जाति के मिथक को तोड़कर कर्नाटक की जनता ने काँग्रेस को जिताया है- सिद्दरमैया
जाति के मिथक को तोड़कर कर्नाटक की जनता ने काँग्रेस को जिताया है- सिद्दरमैया
जनता जातियों के बन्धन से बाहर निकल चुकी है
जब बड़ी-बड़ी कम्पनियों को इनकम टैक्स में हज़ारों करोड़ की छूट दी जाती है तो वह भी तो सरकारी खजाने से ही जाती है लेकिन उसके खिलाफ कोई नहीं लिखता
कर्नाटक के मुख्यमन्त्री, सिद्दरमैया ने जाति को प्राथामिकता देने की मुख्यमन्त्रियों की रिवायत से साफ़ मना दिया है। उन्होंने अपनी जाति के किसी भी आदमी को अपने निजी स्टाफ में जगह नहीं देने की घोषणा कर दी है। अपने मन्त्रियों को भी उन्होंने सलाह दी है कि वे जाति के शिकंजे से बाहर आने की कोशिश करें। पुराने समाजवादी रहे सिद्दरमैया के इस एक फैसले ने उनको अपने पूर्ववर्ती मुख्यमन्त्री, राम कृष्ण हेगड़े की कतार में खड़ा कर दिया है। उन्होंने एक बातचीत में बताया कि भारत सब का है और आज़ादी की लड़ाई का जो इतिहास है उसके इथॉस के बाहर जाने का कोई मतलब ही नहीं है। अगर अपने निजी स्टाफ की भर्ती में ही नेता जातिवादी हो जायेगा तो वह जातिवाद को ख़त्म करने के अपने मकसद में कैसे कामयाब होगा। हालाँकि राजनीतिक प्रबन्धन के काम में सिद्दरमैया जातियों के महत्व को कम नहीं मानते। उन्होंने अहिन्दा की राजनीति को अपनी जीत की धुरी बनाया है। अ यानी अल्पसंख्यक, हिन्दुलिगा यानी ओबीसी और दा यानी दलित। इन तीनों वर्गों के नेता के रूप में अगर उनको मान्यता मिल गयी तो कर्नाटक में जीत के लिये लिंगायत या वोक्कालिगा होने की जो परम्परा है वह ख़त्म हो जायेगी। कर्नाटक विधान सभा के चुनावों में काँग्रेस को मिले स्पष्ट बहुमत ने दक्षिण भारत से भाजपा की राजनीति को ख़त्म कर दिया था। काँग्रेस को इस राज्य में मिली जीत के बाद लोकसभा 2014 के लिये भी हौसला अफजाई हुयी थी। उत्तर भारत में रहने वालों के लिये इस नई इबारत को समझना थोड़ा मुश्किल माना जाता है। इसी गुत्थी को सुलझाने के लिये कर्नाटक के मुख्यमन्त्री, सिद्दरमैया से एक ख़ास बातचीत की गयी। सिद्दरमैया काँग्रेस की राजनीति में थोड़ा नये हैं। इसलिये उनसे यह समझने की कोशिश भी की गयी की किस तरह से उन्होंने न केवल भाजपा की सत्ता को बेदखल किया बल्कि काँग्रेस के अन्दर मौजूद बड़े नताओं की इच्छा के खिलाफ काँग्रेस आलाकमान की मंजूरी हासिल की और मुख्यमन्त्री बने। हस्तक्षेप.कॉम के संरक्षक वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह के साथ हुयी उनकी बातचीत के कुछ प्रमुख अंश -
- कर्नाटक में भाजपा का शासन मजबूती से कायम हुआ था। बी एस येदुरप्पा बहुत ही ज्यादा मजबूती से जमे हुये थे। भाजपा से हटकर आपके पक्ष में कब महौल बनना शुरू हुआ ?
