तो फिर से पटरियों पर होंगे गुर्जर!
तो फिर से पटरियों पर होंगे गुर्जर!
अवधेश आकोदिया
गुर्जरों और सरकार के बीच समझौता तो हो गया, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि दोनों पक्ष कब तक इस पर कायम रहेंगे। गुर्जरों को इस तरह के आश्वासनों की घुट्टी पिलानी पहले भी घातक साबित हो चुका है। यदि अति पिछड़ी जातियों का सर्वे गुर्जरों के मुफीद नहीं रहा तो उन्हें फिर से भडक़ते देर नहीं लगेगी।
गुर्जर आरक्षण आंदोलन के मसले पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति कारगर रही। सख्ती का बजाय नरमी के रुख ने गुर्जर नेताओं को समझौते के लिए मजबूर कर दिया। 17 दिन तक चला यह आंदोलन आखिरकार 12 सूत्री समझौते पर आकर समाप्त हो गया। पूर्व में आन्दोलनों के बाद सरकार से समझौते कर अपने ही लोगों की आलोचनाओं व आरोपों का शिकार हुए बैंसला ने इस बार सावधानी बरती। उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले वार्ता में शामिल सभी प्रतिनिधियों से समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर करवाए। बैंसला ने यह कहा भी कि वे भुक्तभोगी हैं और इस बार कोई गलती नहीं करना चाहते। मुख्यमंत्री के स्तर पर भी इस बार विशेष सावधानी बरती गई। गहलोत तब तक गुर्जर नेताओं से नहीं मिले जब तक कि समझौता नहीं हो गया।
गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरु होते ही गहलोत ने यह तय कर लिया था कि सरकार की ओर से आंदोलनकारियों पर कोई सख्ती नहीं की जाएगी। उन्हें आंदोलन करने दिया जाए और वार्ता का न्यौता लगातार भेजा जाए। गहलोत की यह रणनीति काम कर गई और शुरुआत में ट्रेक पर ही आरक्षण मांग रहे गुर्जर नेताओं को अंतत: बातचीत की मेज पर आकर सरकार से समझौता करना पड़ा। सूत्रों के अनुसार वार्ता में गुर्जरों की मांग के एक-एक बिन्दु पर पूरी चर्चा हुई। चर्चा में लिखित समझौते की भाषा पर भी विचार कर संशोधन करवाए गए। समझौते का मसौदा चार बार बदला गया। जिस मसौदे पर हस्ताक्षर हुए है, उसके मुताबिक हाईकोर्ट के फैसले के तहत छह माह में पिछड़ी जातियों का सर्वे करवाया जाएगा। सर्वे में अन्य जातियां जुड़ीं तो पृथक रूप से आरक्षण बढ़ा दिया जाएगा। जब तक सर्वे पूरा होगा तब तक भर्तियां जारी रहेंगी और उनमें एसबीसी को एक प्रतिशत आरक्षण मिलता रहेगा। इन भर्तियों में चार फीसदी पद सुरक्षित रखे जाएंगे और पिछड़ा वर्ग आयोग में एसबीसी के पक्ष में रिपोर्ट आने पर तीन माह में अभियान चलाकर बैकलॉग भरा जाएगा। सरकार ने गुर्जरों की इस मांग को भी मान लिया है कि तमिलनाडु व कर्नाटक में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण रोका नहीं गया है, इस तर्क के आधार पर सरकार हाईकोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगी और आग्रह करेगी कि कोर्ट के फैसले तक एसबीसी को 5 फीसदी आरक्षण जारी रखा जाए।
गुर्जरों की आरक्षण की मांग अपनी जगह है, लेकिन वे इस बात से खासे नाराज थे कि आंदोलन के दौरान सरकार की ओर से दायर किए गए मुकदमे अब तक वापिस नहीं लिए गए हैं। ताजा समझौते के अनुसार गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी समिति गुर्जरों के खिलाफ मुकदमों की समीक्षा कर उन्हें कानूनी रूप से वापस लेने के बारे में दो माह में निर्णय करेगी। तेलंगाना आंदोलनकारियों की रिहाई के तरीके का सरकार अध्ययन करेगी। फिर केंद्र और रेलवे को मुकदमे वापस लेने के लिए लिखेगी। दो माह के दौरान किसी को नौकरी के लिए