जीवंत रंगमंच में अग्निकांड या फिर आगजनी?
जीवंत रंगमंच में अग्निकांड या फिर आगजनी?
नवारुण दा के बागी साहित्य के मंचन के लिए मशहूर रंगकर्मी सुमन मुखोपाध्याय और बागी नाटककार कौशिक सेन के नाटकों के मंचन के मध्य अकादमी में लगी आग
पलाश विश्वास
अकादमी आफ फाइन आर्ट्स, कोलकाता में आग लगने के बाद सुमन मुखोपाध्याय के वक्तव्य पर गौर करें कि उन्होंने कहा है कि अजीब बात है कि मेरे और कोशिक के नाटकों के मंचन के वक्त ही रंगमंच के स्क्रीन में आग लगी। सुमन का नाटक है, जो आगजनी करते हैं, संजोग यह कि उनके नाटक के मंचन के दौरान ही अकादमी में यह अग्निकांड हो गया।
संकरे प्रवेशद्वार और अनुपस्थित दमकल नजरदारी के मध्य इस अग्निकांड से भगदड़ नहीं मची तो इसके लिए इन नाटकों को देखने के लिए उपस्थित विशिष्ट दर्शक तबके को धन्यवाद देना चाहिए, जनकी दिलेरी और प्रतिबद्धता की वजह से भारतीय रंगमंच अब भी सत्ता से लोहा लेने का दुस्साहस कर सकता है।
कविता को सपने और जिदंगी से जोड़, परिवर्तन की बात करने वाले बांग्ला के सामाजिक यथार्थ के विद्रोही कवि नवारूण भट्टाचार्य ने बीते 31 जुलाई अग्नाशय में कैंसर से जूझते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
‘मत्यु उपत्यका नहीं है, मेरा देश’ जैसी कविताएं लिखकर नक्सलबाड़ी आन्दोलन के दौरान हो रहीं युवकों की हत्याओं पर सवाल खड़ा करने वाले कवि नवारूण भट्टाचार्य की कविताओं में वो उर्जा, जनसरोकार और प्रतिबद्धता है, चाबुक की तरह धारदार भाषा है और दिल और दिमाग को झकझोर देने वाली दृष्टि धार है, जो ठहरे हुए वक्त को चलाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर देती है।
भाषा बंधन के दिनों में इन्हीं नवारुण दा ने वैश्वीकरण शब्द पर गहरा ऐतराज जताया था। उनके मुताबिक
तब से मैं अपने लिखे में ग्लोबीकरण का ही इस्तेमाल करता हूं।
ऐसा था हमारे नवारुण दा का फोकस।
मंगलेश दा डबराल ने मृत्यु उपत्यका को हिंदी पाठकों के बीच ला पटका तो जनसत्ता के सबरंग में हमारे पुरातन सहयोगी अरविंद चतुर्वेद ने हर्बट का अनुवाद छापा।
भाषाबंधन से पहले सबरंग में ही अलका के कलिकथा बायपास से लेकर हर्बट, बेबी हल्दर की आत्मकथा और प्रभा खेतान से लेकर जया मित्र की तमाम महत्वपूर्ण कृतियों का अनुवाद छपता रहा है तो भाषाबंधन में शुरुआती दौर में ही पंकजदा के लेकिन दरवाजा और विभूति नारायण राय के शहर में कर्फ्यू समेत तमाम भारतीय भाषाओं के साहित्य का बांग्ला अनुवाद छपता रहा है। बतौर संपादक भी नवारुण दा अद्वितीय थे।
कंसेप्ट महाश्वेता दी का था और वे ही प्रधान संपादक थीं। वे वर्तनी के मामले में बेहद सतर्क हैं और संपादकीय बैठक में वर्तनी में चूक के लिए हम जैसे नौसीखिये से लेकर नवारुण दा तक को डांटने से परहेज नहीं करती थीं। जबकि
नवारुण दा के साथ भाषाबंधन की टीम टूट जाने का अफसोस रहेगा।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पिता बिजन भट्टाचार्य के अवसान के बाद युवा नवारुण ने उनके ग्रुप थिएटर की बागडोर भी संभाली थी।
कुछ वर्षों से अपनी हर्बर्ट, फैताड़ु और कंगाल मालसाट जैसी अंत्यज जीवन के सामाजिक यथार्थ और यथास्थिति के विरुद्ध युद्धघोषणा की कथा को लेकर नवारुण दा रंगमंच पर भी उपस्थित हो रहे थे और उनको उपस्थित करने वाले थे सुमन मुखोपाध्याय, जिन्होंने मंचन के अलावा नवारुण कथा पर फिल्माकंन भी किया।