— जब जनता दल ( एस ) और भाजपा की संयुक्त सरकार बनी थी तो बीस- बीस महीने के लिये सत्ता के बँटवारे की बात हुयी थी। एच. डी. देवेगौड़ा ने अपने बेटे कुमारस्वामी को तो मुख्यमन्त्री बनवा दिया लेकिन जब बी एस येदुरप्पा का नम्बर आया तो तिकड़म करके उनको सत्ता से दूर रखा। उसके बाद जनता की सहानुभूति येदुरप्पा के साथ हो गयी। जब दोबारा चुनाव हुआ तो भाजपा को सरकार बनाने का अवसर मिला। लोगों की सहानुभूति येदुरप्पा के साथ थी और उसी सहानुभूति के बल पर वे जीत गये लेकिन सत्ता में आते ही येदुरप्पा ने भ्रष्टाचार का राज स्थापित कर दिया और जनता से पूरी तरह से कट गये। बेल्लारी में रेड्डी भाइयों ने खनिज सम्पदा की लूट मचा दी, येदुरप्पा खुद भी उस से होने वाले लाभ में शामिल थे। यहाँ तक कि केन्द्र में भी भाजपा के कुछ नेताओं तक लाभ पहुँच रहा था। कर्नाटक में भ्रष्टाचार के शासन के खिलाफ माहौल बन रहा था। इसी बीच लोकायुक्त की रिपोर्ट आ गयी जिसके बाद सारी दुनिया को मालूम हो गया कि येदुरप्पा एक भ्रष्ट मुख्यमन्त्री थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी भ्रष्टाचार पर काबू करने के लिये संविधान में प्रदत्त तरीकों का इस्तेमाल किया। नतीजा यह हुआ कि भाजपा और येदुरप्पा भ्रष्टाचार के पर्यायवाची बन गये। चारों तरफ से येदुरप्पा के इस्तीफे की माँग हो रही थी लेकिन दिल्ली में बैठे भाजपा के वे नेता जिनको खनिज माफिया से लाभ मिलता था, मुख्यमन्त्री के खिलाफ कोई भी ऐक्शन लेने को तैयार ही नहीं थे। उसी के बाद हमने विधान सभा के अन्दर धरना दिया। मीडिया ने इस धरने को रिपोर्ट किया। हम सीबीआई जाँच की माँग कर रहे थे। जनार्दन रेड्डी ने धमकाया कि अगर हिम्मत है तो बेल्लारी आइये। उसी के बाद मैंने बंगलूरू से बेल्लारी की पदयात्रा की। 325 किलोमीटर की यह दूरी सोलह दिन में तय की गयी और खनन माफिया और उनके समर्थक मुख्यमन्त्री और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया। उसके बाद मैंने राज्य के अन्य इलाकों में भी यात्रायें की। हिन्दुत्व की प्रयोग्शाला कहे जाने वाले इलाके तटीय कर्नाटक में भी यात्रा की और भाजपा के भ्रष्ट शासन के खिलाफ माहौल बना तो भ्रष्टाचार की प्रतिनिधि सरकार के जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।
- आप पुराने समाजवादी हैं। काँग्रेस के आलाकमान कल्चर में आप का न जाने कैसे एडजस्टमेन्ट हो गया। काँग्रेस के स्थापित नेताओं ने आपको कैसे स्वीकार किया ?
— हमारी पार्टी की सबसे बड़ी नेता सोनिया गाँधी हैं। उनकी इच्छा थी कि कर्नाटक को भ्रष्टाचार से मुक्त किया जाये। इसीलिये उन्होंने मुझे काँग्रेस में शामिल किया था। जब राहुल गाँधी ने जयपुर चिंतन शिविर में कहा कि ईमानदार पार्टी कार्यकर्ताओं को आगे महत्व दिया जायेगा तो मुझे अंदाज़ लग गया था कि आने वाले समय में काँग्रेस में मेरे जैसे मेहनत करने वाले लोगों को महत्व मिलेगा।
- क्या आपको वादा किया गया था कि अगर काँग्रेस को सत्ता मिलेगी तो आपको मुख्यमन्त्री बनाया जायेगा ?
— बिलकुल नहीं। लेकिन विपक्ष के नेता के रूप में मुझे काम करने का मौक़ा देकर काँग्रेस आलाकमान ने मुझे पर्याप्त सम्मान दे दिया था। जहाँ तक मुख्यमन्त्री पद की बात है मैंने उसके बारे में सोचकर कोई काम नहीं किया था। हाँ यह पक्का था कि सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने देश के सामने जिस तरह की काँग्रेस की राजनीति का वादा किया था उसमें मेहनत करने वाले को अपने आप बढ़त मिल जाती है।
- कर्नाटक की राजनीति में जातियों की बहुत प्रमुखता रही है। आपने वोक्कालिगा और लिगायत न होते हुये भी किस तरह से जातियों के जंगल से निकल कर सफलता पायी ?
