जागेंद्र सोते हुओं को नहीं, सोने का बहाना कर आँख मूंदे हुओं को जगा रहा था
जागेंद्र सोते हुओं को नहीं, सोने का बहाना कर आँख मूंदे हुओं को जगा रहा था
आँख नम होना दूर कुछ ठेकेदार पत्रकार तो आरोपी की हिमायत में खड़े हैं
उसने भी कहा था न उसकी हत्या हो जायेगी। वह जागेंद्र था। सोते हुओं को नहीं, सोने का बहाना कर आँख मूंदे हुओं को जगा रहा था।
मलाल तो यह कि खुद जागेंद्र की पत्रकार बिरादरी भी आँख मूंदे पड़ी है।
सरोकार से जुड़े इने-गिने पत्रकारों को छोड़ दें, तो मुख्यधारा के पत्रकारों की तो आँख भी नम होती नहीं दिखी। आँख नम होना दूर कुछ ठेकेदार पत्रकार तो आरोपी की हिमायत में खड़े हैं।
बड़े सुर और सूरमा खामोश हैं। मैंने स्टार पत्रकार रवीश कुमार का राम जेठमलानी को लिखा पत्र पढ़ा। बहुत काँटे का पत्र था।
मुझे नहीं पता रवीश कुमार ने अपने इस पत्रकार साथी पर कुछ लिखा या नहीं।
कितने अखबारों ने पत्रकार जागेंद्र पर संपादकीय लिखे.... कितने पत्रकारों का अंतर्मन रोया .. पता नहीं।
अचानक इस कविता पर निगाह पड़ी। क्या ऐसे ही किसी पल में रघुवीर सहाय ने हमारे जैसों के लिए ही कही होगी यह कविता...
संध्या नवोदिता