इसके विपरीत 26 मई 2014 की सबसे सनसनीखेज खबर यह थी कि न्यूटाउन थाने की पुलिस ने बंगाल के मशहूर रंग कर्मी सुमन मुखोपाध्याय को गिरफ्तार किया है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने गत 22 मई को न्यूटाउन-राजारहाट के एक निजी होटल के कर्मियों के साथ मारपीट की थी। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने होटल में तोड़फोड़ की एवं कर्मियों को जान से मार देने की धमकी भी दी थी। होटल प्रबंधन द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर शनिवार शाम से ही उनसे बार-बार पूछताछ की जा रही थी जिसके बाद सोमवार सुबह न्यूटाउन थाने की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
कंगाल मालसाट को लेकर तो लंबा विवाद चला। कंगाल मालसाट को सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दिया था। सेंसर बोर्ड ने एक बंगाली फिल्म ‘कंगाल मलसाट’ को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह और सिंगूर आंदोलन के दृश्यों की वजह से प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी।
इस अग्निकांड को समझने के लिए इसीलिए नवारुणदा के कथासंसार को समझना जरुरी है, क्योंकि जैसे मैं समझ रहा हूं कि यह अविराम मंचन के लिए कोलकाता में एकमात्र प्रेक्षागृह जो चित्रकला और भास्कर्य और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र भी है,में यह रहस्यजनक अग्निकांड चाहे दुर्घटना हो या सत्ता की बेचैनी, दरअसल यह नवारुणदा के बागी रचना संसार के विरुद्ध आगजनी ही है।
आग तो लगी थी स्टार थिएटर में भी जहां कामर्शियल नाटकों के मंचन के अलावा नटी विनोदिनी और नाट्यसम्राट गिरीशचंद्र से लेकर रामकृष्ण परमहंस की स्मृतियां भी जलीं। अब नये सिरे से बना स्टार थिएटर एक मल्टीप्लेक्स है अपनी विरासत की जड़ों से कटा हुआ।
इस मायने में अकादमी प्रेक्षागृह की तुलना भारत के किसी दूसरे प्रेक्षागृह से की ही नहीं जा सकती।
नंदन और रवींद्र सदन के अत्याधुनिक प्रेक्षागृहों की तुलना में छोटा सा और सुविधाओं के लिहाज से बेहद मामूली इस अकादमी प्रेक्षागृह में अग्निकांड दरअसल मक्तबाजार संस्कृति वर्चस्व समय के दुःसमय और अभिव्यक्ति संकट दोनों का समन्वय है।
माणिक बंदोपाध्याय सामाजिक यथार्थ के मौलिक कथाकार रहे हैं प्रेमचंद के बाद। तो ताराशंकर और अमृतलाल नागर में भी यथार्थ के विवरण सिलसिलेवार हैं। लेकिन माणिक के बाद भारतीय साहित्य में समाजवास्तव को सुतीक्ष्ण आक्रामक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने में नवारुणदा ही अग्रणी हैं और उनका कथासाहित्य दरअसल उनकी कविता मृत्यु उपत्यका का असीम विस्तार ही है।
हर्बट, फैताड़ु और कंगालमालसाट की तो बात ही अलग है, अटो जैसे उपन्यास में भी यथार्थ को प्याज के छिलके की तरह उतारने में उनकी कोई सानी नहीं है और यह सिर्फ कोई ब्यौरा नहीं है, या महज कथाचित्र या तथ्यचित्र तक सीमाबद्ध नहीं, बल्कि इसमें हमेशा वंचित सर्वहारा तबके के पक्ष में युद्ध प्रस्तुति है।
माणिक के साहित्य में वर्गसंघर्ष सिलसिलेवार है लेकिन वहां भी इतनी दुस्साहसिक युद्धघोषणा नहीं है। यह युद्धघोषणा उनकी प्रजाति के बाकी तीनों अद्भुत कथाकारों मंटो, इलियट और जहीर के साहित्य में नहीं है और न ही महाश्वेता दी के विद्रोह उपाख्यानों आख्यानों में है।


