नई दिल्ली। अकसर चर्चा में रहने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को दकियानूसी, हिंदू अतिवादियों के प्रचारक और एक ब्रिटिश एजेंट करार दिया है।
तिलक की पुण्यतिथि के मौके पर जस्टिस काटजू ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, 'तिलक को महान सेनानी माना जाता है, लेकिन मेरी राय अलग है। मुझे पता है कि इसके लिए लोग मुझे गालियां भी देंगे। लेकिन मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मेरा मानना है कि बाल गंगाधर तिलक दकियानूसी, हिंदू अतिवादियों के प्रचारक और एक ब्रिटिश एजेंट थे। उनकी विचारधारा, बयान और कार्य इस बात की पुष्टि करते हैं।'
जस्टिस काटजू ने कुछ तथ्यों का हवाला देते हुए लिखा, '1894 में तिलक ने गणेश की प्रतिमाओं को घर-घर स्थापित करवाया और सार्वजनिक पूजा समारोह करवाए। इनमें हिंदुओं से गायों की रक्षा और मुहर्ररम में भाग न लेने की अपील की गई।
इसके अलावा 1891 में तिलक ने शादी की उम्र 10 साल की बजाय 12 करने का भी इस आधार पर विरोध किया था कि यह हिंदुत्व के खिलाफ है।'
पूर्व न्यायाधीश ने तिलक को ब्रिटिश एजेंट करार देते हुए लिखा, 'छह साल तक बर्मा की मांडले जेल में बंद रहने के बाद तिलक पूरी तरह ब्रिटिश एजेंट की तरह काम करने लगे। यहां तक कि उन्होंने पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना में भारतीयों की भर्ती का समर्थन किया। इसके अलावा मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों का भी समर्थन किया।'
काटजू ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर अंग्रेजों को हितों को पूरा करने और 'बांटो और राज करो की नीति' को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
काटजू के मुताबिक दोनों ही नेताओं ने राजनीति में धर्म का घालमेल करने का काम किया।
काटजू ने लिखा कि तिलक ने आर्यों का मूल निवास आर्कटिक में बताने जैसे दकियानूसी लेख लिखे थे। यही नहीं जब 1896 में बॉम्बे में प्लेग की महामारी फैली तो अंग्रेज सरकार घरों को खाली कराना चाहती थी, जिस पर तिलक ने कहा था कि इससे हिंदू महिलाएं पर्दे से बाहर आएंगी और यह सही नहीं होगा।