आजकल लिखी और सुनाई जाने वाली उर्दू शायरी में अधिकतर बकवास होता है। अधिकतर उर्दू त्यौहार या मुशायरे पैसे कमाने के रैकेट होते हैं, और तथाकथित शायर घटिया चीजें लिखते और पढ़ते हैं, लेकिन अक्सर भारी मात्रा में शुल्क वसूलते हैं।

मिर्ज़ा ग़ालिब ने कभी किसी शायर की शायरी को 'दाद' नहीं दिया जब तक कि वो संतुष्ट न हो जाते कि शेर सचमुच प्रशंसा के लायक हैं (देखें हाली की ग़ालिब पर जीवनी)।

लेकिन आजकल लोग सस्ते, बेमतलब के शेरों पर भी अक्सर बिना समझे वाह-वाह चिल्लाते हैं।

समकालीन हिंदी कविता, हिंदी कवियों और कवि सम्मेलनों के बारे में भी यही सत्य है।

जस्टिस मार्कंडेय काटजू

लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।

Democracy means the people are supreme : Justice Markandey Katju interacts with law students