जारी है बसपा राज में ‘गुंडा अदालत’
जारी है बसपा राज में ‘गुंडा अदालत’
जेपी सिंह
बसपा में न तो दागी विधायकों की कमी है, न मंत्रियों की। बसपा विधायक शेखर तिवारी, पुरुषोत्तम द्विवेदी और आनंद सेन यादव हत्या व बलात्कार के मामले में जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री बाबूसिंह कुशवाहा पर सीबीआई जांच की तलवार लटक रही है। मुजफ्फरनगर के बसपा विधायक शाहनवाज राणा अपहरण और दुष्कर्म की कोशिश केमामले में बसपा से निलंबित हो चुके हैं। बसपा विधायक योगेंद्र सागर इसी तरह के विवादों के घेरे में हैं। माफिया बृजेश सिंह का भतीजा और बसपा विधायक सुशील कुमार सिंह हत्या, वसूली, ठेकेदारी आदि के दस मामलों में, बसपा सांसद धनंजय सिंह हत्या, अपहरण, ठेकों में दखल के साथ पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक बच्ची लाल की हत्या, बसपा एमएलसी संजीव द्विवेदी जेलर आरके तिवारी हत्याकांड सहित कई मामलों में, बसपा एमएलए जितेंद्र सिंह बबलू कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के मकान में आग लगाने सहित कई मामलों में, उसौली के बसपा विधायक चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू संत ज्ञानेश्वर हत्याकांड के षड्यंत्र में, बसपा नेता इंतिजार आब्दी बॉबी कांग्रेस अध्यक्ष के घर में आगजनी और उपद्रव के आरोप में और बसपा विधायक इस्मानुल हक गंभीर अपराध में जेल की सलाखों केपीछे हैं। लेकिन बसपा केही एक और विधायक हैं इकबाल ठेकेदार, जो बिजनौर के चांदपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और जो समानांतर अदालत चलाते हैं। इसी समानांतर अदालत को आम बोलचाल की भाषा में ‘गुंडा अदालत’ कहा जाता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह मामला वर्ष 2009 में एक जनहित याचिका के माध्यम से उठाया गया था। हाईकोर्ट ने बिजनौर के जिला जज की रिपोर्ट भी मांगी थी, जिसमें इस तथ्य की पुष्टि भी हुई थी। लेकिन जनहित याचिका के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश के क्रम में यह जनहित याचिका इसलिए खारिज कर दी गई थी कि याचिकाकर्ता शेरबाज खान बसपा विधायक इकबाल ठेकेदार का राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी है। हालांकि कोर्ट ने प्रदेश के महाधिवक्ता के इस वादे पर विश्वास व्यक्त किया कि इस प्रकरण में राज्य विधानमंडल उपयुक्त कदम उठाएगा और ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होने देगा कि राज्य विधानमंडल और न्यायपालिका के बीच टकराव हो। बीते साल 16 जुलाई के इस फैसले के बाद भी बिजनौर में इकबाल ठेकेदार की ‘गुंडा अदालत’ निर्बाध रूप से चल रही है और सरकार व बसपा सुप्रीमो मुख्यमंत्री मायावती ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे विधायक इकबाल ठेकेदार की ‘गुंडा अदालत’ पर रोक लगती।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी और न्यायमूर्ति काशीनाथ पांडेय की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि इस मामले को राज्य विधानसभा केअध्यक्ष केसमक्ष रखा जाए और राज्य विधानमंडल बिना किसी पूर्वाग्रह के कि प्रतिवादी इकबाल ठेकेदार बसपा विधायक हैं, उनकेविरुद्ध बिना किसी भेदभाव के जांच करेगी और उनके दोषी पाए जाने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई करेगी। खंडपीठ ने सदन केनेता पर इस विश्वास के साथ इस मामले को छोड़ दिया कि वे विधायक इकबाल ठेकेदार के विरुद्ध उपयुक्त कार्रवाई करेंगे और जो दस्तावेज व जिला जज बिजनौर की रिपोर्ट है, उस पर विश्वास करेंगे।
ज्ञातव्य है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीके प्रसाद और न्यायमूर्ति अरुण टंडन की खंडपीठ बिजनौर केजिला जज द्वारा गठित तीन सदस्यीय न्यायिक समिति की रिपोर्ट देखकर अवाक रह गई थी, जिसमें बिजनौर केचांदपुर विधानसभा क्षेत्र से बसपा विधायक मोहम्मद इकबाल उर्फ ठेकेदार द्वारा ‘गुंडा अदालत’ चलाए जाने की पुष्टि की गई थी। खंडपीठ ने रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों को अत्यंत गंभीर व अत्यंत विक्षुब्धकारी बताते हुए प्रमुख सचिव गृह, उ.प्र. शासन और जिलाधिकारी, बिजनौर व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, बिजनौर को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि बसपा विधायक मोहम्मद इकबाल उर्फ ठेकेदार समानांतर अदालत न चला पाएं। बसपा विधायक पिछले चार साल से ‘गुंडा अदालत’ संचालित कर रहे हैं, जिसमें पैसे वसूलकर दीवानी से लेकर फौजदारी तक के मामले निपटाए जाते हैं। न्यायमूर्ति अम्बवानी और न्यायमूर्ति पांडेय की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि वह इसमें अपनी कोर्ट फाइंडिंग दर्ज नहीं कर रही है, न ही बसपा विधायक इकबाल ठेकेदार के विरुद्ध लगाए नए आरोपों को सही ठहरा रही है, लेकिन प्रथमदृष्टया अभिलेखों में जो साक्ष्य उपलब्ध हैं, उससे स्पष्ट है कि इकबाल ठेकेदार ‘कंगारू कोर्ट’ चला रहा है, कोर्ट फीस वसूल रहा है, फैसले सुना रहा है तथा अपने फैसले लागू करा रहा है, जो निश्चित ही लोकतंत्र में सबसे गंभीर अपराध तथा संविधान की अवहेलना है। इसके लिए उसके विरुद्ध मुकदमा चलाया जाना चाहिए। लेकिन खंडपीठ इस आधार पर कोर्ट निर्देश नहीं दे रही है कि याची ने स्वीकार किया है कि वह इकबाल ठेकेदार का राजनीतिक प्रतिद्वंदी है। ऐसे मामलों में हाईकोर्ट स्वत: संज्ञान लेता है ओर कठोर कार्रवाई करता है, मगर इस मामले को तकनीकी रूप से खारिज करने के बावजूद हाईकोर्ट ने अपनी तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की और बसपा विधायक की ‘गुंडा अदालत’ आज भी जारी है।
साभार- डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट


