तो भाजपा बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाएगी... बहुजन बुद्धिजीवियों ने सुझाया नुस्खा
आपकी नज़र | हस्तक्षेप Then the BJP will merge into the Bay of Bengal… Bahujan intellectuals suggested the recipe. बहुजन बुद्धिजीवियों ने जारी की लोकसभा चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने की अपील

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बहुजन बुद्धिजीवियों ने जारी की लोकसभा चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने की अपील
एच. एल. दुसाध
17वें डाइवर्सिटी डे का व्यतिक्रम
27 अगस्त को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में पारम्परिक भव्यता और गरिमा के साथ एक और ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन हो गया इस क्रम में.पिछले कई सालों के बाद डाइवर्सिटी डे फिर एक बार अपनी नियत तिथि : 27 अगस्त को आयोजित हुआ. पिछले कुछ सालों से कोरोना सहित एकाधिक अत्याज्य कारणों से इसका आयोजन नियत तिथि 27 अगस्त के बजाय अन्य तिथियों पर हो रहा था. ’बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ और ‘संविधान बचाओं संघर्ष समिति’ द्वारा आयोजित 17वें डाइवर्सिटी डे में विगत वर्षों की तुलना में एक बड़ा व्यतिक्रम यह हुआ कि इसमें बुद्धिजीवियों के मुकाबले नेताओं को ज्यादा तरजीह दी गयी. इसके पहले सामान्यतया लेखक-पत्रकार ही आयोजन के अध्यक्ष, मुख्य व विशिष्ट अर्तिथि होते रहे. पर, इस बार ऐसा नहीं हुआ. तो इसलिए कि 17वें डाइवर्सिटी डे का आयोजन लोकसभा चुनाव 2024 को दृष्टिगत रखकर किया गया, इसलिए नेताओं को तरजीह दी गयी. मुख्य अतिथि के रूप में आयोजन को धन्य किये मा. केसी त्यागी(पूर्व सांसद,मुख्य प्रवक्ता एवं सलाहकार जदयू ) ; उद्घाटनकर्ता रहे कैप्टेन अजय सिंह यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, एआईसीसी, ओबीसी डिपार्टमेंट) और अध्यक्षता किये आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री व वर्तमान में विधायक मान्यवर राजेन्द्र पाल गौतम. विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित रहे एआईसीसी के एससी डिपार्टमेंट के चेयरमैन मा. राजेश लिलोठिया और सीपीआई की ऐनी राजा, जो कुछ अत्याज्य कारणों से शिरकत न कर सके. लेकिन राजनीतिक दलों से जुडी शख्सियतों को तरजीह देने बावजूद लेखक – एक्टिविस्टों की उपस्थिति प्रायः पहले की भांति रही. इस बार भी प्रो रतनलाल, चंद्रभान प्रसाद, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. सूरज मंडल, हीरालाल राजस्थानी, मा. शीलबोधि, मा. आइके गंगानिया, डॉ. अनिरुद्ध कुमार सुधांशु, निर्देश सिंह, शम्भूनाथ सिंह, डॉ. सोनू कुमार भरद्वाज,मा. दिलीप पासवान, मा. नन्दलाल मांझी जैसे चर्चित लेखक,पत्रकार और एक्टिविस्टों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से डाइवर्सिटी डे उत्सव में चार चाँद लगाया. भारी सुखद उपस्थिति रही मुम्बई के मान्यवर सुनील खोब्रागडे की. प्रायः डेढ़ दशक तक ‘महानायक’ जैसा दैनिक अख़बार निकालने वाले खोब्रागडे साहब अचानक आयोजन में उपस्थित होकर सबको सुखद आश्चर्य में डाल दिये
लोकसभा चुनाव 2024 को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना क्यों है जरूरी!
मंच संचालन का दायित्व विगत वर्षों की भाति इस बार भी डॉ अनिल जयहिंद यादव ने शानदार तरीके से निर्वहन किया. चूंकि आगामी लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए 17 वें डाइवर्सिटी डे का आयोजन हुआ था, इसलिये परिचर्चा का विषय रखा गया था : लोकसभा चुनाव 2024 को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना क्यों है जरूरी! प्रायः सभी ने इसी पर अपने संबोधन को केन्द्रित रखा.
