जिस इंडिया इंक ने बाकायदा जनादेश के कारपोरेट बंदोबस्त के तहत संघ परिवार की ताजपोशी की, उनका क्या होगा रे कालिया?
अम्मा बरी ...शारदा फर्जीवाड़ा फिर
विदेशी पूंजी, विदेशी हितों की गुलाम बिजनेस फ्रेंडली सरकार ने पहले ही संघ परिवार के सबसे कट्टर समर्थक बनिया संप्रदाय यानि किराना बाजार से लेकर खुदरा कारोबार की हर अली गली कलि विदेशी पूंजी के हवाले कर चुकी है और अब यह सोने की चिड़िया बेचो ब्रिगेड न सिर्फ सरकारी उपक्रमों और महकमों का निजीकरण पीपीपी माडल के बगुला राज के तहत कर रही है, बल्कि अमेरिकी, इजराइली, चीनी, कोरियाई और जापानी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार से देशी कंपनियों को बेदखल करने लगी है।

मान्यवर, तेल की कीमतें तेज होने लगी हैं और हिमालय में झटके रोजाना तेज होने वाले हैं। नेपाल में कल ही चार रिक्टर स्केल से ज्यादा तेज झटके तीन बार महसूसे गये। अंडमान और कच्छ में भूंकप आ चुके हैं। दिल्ली से लेकर कोलकाता तक महाभूकंप क्षेत्र है तो समूचा समुद्रतट सुनामी क्षेत्र है और हरियाली उजाड़ो कार्यक्रम विदेशी कंपनियों वास्ते न सिर्फ पागल दौड़ है, बल्कि कहीं आफसा तो कहीं सलवा जुड़ुम है।

अलनिनो सिरहाने है और देश भर में फसलें चौपट है। हिमालय के तमाम ग्लेशियर पिघल रहे हैं। बिकी हुई , बंधी हुई तमाम नदियों में या तो सूखा है.या डूब है या फिर परमाणु बम। जनसंख्या के सफाये का चाकचौबंद इंतजाम है तो बेलगाम मुद्रास्फीति का कार्निवाल है।

ब्याज दरें घटाते हुए, मौद्रिक कवायद से, चिटफंडिया अर्थव्यवस्था से, सैन्यदमन से, बेटिंग से , फिक्सिंग से चाहे कुछ भी आजमा लो मंदी की काली छाया की चपेट में आने से बचा नहीं सकता। तमाम रियायतों के बावजूद चंचला लक्ष्मी विदेशी पूंजी के पांव ठहर नहीं रहे हैं भारत में। खुल्ला दरवाजा, खुल्ली खिड़कियों से जैसे आ रही है पूंजी, अगले ही क्षण वैश्विक इशारों से भाग रही है पूंजी। वित्तीय घाटा और राजस्व घाटा ही अब विकास दर है।

बजट में सारी सामाजिक योजनाएं खारिज।

बजट में महिलाओं, बच्चों, अनुसूचितों, आजिवासियों, शिक्षा, चिकित्सा और बुनियादी चीजं और सेवाओं के लिए अनुदान नहीं के बराबार। जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता प्रकृति और पर्यावरण के खिलाफ देश के चप्पे चप्पे में अश्वमेधी घोड़े और सांढ़ दौड़ रहे हैं।

भूकंप का सिलसिला है और केसरिया सुनामी है। कारपोरेट फंडिंग की सर्वदलीयसहमति की संसदीय राजनीति है और सड़कों पर बेइंतहा सन्नाटा है। राजधानी में सेंसर है और आप है। खेतों में शिलावृष्टि है। पहाड़ों में हिमस्खलन है या भूस्खन है तो मैदानों में थोक आत्महत्याएं है या थोक कत्लेआम। यही है हिंदू साम्राज्यवाद की दैवी मनुस्मृति रंगभेदी देवसंस्कृति और देवभाषा।

अब बताइये कि जब बजट में प्रावधान हैं नहीं तो वोट बैंक साधो अभियान के तहत जो सत्यनाराणण का प्रसाद और हरिलूठ के बतासे जनधन आधार विस्तार के तहत बांटे जा रहे हैं, उनका खर्च कहां से आयेगा।

बताइये कि क्षत्रपों की कल्कि अवतार के साथ एकांत वार्ता और उससे पैदा होने वाली इंडिया टीम का आशय क्या है।

मसलन हज्जारों लोग रोजाना दुर्घटनाओं में मारे जाते है, दो लाख के हिसाब से बिन बजट मुआवजा कौन देने वाला है या बिन बजट कोई किसी राज्य के कर्ज माफी से लेकर पैकेज तक का इंतजाम कैसे कर सकता है। किसी के बाप का खजाना नहीं है भारत का रोजकोष कि कोई हिंदू ह्रदय सम्राट छप्पन इंच की छाती खोले सुपरमैन की तरह हवाओं में बांहें फैलाये दिशा दिशा में खैरात बांटते चलें। अर्थव्यवस्था बिन बजट चले और राजकाज बिन संसद, बिन जनसुनवाई, बिन कानून के राज।

राज्यों के हित में क्षत्रपों के अवसरवाद को जरा समझिये जनाब और लोकलुभावन योजनाओं की आड़ में सर पर लटकी तलवारों से भी जरा सावधान रहें नागरिकों, नागरिकाएं।

मसलन अभी अभी बड़ी परदातोड़ बड़ी खबर : जयललिता को कोर्ट ने बरी किया। जयललिता समेत चारों लोग बरी। ...शारदा फर्जीवाड़ा फिर।
पलाश विश्वास