ संदेश देने वाले वही राहुल समय निकाल कर वहां का नवोदय विद्यालय देखने चले गए, जहां छात्राओं ने रांमधुन से उनका स्वागत किया। उन्होंने क्लास रूम मे बैठकर वहां के छात्राओं से तरह- तरह के सवाल करने के साथ उनकी आकांक्षाएं जानने का प्रयास किया। यह देखकर उन्हें सुखद विस्मय हुआ कि डॉक्टर, इंजीनियर बनने के साथ बहुत सी छात्राएं उनकी तरह राजनेता बनना चाहती हैं। उनके मध्य कुछ समय गुजारने के बाद राहुल गांधी नवोदय विद्यालय के संस्थापक अपने पिता राजीव गांधी को लेकर एक इंस्टाग्राम पर जो उद्गार व्यक्त किया, उससे नवोदय विद्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया है।
उन्होंने लिखा है, ‘कल पूर्णिया में जवाहर नवोदय विद्यालय जाकर पापा की याद आ गई। नवोदय विद्यालय ने 1986 से ग्रामीण भारत को नाम मात्र फीस में सिर्फ उच्च गुणवत्ता की प्राथमिक शिक्षा ही नहीं उपलब्ध कराई, बल्कि एक लाख से भी कम वार्षिक आय वाले परिवारों के लाखों बच्चों को एक ‘लेवेल प्लेइंग फील्ड‘ दिया। नवोदय विद्यालयों ने गरीब और वंचित बच्चों के लिए आईआईटी जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों के दरवाजे खोले, छोटे–छोटे गाँव से आने वाले बच्चों को बड़े सपने दिए। आज जब देश के उपेक्षित और पिछड़े क्षेत्रों में ‘जवाहर नवोदय विद्यालय’ को ज्ञान की रोशनी फैलाते देखता हूँ तो गर्व होता है। आधुनिक शिक्षा ही न्याय की लड़ाई की सबसे बड़ी शक्ति है।‘
कल पूर्णिया में जवाहर नवोदय विद्यालय जाकर पापा की याद आ गई। नवोदय विद्यालय विकसित भारत के उनके विज़न का एक अहम हिस्सा था।
नवोदय विद्यालय ने 1986 से ग्रामीण भारत को नाम मात्र फीस में सिर्फ उच्च गुणवत्ता की प्राथमिक शिक्षा ही नहीं उपलब्ध कराई, बल्कि एक लाख से भी कम वार्षिक आय वाले… pic.twitter.com/oWfMu7UgBv
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 31, 2024
राहुल गांधी ने नवोदय विद्यालयों को ले कर जो कुछ कहा है, कम कहा है। सच्ची बात तो यह है कि न्यूनतम खर्च में नवोदय जैसा उच्चतम गुणवत्ता युक्त प्राथमिक शिक्षा का केंद्र कोई है ही नहीं। राहुल गांधी के इस कथंन में भी शत प्रतिशत है कि सच्चाई नवोदय विद्यालयों ने गरीब और वंचित बच्चों के लिए आईआईटी जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों के दरवाजे खोले, छोटे–छोटे गाँव से आने वाले बच्चों को बड़े सपने दिए। आज की तारीख में इस लेखक के दलितों में जितने भी परिचित सफल युवा डॉक्टर, इंजीनियर हैं, उनमें प्रायः 70 प्रतिशत ही नवोदय के प्रोडक्ट हैं। हमारे चचेरे बड़े भाई सरकारी नौकरी न कर खेती पर निर्भर रहकर परिवार का भरण-पोषण करते रहे। आज उनके दो पोते नवोदय विद्यालय में अवसर पाकर डॉक्टर और इंजीनियर बनने जा रहे हैं।
राहुल गांधी का यह कहना भी सही है कि आधुनिक शिक्षा ही न्याय की लड़ाई की सबसे बड़ी शक्ति है। शिक्षा की शक्ति का शायद सबसे पहले इल्म राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी को अपने परिवार के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से हुआ इसलिए ही वह नवोदय विद्यालयों की स्थापना की दिशा में आगे बढ़े।
शिक्षा की अहमियत समझने के मामले में शायद राजीव गांधी के नाना पंडित जवाहर लाल नेहरू सबसे आगे रहे। नियति के साथ किए वादे को पूरा करने के लिए जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू देश के नवनिर्माण की दिशा में आगे बढ़े तो शिक्षा की दुर्दशा उनकी नजरों से अगोचर न रह सकी। आजादी के समय देश की आबादी 36 करोड़ थी, मगर साक्षरता सिर्फ 18 प्रतिशत। इनमें महिलाओं की स्थिति अत्यंत कारुणिक थी। उनकी शिक्षा दर देश में 9 प्रतिशत से भी कम थी। महिलायें बहुत कम पढ़ी-लिखी थीं। किन्तु आज हालात बदल गए हैं तो उसके पीछे बुनियादी काम नेहरू का है। 2021 के आंकड़ों के मुताबिक साक्षरता 77.7 प्रतिशत हो गई थी, जिनमें पुरुष और महिलाओं का शिक्षा दर क्रमशः 84.7 और 70.3 था। देश में शिक्षा पर कितना काम हुआ, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में कितने स्कूल हैं। आजादी के समय सिर्फ डेढ़ लाख स्कूल थे। आज उनकी संख्या बढ़कर 15 लाख से ज्यादा हो गई है।
उच्च शिक्षा हर क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट के रास्ते खोलती है