मुख्य अतिथि केसी त्यागी ने इस विषय पर अपने संबोधन को केन्द्रित करते हुए कहा, ’क्यों आज तक सामाजिक न्याय राजनीति के केंद्र में नहीं आ पाया? क्यों आज भी हम सामाजिक न्याय की बातें सिर्फ कर रहे हैं और आज भी सरकार का डाटा कहता है कि एक तिहाई ऐसी जगह हैं जहां पर आज भी दलित समाज के लोग हाथ से अस्वच्छता का करने के लिए विवश हैं। आजादी के 76 सालों बाद भी यह शर्मनाक है कि देश की इतनी बड़ी आबादी यह काम कर रही है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि हम जानते ही नहीं हैं कि इस देश में किस समाज के कितने लोग रहते हैं और उनकी क्या स्थिति है।
अपनी बात को बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, ’उनकी पार्टी विपक्ष के इंडिया एलियांज का हिस्सा है तो इस बार इंडिया एलायंस के मेनिफेस्टो में जातीय जनगणना का मुद्दा प्रमुख होगा। जब तक सामाजिक न्याय की बात नहीं होगी, तब तक न्याय मिलना संभव होगा। बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व केवल सरकारी नौकरियों में सुनिश्चित किया गया है जो ठीक से मिलने भी नहीं है, लेकिन एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है, जहां आज भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।‘ उन्होंने अपने संबोधन में निजी क्षेत्र में आरक्षण पर जोर दिया.
17वें डाइवर्सिटी डे के उद्घाटनकर्ता कैप्टेन अजय सिंह यादव ने भी अपने संबोधन में सामाजिक न्याय पर जोर देते हुए जो कुछ कहा उससे लगा 2024 के लोकसभा चुनाव सामाजिक न्याय पर केन्द्रित हो सकता है. सामाजिक न्याय की दिशा में कांग्रेस ने रायपुर अधिवेशन से लेकर कर्णाटक चुनाव में उठाये गए सामाजिक न्याय के एजंडे पर प्रकाश डाला. कांग्रेस किस तरह जाति जनगणना के समर्थन में है और राहुल गाँधी ने किस तरह कर्णाटक में जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी के जरिये सामाजिक न्याय का बड़ा सन्देश दिया है, इस बात को भी उन्होंने याद दिलाया.
विशिष्ट अतिथि प्रो. रतनलाल ने अपने संबोधन में इस बात के लिए अफसोस जताया कि दलित समाज के जागरूक लोगों का अधिकतम ध्यान अपने समाज की आर्थिक मुक्ति के बजाय अधिकतम जोर हुक्मरान बनाने पर है. इस क्रम में उन्होंने कहा, ’केवल हुक्मरान बनने का सपना मत देखिए, हुक्मरान बनने के लिए; नेता बनने के लिए बहुत सी चीजों की जरूरत पड़ती है जो कि हमारे पास नहीं है। हर तरीके के पावर सेंटर में पहुंचना जरूरी है। लेकिन हमसे सबसे बड़ी गलती यह हुई कि हमने केवल नेता बनने पर ध्यान लगाया ना कि और पावर सेंटर में पहुंचने की कोशिश की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आम आदमी पार्टी राजेंद्र पाल गौतम ने कहा, ‘हमारी पार्टी आम आदमी पार्टी भी विपक्ष के इंडिया एलियांज का हिस्सा है। उनको फर्क नहीं पड़ता कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, लेकिन जो भी बने उसे सामाजिक न्याय के मुद्दे पर काम करना पड़ेगा। चाहे सरकार बदले या ना बदले हमारा काम सामाजिक न्याय के लिए लड़ना था है और रहेगा। बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के संविधान को बदलने की जो बात कर रहे हैं हम उसके खिलाफ हमेशा खड़ा रहेंगे।
काफी आगे बढ़ चुका है भोपाल सम्मलेन से निकला डाइवर्सिटी का विचार
दीप प्रज्ज्वलन और बहुजन महापुरुषों के चित्र पर पुष्पार्पण के बाद कार्यक्रम की शुरुआत बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के संस्थापक एच एल. दुसाध के विषय प्रवर्तन से हुई. उन्होंने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि नई सदी के शुरुआत में जब नवउदारीकरण की नीतियों से भयाक्रांत होकर तमाम दलित संगठन निंजीक्षेत्र में आरक्षण की मांग को लेकर आन्दोलन चला रहे थे, वैसे समय में चर्चित दलित चिन्तक चंद्रभान प्रसाद ने अमेरिका के डाइवर्सिटी सिद्धांत से प्रेरणा ले कर दलितों के लिए नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग – व्यापार में हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया. इसी विषय पर 2002 के जनवरी में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सौजन्य से ऐतिहासिक भोपाल सम्मलेन आयोजित हुआ, जहां से डाइवर्सिटी केन्द्रित 21 सूत्रीय दलित एजेंडा जारी हुआ जिसे ऐतिहासिक भोपाल घोषणापत्र भी कहते हैं. भोपाल घोषणा पत्र में दलितों को नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि समस्त क्षेत्रों हिस्सेदार बनाने का निर्भूल नक्शा पेश किया गया था, जो देश के समस्त बुद्धिजीवियों के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम केआर नारायण की भी दृष्टि आकर्षित किया और उन्होंने इसे लागू करने के के लिए सरकारों के समक्ष अपनी मंशा जाहिर की. बाद में ज़ब भोपाल सम्मलेन में किये गए वादे के मुताबिक़ दिग्विजय सिंह 27 अगस्त, 2002 को समाज कल्याण विभाग की खरीददारी में कुछ दलित उद्यमियों को सप्लाई का आर्डर जारी किया: डाइवर्सिटी का मुद्दा दलितों में चर्चा का बहुत बड़ा विषय बन गया.