जी एन साइबाबा को हर हाल में राज्य को छोड़ना ही होगा
जी एन साइबाबा को हर हाल में राज्य को छोड़ना ही होगा
जी एन साइबाबा को हर हाल में राज्य को छोड़ना ही होगा।
वरना राज्य और अदालत को आम नागरिक को बताना होगा। एक पब्लिक फोरम बनाना होगा। राज्य और प्रशाशन हर आतंकवादी मुद्दे पर मीडिया के जरिये तमाम तरह के जनभावना को भड़काने वाले और राज्य के पक्ष को मजबूत करने वाले तर्कों से ग्रसित सवाल उठाने के लिए एक ढांचा तैयार करता है या नहीं। फिर साईं के मुद्दे पर क्यूँ नहीं ?
इस मसले पर बात करने के लिए चुनिन्दा लोगों से जो इस विषय में साईं का पक्ष रखने के लिए तैयार हैं उनसे पब्लिक फोरम पर बातचीत करना होगा। और यह बताना होगा कि आदिवासियों के लिए लड़ना क्या गुनाह है? जिसके तहत उन्हें वास्तव में कैद किया गया। और अमानवीय तरीके से उन पर जुल्म किये जा रहे हैं।
जी एन साईंबाबा को एक साल होने आये वो अभी तक अंडा जेल नागपुर में कैद हैं। कोर्ट इतनी सख्त और अन्यायपूर्ण होगी इसका साफ़ उदाहरण आप देख सकते।
कोर्ट ने असंवैधानिक तरीके से उन्हें कैद किया है। पुलिस और प्रशासन भी राजतन्त्र के चलते अंधभक्ति में लीं है और राज्य की क्रूर मशीनरी का हिस्सा बनकर खूब अन्यां कर रहा है। आप पूछ सकते हैं कि वो कौन सा कानून है जिसमें आदिवासियों, के जीवन को बचाने के लिए कोई आदमी जोकि खुद ही शारीरिक रूप से बहुत स्वस्थ नहीं है उसने अपनी जिन्दगी आदिवासी समुदाय समाज और आदिवासी जीवन को बचाने में लगा दी। आप साईं के लिखे हुए साहित्य या लेखों को देखें तो मालूम चलेगा कि वो एक सामाजिक कार्यकर्ता है। वो एक इंकलाबी विचारों वाला आदमी है जिसमें आदिम कालखंड के मनुष्यों के पूर्वजों के वंशबेल को बचाने का काम किया है। मगर सरकार जल, जंगल, जमीन जब छीनने पर तुल ही जाय। तब साईं को अरेस्ट करने के सिवा कोई उपाय नहीं रह जाता।
भारत में न तो माओवादी हैं न माओवाद
न नक्सली हैं न नक्सलवाद।
यहाँ आदिवासी हैं और है उनका संघर्ष
यहाँ दलित हैं और है उनका संघर्ष
किसी विचारधारा की किताबें पढ़ने से न तो कोई माओवादी होता है। न ही रामायण पढने से कोई साधू। न गीता पढ़ने से कोई कृष्ण।
आदिवासी तो खुद नहीं जानते कि वे माओवादी कैसे और कब बना दिए गये। सरकार ने एक इंकलाबी विचारधारा को, समाजवादी विचारधारा को, साम्यवादी विचारधारा को पढ़ने और उसे व्यवहार में लाने की बात करने वाले लोगों को माओवादी और नक्सलवादी कहकर संबोधित किया और उन्हें जबरन हर तरह से सताया, दण्डित किया। ताकि लोगों तक ऐसा साहित्य न पहुंचे जो समाजवाद की बात करता हो जो समानता की बात करता हो जो हर मोर्चे पर आदमी बनने की बात करता हो।
असलहे लेकर आत्मरक्षा करने का चलन बहुत पहले से रहा है। हाँ जब से सरकार ने असलहों के लाइसेंस की बात को कानूनी जामा पहनाया था तब से ताकतवर लोगों के पास ही असलहे कानूनी और गैरकानूनी तरीके से रह गये थे। पुलिस भी इन ताकतवर लोगों की सुरक्षा में ही हर वक्त मुस्तैद रही। अदालतें भी इन ताकतवर लोगों को सब कुछ लूट लेने के लिए हर तरह से मदद करती रही। सरकारें तो खैर इन्हीं ताकतवर लोगों के होने के कारण ही बन सकी। वरना क्या वो समुदाय जिसके पास खाने के लिए रोटी नहीं है, पहनने को लिबास नहीं, और जीने की सहूलियतें नहीं हैं वो भला सरकार क्या बनाएगा?
अनिल पुष्कर


