और क्या हमारे सैनिक सियाचिन में इसलिए तैनात हैं कि तू साम्प्रदायिकता फैला कर देश तोड़ दे ?
राजीव नयन बहुगुणा
हमारी सेना सियाचिन में माइनस से कई डिग्री नीचे के तापमान पर लड़ रही है, जबकि दूसरे देश की सेना आराम से अपने मैदानी इलाक़ों में बैठ कर घास छील रही है। लेकिन फिर हमारी सेना वहां लड़ किससे रही है?
बार-बार मुझे सियाचिन जाने की चुनौती क्या देता है बे ? मैं फ़ौज़ की नौकरी नहीं करता, जो वहां जाकर रहूँ। यह बात अलग है कि दुर्गम नैसर्गिक परिस्थितियों में रह कर काम कर रहे अपने हर सैनिक के प्रति मेरे मन में भरपूर सम्मान है।
लिखने की तमीज़ सीख और पहले तो पढ़ना सीख। लिखे हुए को उसी स्तर की अभिव्यंजना में समझना सीख। उल्लू के पट्ठे की तरह रिएक्ट न कर। लिखे हुए से कुढ़ कर कभी सियाचिन तो कभी पाकिस्तान जाने की बकता रहता है।

जो व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की बात उठाएगा, उसे तू सियाचिन भेजने की धमकी देगा ? और क्या हमारे सैनिक सियाचिन में इसलिए तैनात हैं कि तू साम्प्रदायिकता फैला कर देश तोड़ दे ?
वैसे तुझे बता दू कि मैं सियाचिन, और उस जैसी ऊंचाईयों पर कई बार जाकर रहा हूँ। मेरा घर हिमालय में है। हम तो भैंस चराने भी 14 हज़ार फुट तक जाते रहे हैं। तू अपनी सोच।
जो मूर्ख देश के आंतरिक राजनैतिक विवादों की काट में बात बात पर सेना के त्याग और शौर्य का हवाला देने लगते हैं, उन्हें नहीं पता

cartoon by Anil Uniyal

कि वे देश को किस प्रच्छन्न जोखिम में डाल रहे हैं। ऐ मूढ़, न सिर्फ हमारे, अपितु हर देश की सेना सीमाओं पर विषम परिस्थियों मे रहती है। भारत में अनिवार्य नहीं बल्कि ऐच्छिक सैन्य सेवा है। हर व्यक्ति स्वेच्छा से सेना में भर्ती होता है। कृपया सेना को चुपचाप अपना काम करने दें। अपनी मूर्खता पूर्ण और ओछी देश भक्ति के जोश में सेना का अनावश्यक महिमा मण्डन न करें। इसका परिणाम पड़ोसी मुल्क आज तक भुगत रहा है, जहां संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका सब पर सेना हावी है। तुम साम्प्रदायिक उन्माद फैला कर देश को भीतर से तोड़ रहे हो। ऐसे में सेना बाहरी सीमाओं की हिफाज़त कैसे कर पाएगी।

क्या तुम बात बात में सेना का हवाला देकर यह कहना चाहते हो की भारतीय सेना राष्ट्रीय धरोहर नहीं, अपितु तुम्हारा कैडर है ?
सभ्य बनो, शिक्षित बनो, साक्षर बनो। मूर्खों जैसी बात न करो।