उनमे यकीन जन्मा कि यदि सरकारें चाह दें तो अमेरिकी दलितों(कालों) की भांति भारत में भी दलितों को नौकरियों के साथ सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि में आरक्षण मिल सकता है. इसके बाद तो ढेरों दलित अपने-अपने राज्य में डाइवर्सिटी लागू करवाने की लड़ाई में जुट गए. पर, कुछ वर्षों के प्रयास के बाद वे थक कर बैठ गए. वैसे में भोपाल सम्मलेन से निकले डाइवर्सिटी के विचार आगे बढ़ाने के लिए 15 मार्च , 2007 में बहुजन लेखकों का संगठन ’बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’(बीडीएम) वजूद में आया और मध्य प्रदेश में लागू सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेने के लिए हर वर्ष 27 अगस्त को “डाइवर्सिटी डे” मनाना शुरू किया और आज हमलोग 17 वां डाइवर्सिटी डे मना रहे हैं.
आज भोपाल सम्मलेन से निकला डाइवर्सिटी का विचार काफी आगे बढ़ चुका है. इसका प्रमाण यह है कि अबतक कई सरकारें बहुजनों को ठेकों में आरक्षण दे चुकी हैं. इस सिलसिले में सबसे बड़ा मिसाल झारखण्ड में कायम हुआ है, जहां 25 करोड़ तक के ठेकों में आरक्षण है. कई राज्य सरकारों ने धार्मिक न्यासों और मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में डाइवर्सिटी लागू किया है, जिसका सबसे बड़ा दृष्टान्त तमिलनाडु में स्थापित हुआ है, जहां 36,000 मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में एससी, एसटी, ओबीसी, और महिलाओं के आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है. हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने इस दिशा में साहसिक कदम उठाया है. सबसे बड़ी बात यह हुई कि देश के अधिकांश चिन्तक एक्टिविस्ट आज अपने-अपने तरीके से नौकरियों से आगे बढ़कर सभी क्षेत्रों में जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात उठा रहे हैं. खुद कर्णाटक चुनाव में सामाजिक न्याय की राजनीति के नए नए आइकॉन राहुल गांधी भी जिसकी जितनी संख्या.. की बात उठा चुके हैं.
इसलिए जरुरी है चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना
लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार विगत नौ सालों में जिस तरह जुनून के साथ तमाम संस्थाओं को निजी हाथों में दे रहे हैं, उससे ऐसे क्षेत्र ही नहीं बचेंगे जहां डाइवर्सिटी लागू करने का स्कोप हो.केंद्र सरकार की नीतियों के कारण देश में सामाजिक अन्याय का सैलाब आ गया है. ऐसे में मौजूदा सरकार सत्ता से आउट करना इतिहास की सबसे बड़ी जरुरत बन गयी है. पर, ध्यान रहे इस सरकार को मंहगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता, आवारा पशु, कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार इत्यादि जैसे रूटीन मुद्दे से सत्ता से आउट नहीं किया जा सकता: आउट किया जा सकता है सिर्फ और सिर्फ सामाजिक न्याय के मुद्दे के जोर से: सामाजिक न्याय के पिच पर चुनाव को केन्द्रित करने यह सरकार हारने के सिवाय कुछ कर ही नहीं सकती. इसीलिए 17 वें डाइवर्सिटी डे पर परचर्चा का विषय रखा गया है : लोकसभा चुनाव 2024 को सामाजिक न्याय के मुद्दे पर केन्द्रित करना क्यों है जरूरी!
किताब रिलीज और पुरस्कार वितरण के परम्परा का हुआ पालन
बहरहाल हर साल डाइवर्सिटी डे के अवसर पर बीडीएम की ओर से कुछ किताबें रिलीज करने साथ कुछ व्यक्तियों को डाइवर्सिटी के क्षत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए डाइवर्सिटी मैन/ वुमन ऑफ़ द इयर से सम्मानित किया जाता रहा है. इस परम्परा का निर्वहन करते हुए 17वें डाइवर्सिटी डे के अवसर पर चर्चित अधिवक्ता और पॉलिटिकल- सोशल थिंकर आर आर बाग़ को न्यायपालिका में डाइवर्सिटी लागू करवाने के बलिष्ठ प्रयास तथा स्त्री-काल चैनल व पत्रिका के जरिये शक्ति के स्रोतों में जेंडर डाइवर्सिटी लागू करवाने के सराहनीय प्रयास के लिए मा. संजीव चन्दन को जहां ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ द इयर’ से सम्मानित किया गया, वहीँ द मूकनायक की संस्थापक और एडिटर इन चीफ सुश्री मीना कोटवाल को ‘डाइवर्सिटी वुमन ऑफ़ द इयर’ के ख़िताब से नवाजा गया.
