जाति न पूछो साधो की, जाति से स्थाई है मनुस्मृति राज!
जाति न पूछो साधो की, जाति से स्थाई है मनुस्मृति राज!
पलाश विश्वास
जाति न पूछो साधो की, जाति से स्थाई है मनुस्मृति राज!
इस तिलिस्म को तोड़ने का मौका फिर हम गवाँने लगे क्योंकि हम आखिरकार रंगबिरंगे बजरंगी हैं!
क्योंकि इस वानर जनम में आर्यसभ्यता अब किसी को बोलने या लिखने, सीखने या चीखने की भी आजादी नहीं देगी। हम उसी मनुस्मृति को ही सारी ताकत झोंककर निरंकुश बना रहे हैं।
सत्तावर्ग ने लगातार कन्हैया के खिलाफ हमला जारी रखकर पूरी बहस कन्हैया के नायकीकरण और खलनायकीकरण पर या पिर रोहित वेमुला के महिमामंडन या उसकी निंदा की अंध गली में भटका दी है और मनुस्मृति तो बाबासाहेब ने भी जला दिया था, तो वह अब भी जैसे राजकाज का विमर्श और राष्ट्रीयता का आधार है, मुकम्मल अर्थव्यवस्था है नरसंहारी और रंगभेदी, वह सिलसिला टूटते हुए नहीं दीख रहा है।
सत्ता वर्चस्व का रसायन यही है। हम हमशक्ल भाइयों के राजकाज में तबाह होते हुए, मारे जाते हुए फिर वही असुर दैत्य, दानव, राक्षस और वानर प्रजाति के लोग हैं।
इसी वजह से संघ सत्ता की पैदल फौज में शामिल बहुजनों को बजरंगी होने में बिना पूंछ वानर बनकर रामराज्य के मनुस्मृति शासन से कोई परहेज नहीं है और जाति विमर्श ही हमारा ज्ञान विज्ञान है।
मुझे यह कहते हुए अफसोस है कि इस अंधकूप में इच्छा अनंत छलांग के बावजूद समता और न्याय के सपने से हम बहुत दूर है।