हायर एजुकेशन पर फोकस किए बिना ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में झंडे नहीं गाड़े जा सकते, इस बात का इल्म भारत के शिल्पकार नेहरू को था और उन्होंने इस दिशा में काम किए। आजादी के वक्त देश में सिर्फ 20 यूनिवर्सिटीज और 404 कॉलेज थे। आज देश मे 1043 यूनिवर्सिटी और 42303 कॉलेज हैं। 1948 मे सिर्फ 30 मेडिकल कॉलेज थे, आज 541 हैं। आजादी के समय 36 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, जिनमें सालाना 2500 छात्रों को दाखिला मिलता था। आज देश में 2500 इंजीनियरिंग कॉलेज, 1400 पॉलीटेक्निक और 200 प्लानिंग आर्किटेक्चर कॉलेज है। साथ ही आज देश में 23 आईआईटी, आईआईएम और 25 एम्स है तो इनके पीछे बुनियादी काम नेहरू का है और यदि दलगत हिसाब से देखा जाए तो शिक्षा का महल खड़ा करने में 90 प्रतिशत योगदान कांग्रेस सरकारों का है।
बहरहाल जिस नेहरू ने देश में शिक्षा का महल खड़ा करने का आधारभूत काम किया, उनका खास योगदान केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना में है।
नवोदय विद्यालय के पहले केन्द्रीय विद्यालय जैसी सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अन्यत्र दुर्लभ थी। यह लेखक दलित होकर भी कभी नौकरी के आरक्षण की सुविधा नहीं लिया। पूरे जीवन में मैंने आरक्षण की सुविधा एक बार लिया अपने बड़े बेटे का केन्द्रीय विद्यालय में एडमिशन दिलाने में। आज अगर मैँ लेखन कर पाने की स्थिति में हूँ तो इसलिए कि केन्द्रीय विद्यालय में एडमिशन पाकर मेरा बेटा इतना बड़ा जॉब पा गया कि मुझे अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक तौर पर लेखन में लगे रहने कोई दिक्कत ही नहीं हुई।
यूं तो केन्द्रीय विद्यालय एएमसी को अप्रैल 1944 मे एक प्राथमिक विद्यालय के रूप में कर्नल डीएन चक्रवर्ती के रूप मे स्थापित किया गया था और उन्हें जूनियर हाई स्कूल के रूप में मान्यता दी गई। किन्तु बाद में 1951 में इस विद्यालय को नेहरू के राज में 15 दिसंबर, 1963 को स्थापित केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने केन्द्रीय विद्यालय के रूप में अपनाया। केवीएस का विजन और मिशन रहा रक्षा तथा अर्द्धसैनिक बलों के कार्मिकों सहित केन्द्रीय सरकार के स्थानांतरणीय कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा के एक समान पाठ्यक्रम के तहत शिक्षा प्रदान कर उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करना। विद्यालई शिक्षा को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचाना और केवीएस उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षिक प्रयासों के माध्यम से उत्कृष्टता प्रपात करने के लिए ज्ञान/मूल्यों को प्रदान करने और अपने छात्रों की प्रतिभा, उत्साह और रचनात्मकता का पोषण करने मे विश्वास रखता है।
एक दशक पूर्व तक इस लेखक की धारणा थी कि न्यूनतम खर्च में केन्द्रीय विद्यालयों जैसी क्वालिटी एजुकेशन कहीं नहीं मिल सकती, पर अब राजीव गांधी द्वारा 1986 मे स्थापित जवाहर नवोदय विद्यालयों ने उस धारणा को तोड़ दिया है।
दरअसल जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा से लेकर राजीव गांधी तक केन्द्रीय से लेकर नवोदय विद्यालयों की स्थापना के पीछे खास मकसद सदियों से हिन्दू धर्म शस्त्रों के प्रवधानों द्वारा शिक्षा से महरूम किए दलित, आदिवासी जैसे वंचित समुदायों को शिक्षा से समृद्ध करना रहा, ताकि इसके जरिए वे न सिर्फ सदियों के अन्याय से लड़ सकें, बल्कि राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ सकें। इसके लिए कांग्रेस नेताओं द्वारा अतिरिक्त प्रयास हुए।
इस विषय में दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद की यह टिप्पणी काबिले गौर है। उन्होंने लिखा है, ’अस्पृश्य और आदिवासियों को स्वतंत्रता पूर्व ही शिक्षा का अधिकार दे दिया गया था, लेकिन क्या दलितों को महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में शिक्षक नहीं बनना चाहिए था ?
इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान दिया, जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक पदों पर आरक्षण के लिए सहमति दी। इसके आगे दलित शिक्षा में गुणवत्ता के सम्बन्ध में श्रीमती गांधी ने उसी समयावधि में केन्द्रीय विद्यालयों में अनुसूचित जाति/ जनजाति के बच्चों को आरक्षण देने का निर्णय लिया। आपातकाल के दौरान ही उनके लिए आई.आई.टी. के द्वार खुले। इसी समय में ठोस दलित मध्यम वर्ग की जड़ें गहरी हुईं। अन्य मुद्दों जैसे न्यायालयों में उच्च स्तर पर अनुसूचित जाति / जनजाति के न्यायधीशों की नियुक्ति की समस्या को इंदिरा गांधी ने ही सुलझाया।’
इंदिरा गांधी ने दलित- आदिवासियों के हित में यह काम कुख्यात इमरजेंसी के दौरान किया था। आज सवाल पैदा होता है जो मोदी सरकार उच्च वर्णों के हित में कांग्रेस सरकारों द्वारा खड़े किए गए सभी कल- कारखाने, रेलवे, बंदरगाह, हवाई और बस अड्डों, हास्पिटल, स्कूल- कॉलेज सहित सर कुछ निजी क्षेत्र में देने पर आमादा है, क्या उसके निशाने से केन्द्रीय और नवोदय विद्यालय बचे रह पाएंगे !
एच एल दुसाध


