वसीम अकरम त्यागी
राजनाथ सिंह कहते हैं कि वे लव जिहाद को जानते ही नहीं, दैनिक जागरण कहता है कि दौड़ा – दौड़ा कर पीटा गया लव जिहादी। किसको सही माने और किसको गलत ? किसको सांप्रदायिक माने और किसको सैक्यूलर ? इस तरह के कई सवाल पैदा कर रही है अलीगढ़ में घटी एक घटना जिसमें कथित तौर से शहबाब नाम के किसी शख्स ने अपना नाम बंटी बताकर भाजयुमो जिलाध्यक्ष का मकान किराये पर लिया। जिसमें उसकी प्रेमिका, जिससे वह शादी करना चाहता था, मिलने आती थी। आज उन्होंने उन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में पाया। बंटी उर्फ शबाब नाम के ‘लव जिहादी’ की दौड़ा-दौड़ाकर पिटाई की, उसकी बाईक को आग लगा दी। खबर को जिस तरह से लिखा गया है, क्या उसे कॉपी संपादक, सब एडीटर, एडीटर ने नहीं देखा होगा ? जरूर देखा होगा बगैर देखे खबर पोर्टल पर नहीं चलायी जा सकती। इस पूरे मामले को जितना सांप्रदायिक रंग भाजपा ने दिया उससे 10 गुना सांप्रदायिक बनाया दैनिक जागरण ने। जागरण ने साबित किया कि वह हिंदी नहीं बल्कि हिंदुत्व का अखबार है।
खैर अब कुछ सवाल जो इस प्रकरण से पैदा होते हैं। भाजयुमो अध्यक्ष मनोज शर्मा कहते हैं कि शबाब नाम के युवक ने अपना नाम बंटी बताकर उनका मकान किराये पर लिया। वह पहचान छिपाने के लिये तिलक भी लगाता है। शबाब कहता है कि उसने अपनी सही पहचान बताकर ही मकान किराये पर लिया था, वह मुसलमान है इसकी जानकारी भी मकान मालिक को थी। अब यहां कई सवाल पैदा हो गये हैं झूठ कौन बोल रहा है कौन सच ? यह भी तलाशना जरूरी है। मकान किराये पर लेने के लिये तीन चीजों की आवश्यकता होती है। पहली वोटर आईडी कार्ड, दूसरी पासपोर्ट, तीसरी लाईसेंस। क्या इन तीनों में उस युवक का नाम वही है जो भाजयुमो ने बताया है ? अगर वही है तो फिर यह सवाल कैसे पैदा हो गया कि उसने नाम बदलकर मकान किरये पर लिया था ? और अगर वह नाम नहीं है तो फिर कैसे मनोज शर्मा ने एक अज्ञात युवक को अपने मकान में किराये पर कमरा दे दिया ?
मनोज शर्मा कहते हैं कि कुछ महीने पहले मकान किराये पर लिया था सवाल यहां भी पैदा हो जाता है कि अगर कुछ महीने पहले मकान किराये पर लिया था तब क्या वह शख्स ईद मनाने अपने गांव भुजपुरा नहीं गया था ? क्या तब पता नहीं चला कि वह युवक मुस्लिम है या गैर मुस्लिम ? अब जिस युवती की बात की जा रही है उसका कहना है कि शबाब से उसके संबंध छह साल से हैं, मगर उसे पता नहीं था कि वह बंटी नहीं शबाब है। वह हिंदू नहीं बल्कि ‘लव जिहादी’ है। मगर सवाल यहां भी पैदा हो जाते हैं क्या उस युवती को एक बार भी पता नहीं चला कि वह युवक मुस्लिम है या हिंदू ? छ साल साथ रहने के बाद भी उसे नहीं मालूम कि वह जिससे प्यार करती है वह मुसलमान है तो फिर आज अचानक कैसे पता चल गया कि वह युवक मुसलमान है ? क्या इन छह साल के समय में एक बार भी उस युवक की आस्था नहीं जागी होगी ? क्या उसने, ईद, बकरीद, जुमा, आदि की नमाज एक बार भी अदा नहीं की होगी ? वह युवती जिससे शादी करना चाहती है उसके परिवार वालों से भी एक बार भी नहीं मिली होगी ? वह भी छह साल के लंबे समय में। मान लिया नहीं मिली होगी हालांकि मिली जरूर होगी। मगर आज की खबर के अनुसार यह प्रेमी युगल आपत्तिजनक स्थिति में पाया गया। जाहिर है छह साल के समय में ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ होगा, पहले भी हुआ होगा क्या तब भी पता नहीं चला कि वह बंटी नहीं शबाब है। (शादी से पहले इस्लाम में संबंध बनाना हराम है )
सच्चाई यही है कि युवती को पता था कि वह युवक मुसलमान है मगर भाजपा की अलीगढ़ कमेटी ने लवजिहाद के जिन्न को जिंदा रखने के लिये इस षड़यंत्र को रचा, क्योंकि भाजपा जानती है कि अलीगढ़ में सांप्रदायिक तनाव उसे जीत दिला सकता है। आखिर अमित शाह ने कुछ सोचकर ही कहा था कि सांप्रदायिक तनाव बरकरार रहा तो यूपी जीत लेंगे। उसी आदेश का पालन करते हुऐ इस षड़यंत्र को रचा गया। जो न समाज के हित में है न देश के।

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वसीम अकरम त्यागी, लेखक साहसी युवा पत्रकार हैं।