तानाशाही बनाम आम जनता का जनतंत्र : क्या भारत में तानाशाही है ?
तानाशाही बनाम आम जनता का जनतंत्र : क्या भारत में तानाशाही है ?

जनतंत्र का मतलब क्या है?
तंत्र के माने है शक्ति। शक्ति के माने है अधिकार। स्पष्ट बात है कि जनतंत्र का सीधा-सपाट मतलब (What does democracy mean) है, जनता की शक्ति या जनता का अधिकार। समस्त जनता की कमोवेश बराबरी की शक्ति व अधिकार।
तानाशाही का मतलब क्या है? | What does dictatorship mean?
जनतंत्र की विरोधी शब्द या अवधारणा का नाम है 'तानाशाही'।आमतौर पर तानाशाही शब्द कहते ही दिलो-दिमाग पर शासन-सत्ता का हिंसात्मक, दमनात्मक चरित्र उभर आता है। यह गलत भी नहीं है, लेकिन अधूरा जरूर है, क्योंकि तानाशाही का वास्तविक मतलब जनतंत्र का विरोध है। जन की शक्ति की, जन के अधिकार की कटौती या उसका हनन-दमन है। यह कटौती किन पद्धतियों व तरीकों से की जाती है यह मामला एकदम अलग है, चाहे वह प्रत्यक्ष दमनात्मक व दंडात्मक कानूनों के जरिये की जाए या फिर शान्ति के साथ व अप्रत्यक्ष रूप में लोगों को साधनहीनता व अक्षमता की तरफ धकेलते हुए की जाए। दोनों पद्धतियों या तरीकों में भारी अन्तर होने के वावजूद दोनों ही तरीके जनसाधारण पर तानाशाही के ही द्योतक हैं। साथ ही वे एक दूसरे के पूरक भी हैं।
किसी भी शासन सत्ता का शांतिपूर्ण, अहिंसात्मक तथा प्रत्यक्ष दिखने में जन-हितैषी व जनतंत्रात्मक स्वरूप भी तभी तक नजर आता है, जब तक राष्ट्र व समाज का आम जन अपने न्यायोचित अधिकारों के हनन व कटौती का विरोध नहीं करता। उसे चुपचाप बर्दाश्त करता रहता है। लेकिन ज्यों ही वह उसके विरुद्ध संगठित विरोध व आन्दोलन के लिए उठ खड़ा होता है, अहिंसात्मक, शांतिप्रिय या फिर जनतांत्रिक दिखने वाली शासन सत्ता का हिंसात्मक, दमनात्मक तानाशाही स्वरूप स्पष्टत: सामने आ जाता है।
हमारे अपने देश में आम प्रजाजनों पर, समाज के कमजोर वर्गो पर राजशाही या बादशाही के युग में यह तानाशाही एकदम स्पष्ट एवं नग्न रूप में विद्यमान थी।
ब्रिटिश गुलामी के काल में हुए तमाम महत्वपूर्ण परिवर्तनों के वावजूद एक बात स्पष्ट थी और है कि वह राज्य अंग्रेजों का हिन्दुस्तानियों पर तानाशाही राज्य था। हालांकि हिन्दुस्तानियों के बीच में भी अधिकार सम्पन्न हिन्दुस्तानी बेशक मौजूद थे और यह भी सच है कि अधिकारहीन हिन्दुस्तानियों यानी इस देश की रियाया और मजदूर हिन्दुस्तानियों पर अंग्रेजों के साथ अधिकार सम्पन्न हिन्दुस्तानियों कि दोहरी तानाशाही चलती रहती थी।
क्या भारत में तानाशाही है ? (Is there dictatorship in India?)
1947 के बाद देश इस देश में जनप्रतिनिधियों की पहले अस्थायी और फिर बाद में स्थायी सरकार की स्थापना के बाद इसे देश की समस्त जनता का जनतांत्रिक राज्य और जनतांत्रिक समाज व्यवस्था बताया जाता रहा है। चुनावी व संसदीय प्रणाली तथा संविधान के जरिये यह भी बढ़ाया व बताया जाता रहा है कि अब इस देश में किसी किस्म की कोई तानाशाही व्यवस्था नहीं है। बल्कि समस्त जनता में कमोवेश बराबरी के अधिकार वाला राज्य व समाज स्थापित हो चुकी है और वह निरन्तर विकास कर रही है। क्या यह सच है ?