चरित्र प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ी तो गृह सचिव उस मुकदमे का पहले निस्तारण करेंगे। गुर्जरों की मांग मानते हुए देवनारायण बोर्ड गठित कर उसमें चारों जातियों के प्रतिनिधि शामिल किए जाएंगे। बजट के समय इस बोर्ड का प्रावधान बढ़ाया जाएगा, जिन क्षेत्रों में इन जातियों का बाहुल्य है, वहां बोर्ड का विस्तार होगा। गुर्जर लाइसेंसशुदा हथियारों की जब्ती और लाइसेंस समाप्त करने की फैसले से भी काफी क्षुब्ध थे। अब सरकार ने यह मान लिया है कि जिन हथियार लाइसेंस के मामलों में आपराधिक मामला नहीं होगा उनके लाइसेंस रिन्यू होंगे तथा जब्त हथियार लौटा दिए जाएंगे। आंदोलनों के दौरान अपाहिज होने वालों को मापदंडों में छूट देकर विकलांग पेंशन दी जाएगी। आंदोलनों में गंभीर घायलों को इलाज के लिए मुआवजा दिया जाएगा। निजी अस्पताल में इलाज करवाने वाले घायलों को सरपंच या स्थानीय निकाय जनप्रतिनिधि का प्रमाण पत्र मेडिकल बिल के साथ देने पर मुआवजा दिया जाएगा।
मृतक आश्रितों को नौकरी देने की मांग पर सरकार पहले से ही सहमत थी। नए समझौते में भी यह कहा गया है कि आंदोलनों में सभी मृतकों के आश्रितों को सरकारी नौकरी दी जाएगी। इसके अलावा एसबीसी की जातियों के लिए एसटी विकास की तर्ज पर योजनाओं का विशेष पैकेज बनाया जाएगा। एसबीसी छात्रों को एससी एसटी की तर्ज पर प्री और पोस्टमैट्रिक छात्रवृतियां मिलेंगी। छात्रवृत्ति के लिए आय सीमा बढ़ेगी। एसबीसी बहुल इलाकों में स्कूल, कॉलेज, तकनीकी संस्थान, और छात्रावास की सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी। जहां तक गुर्जरों को मिल रहे एक प्रतिशत आरक्षण का सवाल है तो यह तो उन्हें पहले से ही मिल रहा था, लेकिन नए समझौते में रोस्टर प्रणाली में बदलाव किया गया है। फिलहाल एसबीसी को रोस्टर प्रणाली में 97वें नंबर पर आरक्षण दिया जा रहा है। इस कारण 97 नौकरी निकलने पर एक पद आरक्षित रहता है। चार प्रतिशत आरक्षण का फैसला होने पर इसमें बदलाव होगा और 20, 40, 60, 80 बिंदु पर आरक्षण मिलेगा।
समझौता होने के बाद सरकार ने निश्चित रूप से राहत की सांस ली है। गहलोत को आंदोलन की वजह लोगों को हो रही परेशानी से ज्यादा चिंता इस बात की थी कि कहीं यह आंदोलन हिंसक रूप धारण न कर ले। उन्होंने पुलिस प्रशासन को तो नरमी बरतने की हिदायत दे ही रखी थी, गुर्जर नेताओं से भी वे बार-बार शांति बनाए रखने की अपील कर रहे थे। उनकी सूझबूझ काम आई और मामला सुलझ गया। समझौता होने के बाद गहलोत ने कहा कि ‘बहुत अच्छे माहौल में बातचीत हुई। समझौते के बाद हम शांति और भाईचारे से आगे बढ़ेंगे। प्रदेश में तनाव का माहौल बना हुआ था, वह अब समाप्त हो गया है। इसके लिए कर्नल बैंसला और गुर्जर समाज के नेता बधाई के पात्र हैं। हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार समझौते की पालना में काम करेंगे ताकि जल्द राहत मिले।’ वहीं पूरे आंदोलन की अगुवाई कर रहे गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने एक बार फिर सरकार पर भरोसा जताते हुए कहा कि ‘सरकार ने गुर्जरों को रिजर्वेशन देने की गारंटी दी है। मैं सरकार पर विश्वास कर रहा हूं। सरकार से मेरी और मेरे प्रतिनिधिमंडल के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में बात होने के बाद विश्वास पैदा हुआ। अब जनहित में आंदोलन स्थगित कर रहा हूं, मैं संतुष्ट हूं।’
