जाने वाला साल बहुत तूफानी रहा, आने वाला साल उससे भी तूफानी रहने वाला है
संदीप राउज़ी

जाने वाला साल बहुत तूफानी रहा,
आने वाला साल उससे भी तूफानी रहने वाला है। बीता साल सड़कों पर आमने सामने संघर्ष के नाम रहा, उस नौजवान पीढ़ी के नाम रहा, जिसने इमरजेंसी के बाद की सबसे धूर्त और ख़तरनाक सरकार से लोहा लिया।
बीते सालों में विश्वविद्यालयों को बंजर बना देने की कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद, हमारे विद्वान और जुझारू छात्र छात्राओं ने सरकार को नाकों चने चबवा दिए।
रोहित वेमुला से लेकर कन्हैया और नजीब तक के मुद्दों पर नौजवानों ने प्रतोरोध की शानदार नज़ीर पेश की। आज़ादी और जय भीम लाल सलाम का नारा पहली बार पूरे देश ने सुना।
पहली बार कश्मीर पर भारतीय शासक वर्ग के चेहरे पर इतने छर्रे लगे कि आने वाले कई साल तक वे दाग मिट नहीं पाएंगे। ये समानांतर मीडिया के बूते हो सका।
2016 की उपलब्धि सोशल और समानांतर मीडिया की दस्तक का भी साल है, जिसके हस्तक्षेप ने मुख्य धारा की मीडिया को भी वांटेड मुद्दे की ओर मोड़ दिया।
जल जंगल ज़मीन की लड़ाई में आदिवासी जनता पर जुल्म बढ़े लेकिन सबसे अच्छी बात रही कि दलित बहुजन संघर्ष में उनकी भी आवाज़ शामिल हुई।
बीता साल रेडिकल दलित राजनीति के उभार का भी साल रहा।
ऊना पिटाई कांड ने पूरे देश में आक्रोश की लहर पैदा की। दो 2.5 दशकों बाद पहली बार ज़मीन के बंटवारे का मुद्दा केंद्रीय प्रश्न की संभावना के साथ उठा।
पूँजी शासित दुनिया में लगातार अपनी आवाज़ खोते मज़दूर वर्ग ने अपनी कमाई को लुटने से रोकने के लिए बैंगलोर में जो बहादुराना संघर्ष किया, वो आने वाले समय के लिए सबक होगा। इस संघर्ष की ही देन है कि पीएफ पर नज़र गड़ाने वाली मोदी सरकार को बैरन पीछे लौटना पड़ा।
नव उदारीकरण के 25 वर्षों में पहली बार चौतरफा असंतोष और आक्रोश का माहौल है। उदारीकरण ने इतने सालों में इतनी गैर बराबरी बढ़ाई कि अब उसके दुष्प्रभाव सामने आने शुरू हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ये असंतोष brexit और ट्रम्प फिनोमिना के रूप में सामने आया है।
2011 से उठा उठा चक्रवात अभी और ज़ोर पकड़ेगा। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर। इसलिए नए साल की शुभकामनाएं इस एहतियात के साथ कि 2017 में और कमर कसी रखनी होगी।
इसी के साथ आप सभी को मंगल कामना।
Happy New Year!