नई दिल्ली। किसी ने जीते जी अपनी मर्सिया नहीं सुनी होगी। लेकिन बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यह ‘सौभाग्य’ मुहैया करा दिया है। आशंका इसकी पूरी थी। लेकिन इतनी जल्दी होगी। इसका अंदाजा नहीं था। और वह भी अटल के जिंदा रहते और उनके सिपहसालारों और हमराहों के सामने होगा। इसकी भी संभावना कम थी। लेकिन बीते बुधवार को जिस तरह से राज्यसभा के भीतर नये नवेले भाजपाई सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने देश के पूर्व सुरक्षा सलाहकार स्व. बृजेश मिश्र पर निशाना साधा। यह उसी तरफ इशारा करता है।

स्वामी ने कहा कि अगस्ता हेलीकाप्टर के मानकों में तब्दीली के पीछे बृजेश मिश्र का नाम लिया जा रहा है। उसी बृजेश को यूपीए ने देश के दूसरे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा था। उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा कि आखिर बृजेश ने देश के लिए ऐसा क्या किया था, जिसके लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया। यूपीए और बृजेश के बीच के इस रिश्ते के राज का वह जल्द ही खुलासा करेंगे।

बृजेश मिश्र के बहाने इसे अटल पर हमला माना जा रहा है। (वैसे भी इस देश में आमतौर पर किसी मृत व्यक्ति के बारे में गैरजरूरी और अपमानजनक टिप्पणी करने से कोई भी बचता है। लेकिन बौने संस्कार वाले बीजेपी नेताओं से इससे ज्यादा उम्मीद की भी नहीं जा सकती है।)

दरअसल अटल और सुब्रमण्यम स्वामी के बीच बिल्कुल नहीं पटती थी। यही वजह है कि अटल के सक्रिय रहते स्वामी बीजेपी के भीतर प्रवेश नहीं पा सके। दोनों के बीच यह अदावत बहुत पुरानी है। लेकिन लगता है अब पीएम मोदी को भी स्वामी के जरिये अटल से अपने पुराने अपमानों का बदला लेने का मौका मिल गया है।

स्वामी के इस बयान पर किसी बीजेपी नेता का एतराज न होना भी बेहद रोचक है। गुजरात दंगों के दौरान अटल ने मोदी को राजधर्म के पालन की नसीहत दी थी। और वह अपमान मोदी जी लगता है अभी तक नहीं भूल पाए हैं। नहीं तो उस सुब्रमण्यम स्वामी को जिसने कभी जयललिता और सोनिया के साथ मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराई हो, पार्टी के भीतर लाने का कोई तुक नहीं बनता है।

हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि मोदी जी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने में गांधी परिवार की राजनीतिक बलि प्राथमिक शर्त बन गई है। इस काम में स्वामी से बेहतर हथियार और क्या हो सकता है। वह नेशनल हेरल्ड का मामला हो या कि मौजूदा अगस्ता वेस्टलैंड का घोटाला दोनों में स्वामी ने अपनी उपयोगिता साबित कर दी है। राज्य सभा के भीतर सत्ता पक्ष कमजोर पड़ रहा था ऐसे में स्वामी की मौजूदगी उसे एक नई ताकत देगी। अनायास ही नहीं सदन में कांग्रेस की पूरी ऊर्जा सरकार पर हमले की जगह स्वामी को चुप कराने में लग रही है।

स्वामी बीजेपी के लिए अभी जितने फायदेमंद दिख रहे हैं भविष्य में उतने ही घाटे का सौदा भी साबित हो सकते हैं। क्योंकि स्वामी को एक ऐसी मिसाइल के तौर पर देखा जाता है जो अपनों और परायों के बीच भेद नहीं कर पाती है। इसके चलते मोदी साहब को किसी दिन बड़ा नुकसान न उठाना पड़ जाए। एक घाटा तो बिल्कुल सामने दिख रहा है।

राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली जी हैं। लेकिन स्वामी जी शायद ही उन्हें अपना नेता मानने के लिए तैयार हों। ऐसे में एक म्यान के भीतर दो तलवारें कैसे और कब तक रहेंगी कह पाना मुश्किल है। दोनों के बीच शीत युद्ध का यह रिश्ता किसी भी समय विस्फोटक रूप ले सकता है।

दरअसल अभी तक माना जा रहा था कि दिल्ली की सत्ता को मोदी-शाह-जेटली की तिकड़ी चला रही थी। लेकिन लुटियन जोन में स्वामी का प्रवेश एक नया कोण बनाता दिख रहा है। मोदी साहब के लिए किसी भी नेता को नियंत्रित करना आसान है। लेकिन हार्वर्डियन स्वामी एक टेढ़ी खीर का नाम है। उसे पचा पाना बहुत मुश्किल है। ऐसे में मोदी साहब के गले का ये हार कब फांस में तब्दील हो जाए कहना कठिन है।

महेंद्र मिश्रा