तेरहवां गालिब जयन्ती सम्पन्न
तेरहवां गालिब जयन्ती सम्पन्न

गालिब के नाम गुलजार रही महफिल
सोनभद्र। 27 दिसम्बर 2015 की रात मित्र मंच सोनभद्र द्वारा आयोजित स्थानीय स्वामी विवेकानन्द प्रेक्षागृह में रात्रि 9 बजे से अमर शायर मिर्जा असद उल्ला बेग खां गालिब कि 218वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम बज्म-ए-मुशायरा का कामयाब आयोजन सम्पन्न हुआ।
उक्त कार्यक्रम में सर्व प्रथम बज्म की अध्यक्षता कर रहे पंडित अजय शेखर व विशिष्ट अतिथि जिलापूर्ति अधिकारी अजय प्रताप सिंह ने गालिब के चित्र पर माल्यार्पण कर शम्मा रौशन की रस्म को अंजाम दिया। इस रस्मों अदायगी में स्वागताध्यक्ष विजय कुमार जैन पूर्व अध्यक्ष नपाप सोनभद्र व स्वागत सचिव वरिष्ठ पत्रकार रामप्रसाद यादव ने सहयोगी की भूमिका अदा की इन्होंने अतिथियों व शायर-शायराओं को माल्यार्पण व पुष्पगुच्छ अर्पित कर अतिथियों का स्वागत व सम्मान किया।
महफिल को संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि जिलापूर्ति अधिकारी ने अजय प्रताप सिंह ने मिर्जा गालिब को याद करते हुए कहा कि गालिब मानवीय संवेदनाओं, इंसानियत की पैरोकारी व देश प्रेम भरपूर प्रवृति के महान शायर हैं। जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन 1857 की क्रान्ति में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए अंग्रेजो का पुरजोर विरोध किया था।
अब तक संचालन कर रहे विकास वर्मा ने गालिब को याद करते ’’हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे कहते हैं कि गालिब का है अंदाजे बयां और’’ बज्म-ए-मुशायरा के निजामत की जिम्मेदारी कानपुर से पधारे मशहूर शायर कलीम दानिश को सौंपी, जिन्होंने सर्वप्रथम गंगा जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाते वरिष्ठ कवि जगदीश पंथी को इल्म की देवी की वाणी वंदना के लिए आवाज दी जिन्होंने ’’हे मईया मोरी असरन सरन देवइया’’ गाकर मां सरस्वती वंदना की तत्तपश्चात अन्तराष्ट्रीय ख्याति के शायर जमील खैराबादी ने नात ’’नूर से जब दिल मुन्नवर हो गया, गुम्बदे खजरा का मंजर हो गया, बस गया जिसमें मोहम्मद का जमाल कल्ब वो अल्लाह का घर हो गया’’ पढ़ा।
तत्पश्चात अख्तर कानपुरी ने ’’तेरे बगैर जीना है मुश्किल बहुत मगर, जिंदा हूं जी रहा हूं अभी तक मरा नहीं’’ सुनाकर महफिल की वाहवाही लुटी,तत्पश्चात मकामी शायर शिव नारायण शिव ने ‘‘हर कदम हर डगर हर ठिकाने का है, यूँ बुरा हाल सारे जमाने का है‘‘ सुनाकर महफिल में दाद पायी ।
शायरा हिना आरजू ने ’’मैं ये तुमसे नहीं कहती किसी से प्यार मत करना, अगर हो जाये तो इस बात का इजहार मत करना, जवानी है तो आयेंगे हजारों प्यार के तोहफे, किसी अनजान का तोहफा कभी स्वीकार मत करना’’ सुनाकर महफिल में नसीहत का नूर भर दिया। तत्तपश्चात मजाहिया शायर कानपुर से पधारे शफीक अय्युबी ने ’’पत्नी नहीं पसंद थी लानी पड़ी मुझे, अब्बामियां की लाज बचानी पड़ी मुझे’’ जैसे अनेक हास्य व्यंग की शायरी सुनाकर सामइन की वाहवाही लुटी इसके बाद जनाब अब्दुल हई ने ’’मैं अब खामोश रहता हूं किसी से कुछ नहीं कहता, अगर सच बोल दूं तो सारे रिश्ते टूट जायेंगे।’’ तथा ’’ये बात भूल ही जायें दगा दिया किसने की बेखता ही किसी को सजा दिया किसने’’ सुनाकर महफिल को ऊंचाई बख्शी।