इस बार के समझौते को देखें तो लग रहा है कि सरकार गुर्जरों को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहती है। यह संभव है कि सरकार समझौते पर ईमानदारी से अमल करे फिर भी कई जीचें सरकार के हाथ में नहीं है। मसलन, पिछड़ा वर्ग की जातियों के सर्वे के नतीजे। सरकार छह महीने की तय समय सीमा में पिछड़ा वर्ग की जातियों का सर्वे तो कर लेगी, लेकिन इससे कई नई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। पिछड़ा वर्ग के वर्गीकरण पर पहले से ही कई जातियां आमने-सामने हो चुकी है। सवाल यह भी है कि गुर्जरों के साथ अति पिछड़ी जातियों की संख्या बढ़ गई तो सरकार इससे निपटेगी। गुर्जरों से हुए समझौते में तो सरकार ने इस बात पर हामी भर ली कि सर्वे में अन्य जातियां जुड़ीं तो पृथक रूप से आरक्षण बढ़ा दिया जाएगा, लेकिन यह बढ़ेगा कैसे? पिछड़ा वर्ग के वर्गीकरण की कोशिश की गई तो जाट विरोध करेंगे और पचास फीसदी की सीमा पार की गई तो मामला कोर्ट में अटक जाएगा। ऐसे में क्या यह माना जाए कि छह महीने बाद गुर्जर एक बार फिर पटरियों पर होंगे?
सरकार से जुड़े सूत्रों की माने तो पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और गुर्जरों समेत बाकी अति पिछड़ी जातियों को पचास फीसदी की सीमा से बाहर आरक्षण देने की रणनीति पर चलेगी। मामला कोर्ट में नहीं अटके इसलिए विधेयक को संविधान की नवीं अनुसूचि में शामिल करवाने के प्रयास किए जाएंगे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि मुख्यमंत्री खुद पूरे मामले की निगरानी करेंगे। गौरतलब है कि पिछले दो साल में सरकार ने गुर्जरों को विशेष आरक्षण प्रदान करने वाले अधिनियम को संविधान की नवीं सूची में शामिल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। सरकार केवल एक पत्र लिख कर शांत हो गई। ऐसे में जब कोई भी राजनीतिक दल इस अधिनियम को संविधान की नवीं अनुसूचि में शामिल करने का विरोध नहीं कर रहा था, तब भी सरकार ने इस ओर कदम नहीं बढ़ाए। गुर्जर नेताओं का यह कहना है कि राज्य सरकार को तमिलनाडु सरकार से सबक लेते हुए काम करना चाहिए था जिसने 16 साल पहले ही तमाम प्रक्रियाएं पूरी कर आरक्षण अधिनियम को 257 ए के तहत नवीं सूची में सूचीबद्ध करवा दिया और यह 76 वां संविधान संशोधन कहलाया। गुर्जर नेताओं का भी मानना है कि हाई कोर्ट में इस मसले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ताओं को भी राज्य सरकार पर इस बारे में दबाव डालना चाहिए था कि वह इस अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल करने की औपचारिकताएं पूरी करे। खैर, नए समझौते के बाद सरकार इस दिशा में कितनी सक्रियता दिखाती है और उसके क्या परिणाम निकलते हैं यह तो वक्त ही बताएगा। गुर्जरों पर चल रहे मुकदमों को वापिस लेना भी सरकार के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि कई मामलों में चालान पेश हो चुका है और कई रेलवे की ओर से दर्ज हैं।
जहां तक इस आंदोलन के सियासी नफा-नुकसान का सवाल है तो इसका गहलोत को निश्चित रूप से फायदा हुआ है। उनकी नरमी ने अनायास ही उन्हें गुर्जरों का हितैषी बना दिया है। आंदोलन समाप्त होने के बाद कर्नल बैंसला के नेतृत्व में उनसे मिलने आए गुर्जर प्रतिनिधिमंडल के सामने भी वे गुर्जरों पर किए उपकारों को गिनाना नहीं भूले। गहलोत ने कहा कि ‘राज्य सरकार नहीं चाहती थी कि इस भरी सर्दी में गुर्जरों को ट्रेक पर बैठाया जाए। इस आंदोलन के दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि कहीं पर भी लाठीचार्ज नहीं हुआ। हमारा यह दृढ़ निश्चय था कि अहिंसा से ही इस आंदोलन का समाधान हो, वह गुर्जरों को कर दिखाया। गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान पटरी पर बैठे लोगों के लिये मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए पानी के टैंकर, चिकित्सा सुविधा, रात्रि में अलाव आदि की व्यवस्था करने के निर्देश भरतपुर कलेक्टर को दिये थे। इसके पीछे सरकार की मंशा यही थी कि किसी को तकलीफ नहीं होनी चाहिए।’