एक तरफ अत्यंत अल्प संख्या में विद्यमान चोटी की धनाढ्यतम खरबपति कम्पनियों से लेकर तमाम क्षेत्रों के अरबपति, करोडपति धनाढ्य व उच्च हिस्से और दूसरी तरफ बहुत बड़ी सख्या में विद्यमान नितांत साधनहीन या अत्यंत छोटी सम्पत्तियों, साधनों आमदनियों वाले व्यापक जन समुदाय के बीच के सम्बन्ध क्या जनतांत्रिक सम्बन्ध है ? कमोवेश क्या बराबरी के सम्बन्ध हैं ? क्या वे राष्ट्र व समाज पर कमोवेश बराबरी का अधिकार रखते हैं ? अथवा सच्चाई यह है कि सम्पूर्ण राज्य व समाज पर धनाढ्य एवं उच्च वर्गों का तानाशाही पूर्ण अधिकार मौजूद है और लगातार बढ़ता भी जा रहा है।
अगर 1950 के बाद के देश के जनसाधारण को ब्रिटिश तथा सामंतशाही व जमींदारी तानाशाही पूर्ण अधिकारों से कुछ मुक्ति मिली भी तो अब उस पर देश दुनिया की धनाढ्य कम्पनियों के बढ़ते अधिकार प्रभाव-प्रभुत्व वाली तानाशाही थोपी जा रही है। उन पर पैसे, पूंजी और माल मुद्रा बाज़ार की तानाशाही स्पष्टत: लादी व बढ़ाई जा रही है।
वैसे तो यह तानाशाही ब्रिटिश शासन काल से ही लगातार बढ़ती रही है। लेकिन 1985-90 से लागू की जा रही वैश्वीकरणवादी नीतियों व डंकल प्रस्ताव तथा नई शिक्षा व उपभोक्तावादी सांस्कृतिक नीतियों आदि के जरिये इसे एकदम प्रत्यक्ष व नग्न रूप में बढ़ाया जा रहा है। क्योंकि इन नीतियों के जरिये देश दुनिया के धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों को मिलने वाली छूटों, अधिकारों तथा प्रभावों-दबावों को खुलेआम और लगातार बढ़ाने के साथ-साथ आम मजदूरों, बुनकरों, किसानों तथा छोटे व अन्य अत्यंत छोटे व्यापारियों औसत शिक्षा प्राप्त नवयुवकों को मिले थोड़े बहुत अधिकारों व छूटों, अवसरों, साधनों को अहिसात्मक व हिंसात्मक ढंग से काटा घटाया जा रहा है। यह जनसाधारण के लिए तानाशाही है, न कि जनतंत्र। यह धनाढ्य व उच्च वर्गों की जनसाधारण पर तानाशाही है। समाज के थोड़े से लोगों को धनी धनाढ्य और अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए व्यापक जनसाधारण को प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: अधिकारहीन रखना बनाना है। इसकी कोई दूसरी प्रक्रिया न तो है और न हो सकती है। क्योंकि राष्ट्र व समाज के थोड़े से लोगों की साधन सम्पन्नता और अधिकाधिक सम्पन्नता राष्ट्र व समाज के बहुसंख्यक मेहनतकशों के अधिकाधिक शोषण, लूट व दमन से ही सम्भव है। घोषित या अघोषित तानाशाही शासन-सत्ता से ही सम्भव है।
इसलिए यह तानाशाही मात्र शासन सत्ता में बैठे नेताओं, पार्टियों या घोषित अघोषित तानाशाह शासकों की ही तानाशाही कदापि नहीं होती, बल्कि यह तानाशाही उन सारे वर्गों-तबकों की है, जो उस शासन तंत्र व उसके नीतियों व कानूनों के जरिये सर्वाधिक एवं स्थायी रूप से लाभान्वित एवं अधिकार सम्पन्न होते रहते हैं। साथ ही यह उन जनसाधारण लोगों पर तानाशाही होती है जिनके बुनियादी अधिकारों तक पर रोक लगती और बढ़ती जाती है।
क्या भारत में जनसाधारण का वास्तविक जनतंत्र है? | Is there a real democracy of the masses in India? संसदीय जनतंत्र के नाम पर तानाशाही
वर्तमान युग की इन स्थितियों में न तो भारत जैसे जनतांत्रिक कहे जाने वाले देशों में जनसाधारण का वास्तविक जनतंत्र है और न ही किसी अन्य देश में यह राजशाही व फौजी तानाशाही के शासकों की ही तानाशाही मात्र है। बल्कि यह इस युग में विभिन्न नामों से चल रही विश्वव्यापी साम्राज्यी ताकतों, धनाढ्य कम्पनियों की तानाशाही है, जो कहीं तानाशाही के नाम पर तो कहीं संसदीय जनतंत्र के नाम पर चलती बढ़ती जा रही है।
हिटलर, मुसोलिनी, ताजो जैसे तानाशाह तो विभिन्न देशों में धनाढ्य देशों के घोषित मुखौटे मात्र हैं। उनकी तानाशाही दरअसल इन देशों के धनाढ्यतम कम्पनियों की तानाशाही थी जो एकदम नग्न रूप में फैलती रही थी। अत: इस धनाढ्य वर्गीय तानाशाही के विपरीत जनसाधारण के अधिकारों की बहाली और खुशहाली के लिए तो राष्ट्र समाज के मेहनतकश हिस्सों की, जनसाधारण की वह तानाशाही शासन व्यवस्था अनिवार्य एवं अपरिहार्य है, जो धनाढ्य एवं उच्च वर्गों की छूटों, अधिकारों पर कठोरता पूर्वक नियंत्रण लगा दे।
क्या जोसेफ स्टालिन तानाशाह थे?
जोसेफ स्टालिन जैसे समाजवादी व जनवादी नेताओं, शासकों के बारे में तानाशाही शासक होने के चलते रहे प्रचार दरअसल सोवियत रूस जैसे देशों के मेहनतकशों के बढ़ते जनतांत्रिक अधिकारों के साथ और वहां के धनाढ्य व उच्च वर्गो पर कठोर तानाशाही नियंत्रण का ही द्योतक था और है। क्या इन्हें या अन्य किसी भी शासक को अपने आप में जनतांत्रिक या तानाशाह मान लेना (Was Joseph Stalin a dictator?) और उस शासन से अधिकार पाने और खोने वाले सामाजिक वर्गो व तबकों को नजरंदाज़ कर देना ठीक है ? क्या यह वास्तविकता को अनदेखा करके प्रचारों में बहकाना नहीं है ?
सुनील दत्ता
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
Web title : Dictatorship vs Democracy of the Common People: Is there a dictatorship in India?