डाइवर्सिटी डे की परम्परा का पालन करते हुए हर बार की तरह इस बार भी कुछ किताबें रिलीज हुई. इस अवसर पर अकेले एच.एल. दुसाध की लिखी/ सम्पादित ये सात किताबें रिलीज हुईं- ‘आजादी के अमृत महोत्सव पर : बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की अभिनव परिकल्पना’; ‘मिशन डाइवर्सिटी 2021’; ‘मिशन डाइवर्सिटी-2022’; ‘यूपी विधानसभा चुनाव 2022: सामाजिक न्याय की राजनीति का टेस्ट होना बाकी है’; ‘डाइवर्सिटी पैम्फलेट’ , ‘राहुल गांधी: कल, आज और कल’ तथा ‘सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन : राहुल गाधी’. किन्तु इन सात किताबों से भी बढ़कर जो चीज रिलीज हुई वह रही बहुजन डाइवर्सिटी मिशन और संविधान बचाओं संघर्ष समिति की और जारी- ‘इंडिया के समक्ष हमारी अपील’, जिसे रिलीज किया मुख्य अतिथि मा. के.सी. त्यागी ने. इसे सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं को भी दिया गया इस विषय में दुसाध ने कहा जब- जब लोकसभा का चुनाव आता है बीडीएम की ओर से राजनीतिक दलों के समक्ष इस किस्म की अपील जारी की जाती रही है. उसी परम्परा का पालन करते हुए आज यह अपील जारी की जा रही है. हो सकता है बीडीएम अन्य संगठनों के साथ मिलकर निकट भविष्य में विभिन्न प्रदेशों की राजधानियों से भी ऐसी अपील जारी करे. तो यह है वह अपील जिसे आयोजकों की ओर से 7 किताबों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण दस्तावेज बताया गया.
‘इंडिया’ के समक्ष हमारी अपील और प्रस्ताव !
एक ऐसे समय में जबकि भाजपा नीत सरकार जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में हिन्दू राष्ट्र के नाम पर हजारों वर्ष पूर्व की भांति हिन्दू धर्म का प्राणाधार वर्ण-व्यवस्था के तहत देश को परिचालित करने व बाबा साहेब का संविधान बदलने की परिकल्पना कर रही हैं; हजारों वर्ष से सामाजिक अन्याय का शिकार रहे तबकों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए हमारे महान राष्ट्र निर्माताओं ने आरक्षण का जो प्रावधान किया उस आरक्षण के खात्मे के लिए सरकारी संस्थानों को अंधाधुन बेच एवं संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ रही है; संघ के लक्ष्यों को पूरा करने लिए जुनून के साथ नफरत का सैलाब बहाकर देश की एकता और अखंडता को छिन्न-भिन्न कर रही है: स्वाधीन भारत के ऐसे भयावह दौर में इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) का वजूद में आना हम नई सदी की सबसे सुखद घटनाओं में एक मानते हैं और विश्वास करते हैं इससे हमारा लोकतंत्र सबकी भागीदारी वाला लोकतंत्र बनेगा तथा सामाजिक अन्याय – मुक्त व समतापूर्ण वह भारत आकार लेगा, जिसका सपना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने देखा था. ऐसे में हम दलित, आदिवासी, पिछड़ों एवं इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यकों तथा आधी आबादी की आशा और आकांक्षा का प्रतीक बन चुके इंडिया के लिए अपना सर्वस्व देने की घोषणा करते हैं. आज सामाजिक अन्याय तथा साप्रदायिक नफरत का सैलाब बहाने वाली भाजपा को सत्ता से हटाना इतिहास की सबसे बड़ी मांग है. इसे देखते हुए हम इंडिया के समक्ष कुछ विनम्र प्रस्ताव रख रहे हैं.
1 -हम सबसे पहले इंडिया में शामिल उन दलों के प्रति विशेष आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने कभी संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी नहीं किया एवं विपरीत हालातों में भी उसकी देश और बहुजन विरोधी नीतियों के खिलाफ अविराम संघर्ष चलाते रहे.
2 - भाजपा को हराने के लिए सबसे