अशोक गहलोत ने आंदोलन को नेतृत्व कर रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला से भी बड़ी चतुराई से निपटे। गहलोत ने पहले से ही तय कर रखा था कि कब बैंसला को तवज्जो देनी है और कब उन्हें नजरअंदाज करना है। आंदोलन के दौरान बैंसला और गहलोत की सीधी बात नहीं हुई और जब समझौता हो गया तो गहलोत ने बैंसला के तारीफ करने में कोई कंजूसी नहीं की। गहलोत ने कहा कि ‘कर्नल बैंसला धन्यवाद के पात्र हैं। उन्होंने महात्मा गांधी से प्रभावित अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति मार्टिन लूथरकिंग, जिन्हे अमेरिका का गांधी कहा जाता है, उनकी गांधीजी के साथ फोटो के सामने गुर्जर आरक्षण आंदोलन को अहिंसात्मक तरीके से चलाने की जो शपथ ली थी, उसे उन्होंने पूरा कर दिखाया। पहले के आंदोलन में खून खराबा हो चुका था, 70 लोग मारे गये थे, अनेक घायल हुए। इस बार रेलवे और कुछ अन्य जगहों पर नुकसान हुआ, पर एक भी इंसान नहीं मरा । विश्वास पर ही दुनिया कायम हैं और हम लोग भी आगे बढक़र काम कर रहे हैं। गुर्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने के लिये राज्य सरकार पूर्णतया कटिबद्ध है। राज्य सरकार की मंशा कभी गलत नही थी, आपकी भावना और हमारी भावना में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एवं गुर्जर मिलकर काम करेंगे तथा इस वर्ग का सर्वे जल्द करवाएंगे, लेकिन हम सभी कोर्ट के आदेश का सम्मान भी करें। सरकार इसकी समीक्षा करेगी। अपना पक्ष रखने के लिये गुर्जरों के सहयोग से चाहे कितना भी पैसा लगे, अच्छे से अच्छा वकील कर ऊपर पैरवी करेंगे।’
गहलोत ने उनसे मिलने आए गुर्जर प्रतिनिधिमंडल को प्रभावित करने को कोई मौका नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि ‘कौम की पीड़ा क्या है, उसको मैं महसूस कर रहा हूं। कितनी गरीबी है, कितना पिछड़ापन है, हम आगे भी गांव,गरीब, पिछड़ो के लिये काम करेंगे। राजस्थान के विकास में सबकी भागीदारी होनी चाहिए। विकास तभी होगा जब शांति व सद्भाव बना रहेगा। पुरानी बातों को भूल जाओ, जो नए फैसले हुए हैं, उन्हे लागू करने के लिये समयबद्ध तरीके से काम करेंगे। इसके लिए मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह को कह दिया गया है। मुझे विश्वास है कि भविष्य में किसी तरह की शिकायत नहीं आनी चाहिए।’ गहलोत गुट के माने जाने वाले गुर्जर नेताओं ने भी इस मौके का पूरा फायदा उठाते हुए कहा कि कर्नल बैंसला कौम के पिता हंै, मुख्यमंत्री गहलोत राज्य के पिता। गुर्जरों को जब भी आरक्षण मिलेगा आपकी कलम से मिलेगा। फिर क्या था बैंसला को भी सुर में सुर मिलाते हुए बोलना पड़ा कि ‘अब मैं मंजिल-ए-मकसूद पर आ पहुंचा हूं। गुर्जर समाज की पीड़ा समझने और आंदोलन का शांति, सौहार्द एवं अहिंसात्मक तरीके से समाधान करवाने के लिए मुख्यमंत्री का आभार।’ यहां सवाल यही है कि बैंसला का यह रुख कितने लंबे समय तक कायम रहता है। वे पहले भी कई बार सरकार की तारीफ कर चुके हैं।


