तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
अल्लामा इकबाल ने कहा था- "न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तान वालों/ तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी दास्तानों में." आज जो लोग विनायक सेन को सज़ा पर मौन हैं, वे भी अपने को सुरक्षित न समझें, आज नहीं तो कल उनकी भी बारी है. इसलिए हर जम्हूरियत पसंद आदमी को आगे बढ़ कर इसका विरोध करना होगा. यह कॉर्पोरेट घरानों की तरफ से उनके टुकड़ों पर पलने वाले राजनीतिज्ञों की तरफ से आम अवाम पर थोपा गया युद्ध है और हर हिन्दुस्तानी को इस कुरुक्षेत्र के मैदान में उतरना ही होगा. आइये देखते हैं मार्टिन नीमोलर की एक महत्वपूर्ण कविता-
सम्पादक
पहले वो आए साम्यवादियों के लिए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं साम्यवादी नहीं था
फिर वो आए मजदूर संघियों के लिए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं मजदूर संघी नहीं था
फिर वो यहूदियों के लिए आए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वो आए मेरे लिए
और तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था


