ट्रंप के राष्ट्रपतित्व की सचाइयों के सामने
ट्रंप के राष्ट्रपतित्व की सचाइयों के सामने
प्रकाश कारात
अमरीका में ट्रंप के राष्ट्रपतित्व के पहले दस दिनों ने अगर कुछ भी दिखाया है, तो यही कि ट्रंप चुनाव प्रचार के दौरान उसने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा करने जा रहा है। इन दस दिनों में डोनाल्ड ट्रंप ने एक के बाद, ऐसे अनेक कार्यपालिका आदेश जारी किए हैं जो उसके प्रवासीविरोधी, इस्लामद्वेषी तथा बड़े कारोबारीपरस्त एजेंडा को ही सामने लाते हैं।
उसके पहले ही कार्यपालिका आदेशों में से एक है, मैक्सिको के साथ सीमा पर दीवार खड़ी करना। ट्रंप का कहना है कि अवैध आप्रवासियों को बाहर रखने के लिए ऐसी दीवार बनाना जरूरी है। ट्रंप ने जले पर नकम छिडक़ते हुए मैक्सिको के सामने यह मांग और रख दी कि वह इस दीवार के बनाए जाने का खर्चा दे। मैक्सिको के राष्ट्रपति ने ऐसा करने से इंकार कर दिया है।
ट्रंप प्रशासन अब इसकी धमकियां दे रहा है कि दीवार के निर्माण का खर्चा निकालने के लिए वह, मैक्सिको से आनेवाले मालों पर 20 फीसद कर लगाएगा।
ट्रंप ने एक अन्य आदेश के जरिए, अब तक रुकी पड़ी दो पाइप लाइन परियोजनाओं, कीस्टोन एक्सएल तथा डकोटा एक्सेस पाइप लाइन पर पुनर्विचार के लिए कह दिया है। पर्यावरणविद और अमरीकी मूल निवासी कबीले इन परियोजनाओं का कड़ा विरोध कर रहे हैं। ट्रंप इन पाइपलाइन परियोजनाओं पर लगी रोक हटाकर, शक्तिशाली तेल तथा गैस लॉबी को फायदा पहुंचाने जा रहा है।
फिर भी ट्रंप का सबसे हैरत में डालने वाला आदेश सात मुस्लिम देशों के लोगों के अमरीका में प्रवेश पर रोक लगाने का था। ईरान, इराक, सीरिया, सूडान, लीबिया, यमन तथा सोमालिया के नागरिकों के अमरीका में प्रवेश पर 90 दिन के लिए रोक लगा दी गयी, भले ही वे वैध वीसा पर क्यों नहीं आ रहे हों। कार्यपालिका आदेश के जरिए, शरणार्थियों का प्रवेश 120 दिन के लिए रोक दिया गया और सीरियाई शरणार्थियों का प्रवेश अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया। दूसरी ओर, व्हाइट हाउस ने यह स्पष्टï कर दिया है कि इराक तथा सीरिया से ईसाई शरणार्थियों का आने दिया जाएगा। उक्त देशों के सैकड़ों लोगों को वैध वीसा होते हुए भी, अमरीका पहुंचने पर हवाई अड्डों पर ही रोक लिया गया।
इस खुल्लमखुल्ला मुस्लिमविरोधी कदम की दुनिया भर में निंदा हो रही है। अमरीका के योरपीय सहयोगियों, जर्मनी तथा फ्रांस ने इस कदम की आलोचना की है। खुद अमरीका में प्रमुख शहरों में हवाई अड्डïों पर बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए हैं और बड़ी संख्या में लोगों ने असंवैधानिक तथा गैर-अमरीकाना करार देकर इस पाबंदी की निंदा की है।
विडंबनापूर्ण तरीके से आइएसआइएस ने इस कदम का स्वागत किया है क्योंकि यह कदम उनके इस दावे को सही साबित करता है कि अमरीका, अपने देश में मुसलमानों का रहना बर्दाश्त नहीं कर सकता है। अमरीकी राष्ट्रपति का यह मुस्लिमविरोधी रुख, जेहादी तथा अतिवादी तत्वों को मसाला देने का ही काम करेगा।
