जिनके पास इतिहास बनाने बूता नहीं वह इतिहास बदल कर काम चलाएंगे ही
जिनके पास इतिहास बनाने बूता नहीं वह इतिहास बदल कर काम चलाएंगे ही
जिनके पास इतिहास बनाने बूता नहीं वह इतिहास बदल कर काम चलाएंगे ही।
कुछ लोगों को ताजमहल में गुलामी की निशानी दिख रही है। वह उसे मिटाना चाहते हैं क्योंकि उसे बनवाने वाला विदेशी आक्रमणकारी था। वह कहां पैदा हुआ, हुकूमत करने के बाद वह और उसके वंशज कहां चले गए उसके बारे में बताते हुए उन्हें शर्म आती है।
आर्य, लिखित इतिहास के पहले आक्रमणकारी थे जो भारत और स्थानीय लोगों का दमन किया, उनकी निशानियों को एक-एक करके मिटाया। जो पकड़े गए उन्हें शूद्र बना कर रखा बाकी जंगलों और पठारों में जा बसे। परन्तु वह भी इसी देश की की मिट्टी में रच बस गए। मुग़ल आए हुकूमत की और उनकी नस्लें इसी देश की मिट्टी में समा गयीं। अंग्रेज़ आए देश को ग़ुलाम बनाया, लूट कर माल अपने देश ले गए। स्थानीय कल कारखानों को तबाह किया। अाखिर में सब कुछ समेट कर अपने देश वापस चले गए। बाद के दोनों ने देश में सड़कें, पुल, रेलवे स्टेशन, उच्चकोटि की इमारतें आदि बनवाईं। अब इन आंख के अंधों को केवल ताजमहल में गुलामी की निशानी दिखाई देती है। अगर गुलामी की निशानियों को मिटाना ही है तो इन सभी की निशानियों को मिटा दो।
ताजमहल को ध्वस्त करो, संसद भवन को गिराओं और देश का कारोबार किसी खाप पंचायत की तरह पेड़ के नीचे बैठ कर चलाओ, रेलवे स्टेशनों, पुलों और विश्व प्रसिद्ध इमारतों को ध्वस्त कर दो। लेकिन इसे करने से पहले कल्पना की आंखों से उस भारत की तस्वीर देखो जहां देश का प्रधानमंत्री लालकिले के स्थान पर किसी टीले पर खड़ा देश को सम्बोधित कर रहा है। देश के बड़े बड़े रेलवे स्टेशन खंडहर बने पड़े हैं जहां ट्रेन तो क्या ठेला गाड़ी भी नहीं जा सकती।
कुछ बना पाने की क्षमता उत्पन्न करो विध्वंस में नाम कमाना कोई भले मानुष का काम नहीं है। अंग्रेज़ों के दलालों और उनके वंशजों से हालांकि इसकी उम्मीद करना व्यर्थ ही है लेकिन सुधार की न तो कोई आयु होती है और न कोई न्यूनतम अर्हता।


