जगदीश्वर चतुर्वेदी

कल जितना टीवी से जान पाया वह यह कि तीन तलाक़ रोकने वाले संघी कानून से पीड़ित मुस्लिम औरतों का तलाक नहीं रुकेगा। यानी जब एक बार किसी ने तीन तलाक़ दे दिया तो उस पर अपराध का मुकदमा चलेगा, शादी इससे नहीं बचेगी। साथ ही मुस्लिम महिलाओं की असुरक्षा और असहाय अवस्था में इजाफा होगा, क्योंकि इस कानून में मुस्लिम औरत और उसके बच्चे के गुजारा-भत्ता की कोई व्यवस्था नहीं है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि कानून के जानकारों की सलाह के बिना यह कानून लाया गया है, संसदीय प्रवर समिति को इस बिल को भेजना चाहिए वरना मुस्लिम समाज की वैसे ही दुर्गति होगी जैसे इन दिनों जीएसटी से व्यापारियों की हो रही है।

यह भी संभावना है यह कानून 498 की तरह औरतों के दुरूपयोग का औजार बने।

यह भी संभव है इस कानून के बाद तीन तलाक़ बढ जाएं!

कानून बनाते समय मोदीजी का मुख देखकर फैसला न किया जाए बल्कि कानूनी जटिलताओं को ध्यान में रखकर इस पर फैसला लिया जाए। कानून बनने का मतलब अपराध रुकना नहीं है, भय भी नहीं है। बल्कि कानून तो झंझट बढ़ाता है।

‌तीन तलाक अमान्य हो, जो यह करे वह अदालत जाए और अदालत से अनुमति ले। अदालत की अनुमति के बिना तलाक न हो, इस क्रम में तीन तलाक़ को अपराध न बनाया जाए।

इस्लाम में तलाक मांगना अपराध नहीं है। तीन तलाक़ गैर इस्लामिक है, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कानून बनाने को कहा है अपराध घोषित करने की सिफारिश नहीं की है और न मुस्लिम औरतों को असहाय बनाने की सलाह दी है।

इस्लाम धर्म की मान्यताएं तुलनात्मक तौर पर अन्य धर्मों से ज्यादा उदार हैं, इस धर्म को यदि कठमुल्लों से बचाना है तो मुसलमानों के उदारमना लोगों, संस्थाओं आदि की मदद करनी चाहिए ।

भगवा उन्मादियों की तरह हाय इस्लाम-हाय इस्लाम, बुरा -इस्लाम, बुरा- इस्लाम, आतंकी आतंकी इस्लाम- आतंकी इस्लाम कहने से बचें। इस तरह की धारणाएं इस्लाम के प्रति अज्ञान को दर्शाती हैं।

इस्लाम इकरंगा धर्म नहीं है, इसमें विविधता है। इस्लाम पर बातें करते समय उसकी बेहतरीन बातों और देशों पर नजर रखें। संघियों के प्रचार से बचें, वे इस्लाम के बारे में अज्ञान और विद्वेष से भरी बातें करते हैं।

किसी भी धर्म पर विद्वेष के आधार पर बातें न की जाएं। धर्म की आलोचना की जाए,उसके प्रति घृणा से बचा जाए। हिन्दू समाज में अनेक कुरीतियां हैं, उनके खिलाफ अनेक कानून भी हैं लेकिन कुरीतियां थमने का नाम नहीं ले रहीं,इसका प्रधान कारण है हिन्दू धर्म के मानने वालों का कुरीतियो के खिलाफ सचेत न होना।

मसलन्, बाल विवाह कुरीति है, दहेज प्रथा कुरीति है, इनके खिलाफ कानून बने हैं। लेकिन ये दोनों कुरीतियां बड़े पैमाने पर जारी हैं। इनको न तो अदालतें रोक पाई हैं और न संसद रोक पाई है और न कोई पीएम रोक पाया है।

कुरीतियों को रोकने में धार्मिक लोगों की मदद भी नहीं मिल रही है। ऐसी अवस्था में तीन तलाक विरोधी कानून से तीन तलाक रूकने वाला नहीं है। बलात्कार विरोधी सख्त कानून बनाकर हमलोग बलात्कार रोक नहीं पाए हैं बल्कि इनमें इजाफा हुआ है।

सचेतनता का कोई विकल्प नहीं है। मोदी सरकार-संघ परिवार-मुसलिम संगठन यदि सचेतनता पैदा करें तो कोई बात बने लेकिन वे तो वोट बैंक राजनीति खेल रहे हैं। तीन तलाक विरोधी कानून बनाने की आड़ में मुसलमानों के वोट पाना चाहते हैं जबकि देश के विभिन्न इलाकों में उनके अनुयायीगण मुसलमानों पर हमले कर रहे हैं, उनके पक्ष में बोलने वालों पर हमले कर रहे हैं, धर्मनिरपेक्षता पर हमले कर रहे हैं। जो धर्मनिरपेक्षता को नहीं मानते वे मुसलमानों के सगे कभी नहीं हो सकते, वे हिन्दूधर्म के भी सगे नहीं हो सकते।

Jagadishwar Chaturvedi on Tripple talaqधर्मनिरपेक्षता आज धर्म का सबसे मजबूत रक्षा कवच है,जिसे आरएसएस छीन लेना चाहता है।

हम जान लें धर्मनिरपेक्षता पर हमले करके आरएसएस के लोग मुसलमानों का सबसे बड़ा अहित कर रहे हैं।

यह कैसे संभव है कि संविधान न मानें, धर्मनिरपेक्षता न मानें और अचानक मुसलिम औरतों की रक्षा के नाम पर वे हमदर्द बन जाएं, हमें आरएसएस के तीन तलाक विरोधी मुहिम की मंशा को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है।

राजनीति में मंशा बहुत महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह परिप्रेक्ष्य भी महत्वपूर्ण होता है,तीसरी चीज जो महत्वपूर्ण है कि कौन कर रहा है।

एक उन्मादी जब मुसलिम औरतों की हिमायत में खड़ा है तो उसकी मंशाओं को समग्रता में देखने की जरूरत है। मुसलिम औरतें और इस्लाम धर्म को धर्मनिरपेक्ष भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें न कि हिन्दू भारत के।