इसके बाद नाजिम ने विकास वर्मा को दावते सुखन दिया जिन्होने ’’अपनी हदो से आज गुजरता चला गया आइना सामने था सवंरता चला गया चोटों पे चोट मिलती रही सधे हाथ से पत्थर वो देवता सा निखरता चला गया। तथा ’’तुमसे जो मांगते बने मांगो, ये दुआ की दुकान है यारों और जीवन में रिश्ते ही रिश्ते रिश्तों में कितना जीवन है। जैसे शेर सुनाकर बज्म को जीवन्त कर दिया।
इसके बाद घोसियां से पधारे कासिम नदीमी ने ’’जिन्दाबाद आपकी दोस्ती का सफर पल में तय हो गया इक सदी का सफर ’’जैसे अनेक नायाब शेर सुनाकर महफिल का मुकाम ऊचा किया। तत्तपश्चात नाजिम कलीम दानिश ने ’’पानी कुसुरवार न दरिया कुसुरवार सच पुछिए तो डूबने वाला कुसुरवार’’ जैसे अनेक शेर सुनाए और महफिल की रंगत बनाये रखी। इसके बाद मशहूर शायरा शाइस्ता सना ने ’’कभी खुशबू समझती हूं कभी सन्दल समझती हूं मैं आर्शीवाद को अपने लिए आंचल समझती हूं।’’ तथा ’’जो उदासी थी चेहरे पे कम हो गई, वो मसर्रत मिली आंख नम हो गई’’ और ’’मैं अपनी खुशनसीबी पर हमेशा नाज करती हूं वो मेरा मीर है मुझको गजल कहकर बुलाता है। तथा ’’एै सना मैं भी मौला की तख्लीक हूं गालिब अपनी जगह मीर अपनी जगह’’ जैसे अनेक रचनाएं सुनाकर महफिल की भरपूर वाहवाही लूटी तत्पश्चात मशहूर शायर जमील खैराबादी ने ’’बड़ी हिम्मत है मिट्टी के दिए में ये हर घर में उजाला कर रहा है। जो था मुमताज सारे मयकशो अरे तौबा वो तौबा कर रहा है, हमारे शहर का वो खून करके मसीहाई का दावा कर रहा है।’’
बहुत बलन्द फिजा में तेरी पतंग सही मगर ये सोच कभी डोर किसके हाथ में है। जैसी अनेक गजलें सुनाकर महफिल को मस्त कर दिया। और लगा की गालिब को सही तरीके से याद किया गया। तत्पश्चात सदर महोदय ने ’’बंजारों को बस्ती और वीरानों से क्या मतलब है, नदी किनारे की कश्ती को तूफानों से क्या मतलब है।’’ सुनाकर महफिल को अन्जाम तक पहुंचाया इस दौरान चूड़ा मटर गाजर के हल्वे का लजीज नाश्ता काफी और बाटी चोखा का दौर भी लगातार चलता रहा।
कार्यक्रम के अन्त में मित्र मंच के संयोजक विकास वर्मा ने समस्त आगन्तुकों को धन्यवाद ज्ञापित कर आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।
उक्त कार्यक्रम में विजय कुमार जैन, रामप्रसाद यादव, अमित वर्मा, शैफुल्ला, सलाउद्दीन, एकराम अहमद, मुन्नू पहलवान, उमेश जालान, राधेश्याम बंका, प्यारे भाई, राजकिशोर सिंह, मोइनूदीन मिन्टू, फैजान, मकसूद अली, अशोक श्रीवास्तव, अजय यादव डिम्पल, पप्पू सिंह, सुशील तिवारी, संतोश सिंह, श्रीकान्त पांडेय, जागीर अली, मौ0 इबादत हुसैन, मुमताज, संजय केशरी, अनुप केशरी, धर्मराज जैन, किशन अग्रहरि, धीरज सोनी, किशन केशरी, संतोष सोनी, अशोक विश्वकर्मा,सुरेश भारती,विनोद कुमार चौबे,मुरली मनोहर अग्रवाल,अमरनाथ अजेय,वी.के. सिंघला, मो.अली मुन्नी,अमीर हम्जा,कमलेश चौरसिया,धर्मेश बाबू,शिव सावरिया,सरजू बाबू,सत्यपाल जैन, फरीद खॉं, विरेन्द्र कुमार जायसवाल बिन्दू,विकास मित्तल समेत अनेक पत्रकार बन्धु, अधिवक्तागण, सहयोगी,समाज सेवीकार्यकर्ता इत्यादि उपस्थित रहे।