ट्रंप अपनी ‘‘अमेरिका फर्स्ट’’ नीति को भी लागू कर रहा है। जैसाकि उसके चुनाव मंच का वादा था, ट्रंप ने ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से हाथ खींच लिए हैं। 12 देशों की यह प्रस्तावित संधि, जिसमें जापान, आस्ट्रेलिया तथा आसियान देशों को शामिल किया गया था, ओबामा प्रशासन ने चीन को अलग करने तथा उस पर अंकुश लगाने के ही खास मकसद से तैयार करायी थी। टीपीपी और योरपीय यूनियन व अमरीका के बीच ट्रांस एटलांटिक ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप (टीटीआइपी) ने, कार्पोरेट शक्ति को बढ़ाया होता तथा वित्तीय पूंजी का शिकंजा मजबूत कर दिया होता। वितीय पूंजी को संबंधित देशों की राष्टï्रीय संप्रभुता के ऊपर रखा जा रहा होता और कार्पोरेटों को सरकारों पर अपनी मर्जी लादने का और अगर किसी भी तरह से उनके निवेश बाधित हों या उन पर प्रतिकूल असर पड़े तो सरकारों को कानूनी तौर पर जवाबदेह ठहराने का अधिकार मिल गया होता।
इस तरह, हालांकि टीपीपी का रद्द किया जाना एक हद तक अमरीकी वित्तीय तथा कार्पोरेट स्वार्थों के हक में नहीं होगा, फिर भी ट्रंप ने कर कटौतियों तथा अन्य रियायतों के रूप में उन्हें जबर्दस्त उपहार देने का वादा किया है। सीईओओं के साथ एक बैठक में ट्रंप ने कहा कि वह कार्पोरेट कर की दर मौजूदा 35 फीसद से घटाकर 15-20 फीसद करने का अपना चुनाव प्रचार का वादा पूरा करेगा।
इन सभी कार्यपालिका आदेशों के बाद, मोदी सरकार अब तमाशबीन बनकर ही बैठी रह सकती है। ट्रंप की जीत का नरेंद्र मोदी और भाजपा ने स्वागत किया था क्योंकि उन्हें ट्रंप में अपना विचारधारात्मक तथा राजनीतिक जुड़वां भाई नजर आ रहा था। उसका मुस्लिमविरोधी रुख तो उन्हें खासतौर पर अपनी ओर खींचता था।
लेकिन अब ट्रंप प्रशासन के ताजातरीन कदम को भारत में हैरानी और चिंता की नजर से देखा जा रहा है। ट्रंप ने इसका इसका इशारा कर दिया है कि वह एच-1बी वीसा सीमित करने जा रहा है और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रोजगार हासिल करने के लिए भारतीयों के अमरीका जाने पर रोक लगाने जा रहा है। भारत में सूचना-प्रौद्योगिकी कंपनियों के शेयरों के दाम तेजी से गिरे और पांच शीर्ष फर्मों के बाजार के मूल्य में 33,000 करोड़ रु0 की गिरावट दर्ज हुई है।
अमरीका का रणनीतिक सहयोगी होने की कठोर सचाइयां अब मोदी सरकार के सामने आ खड़ी हुई हैं। राष्ट्रपति ओबामा की एशियाई धुरी का हिस्सा बनने और अमरीका की भू-राजनीतिक रणनीति का जूनियर साझीदार बनने के बाद, मोदी सरकार को अब ट्रंप के राष्ट्रपतित्व से दो-चार होना है, जिसे ओबामा प्रशासन की रणनीतिक परिकल्पना के लिए कोई फुर्सत ही नहीं है। ट्रंप का संरक्षणवादी तथा अति-राष्ट्रवादी प्रशासन, इस मामले में भारत की चिंताओं को कोई खास भाव नहीं देने जा रहा है।
भारत को अपनी विदेश नीति को बहुविध बनाना चाहिए और जो बहुपक्षीय ढांचे उभरकर आ रहे हैं, उनमें सक्रिय रूप से हिस्सा लेना चाहिए। इनमें रीजनल कंप्रिहैंसिव इकॉनमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) विशेष महत्वपूर्ण है जिसमें आसियान के देश और आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया तथा न्यूजीलेंड शामिल हैं। इस प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते में अमरीका शामिल नहीं है। भारत को ब्रिक्स तथा शांघाई सहयोग संगठन में भी अपनी भूमिका बढ़ानी चाहिए। उसे चीन द्वारा शुरू की गयी ‘वन बैल्ट, वन रोड’ परियोजना के प्रति अपना नकारात्मक रुख छोडऩा चाहिए।
अपने आर्थिक व रणनीतिक रिश्तों को बहुविध बनाने तथा बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय रूप से साझीदार बनने के जरिए ही भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता और अपनी विदेश नीति के स्वतंत्र आधार को दोबारा हासिल कर सकता है। लेकिन, असली सवाल तो यह है कि क्या मोदी सरकार, अमरीका का अपना अति-मोह छोड़ेगी और अपने रुख की दिशा बदलेगी। 0