— कर्नाटक विधानसभा के चुनावों ने इस बार साबित कर दिया है कि जनता जातियों के बन्धन से बाहर निकल चुकी है। इस चुनाव में काँग्रेस को सभी जातियों के वोट मिले हैं और सभी जातियों के नेता काँग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर मौजूद हैं। इन चुनावों में लिंगायत जाति के पचास विधायक जीतकर आये हैं जिनमें से 29 काँग्रेस के हैं, भाजपा में केवल दस विधायक लिंगायत हैं। बी एस येदुरप्पा की पार्टी के केवल छह विधायक चुने गये हैं। वोक्कालिगा जाति के 53 विधायक हैं। जिनमें से बीस काँग्रेस के पास हैं। अपने आपको वोक्कालिगा नेता बताने वाले देवेगौड़ा की पार्टी में केवल 18 विधायक वोक्कालिगा हैं। अनुसूचित जाति के 35 विधायकों में से 17 काँग्रेस में हैं। अनुसूचित जनजाति के 19 विधायकों में से 11 काँग्रेस में हैं। ओबीसी विधायकों के संख्या 36 है जिनमें से 27 काँग्रेस में हैं, 11 मुसलमान जीतकर आये हैं जिनमें से नौ काँग्रेस में हैं। ईसाई, जैन और वैश्य समुदाय के सभी विधायक काँग्रेस के साथ हैं। इस तरह से किसी ख़ास जाति का नेता बनने की राजनीति करने वालों को कर्नाटक की जनता ने कोई महत्व नहीं दिया है।
- विधानसभा में काँग्रेस को मिली जीत, भाजपा और येदुरप्पा के खिलाफ नेगेटिव वोट है। ऐसा बहुत सारे लोग कहते रहते हैं। क्या इस जीत को आप लोकसभा के अगले साल होने वाले चुनावो में भी जारी रख सकेंगे?
— यह नेगेटिव वोट नहीं है। हम इसको आगे भी जारी रखेगें और लोकसभा चुनाव 2014 में कम से कम बीस सीटें जीतेंगे।
— अपनी जीत से आगे भी राजनीतिक जीत सुनिश्चित करने के लिये क्या आप कुछ ज़रूरी क़दम उठायेंगे ?
— हम उठा चुके हैं। विधान सभा में दिये गये अपने पहले भाषण में ही मैं ऐलान कर दिया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के सारे क़र्ज़ माफ़ कर दिये गये हैं। यह वह क़र्ज़ है जो इन समुदायों के लिये बनाये गये सरकारी कॉरपोरेशन की ओर से इन लोगों पर बकाया था। मेरे ऊपर आरोप लगा कि इस तरह से तो सरकारी खज़ाना ही खाली हो जायेगा। लेकिन मैंने साफ़ कह दिया कि कोई भी इंसान शौकिया क़र्ज़ नहीं लेता। मेरे एक साथी ने कह दिया कि जब बड़ी-बड़ी कम्पनियों को इनकम टैक्स में हज़ारों करोड़ की छूट दी जाती है तो वह भी तो सरकारी खजाने से ही जाती है लेकिन उसके खिलाफ कोई नहीं लिखता। इसी तरह से जब मैंने फैसला किया कि राज्य के 98 लाख बीपीएल परिवारों को एक रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से प्रति महीने के हिसाब से 30 किलो चावल दिया जायेगा तो भाजपा ने हल्ला मचाया।। मीडिया ने भी कहा कि करीब 4 हज़ार करोड़ रूपये सालाना का जो नुक्सान होगा उसकी भरपाई कहाँ से होगी। मेरा मानना है कि कर्नाटक का बजट एक लाख बीस हज़ार करोड़ का है। और अगर उस में से चार हज़ार करोड़ गरीब की भूख मिटाने के लिये दे दिया जायेगा तो उसमें कोई परेशानी नहीं होने चाहिये।


