अरुण माहेश्वरी

तोगड़िया आज आरएसएस के बड़े तबके की सामान्य मनोदशा के प्रतीक है

आरएसएस के सबसे चहेते और ज़हरीले नेता प्रवीण तोगड़िया दो दिन पहले जब टीवी पर रो रहे थे, वह एक अजब सा कारुणिक दृष्य था। कह रहे थे, मोदी उनका एनकाउंटर करवा देंगे !

यह मनोदशा अकेले तोगड़िया की नहीं, गहराई से देखेंगे तो पायेंगे कि आरएसएस का आज का समूचा नेतृत्व कमोबेश इसी अवस्था में है। सब अपने को एक प्रकार के अस्तित्व के संकट में फँसा हुआ पाते हैं। मोदी-शाह ने उन पर इतनी कृपा जरूर की है कि उनके जो लोग समझौता एक्सप्रेस या मालेगांव बम विस्फोट में पकड़े गये थे, उनको जेल से निकलवा दिया है। उनके कुछ खास मंदबुद्धि लोगों को ही राज्यपाल आदि की तरह के महत्वहीन ऊंचे पद भी दे दिये हैं। लेकिन बदले में मोदी-शाह जुगल जोड़ी ने अपने को पूरी तरह से निरंकुश कर लिया है। बाकी किसी की कोई हैसियत नहीं है। तोगड़िया अपने इसी बौनेपन के गहरे अहसास से रो रहे थे।

अभी आरएसएस के लोग खुद को भुलाए रखने के लिये खुद ही राजनीति में अपने कर्तृत्व की झूठी कहानियाँ गढ़ कर सबके सामने रटते रहते हैं। गुजरात के पिछले चुनाव के बारे में किसी भी आरएसएस के प्रचारक टाइप व्यक्ति से बात कीजिए, वह आपको पूरे विस्तार से बतायेगा कि कैसे वहाँ मोदी तो चुनाव हार चुके थे। वह तो आख़िरी वक्त में आरएसएस के सारे कार्यकर्ता वहाँ पहुंच गये, घर-घर घूम कर प्रचार की रास अपने हाथ लीं, तब किसी प्रकार नैया पार लग पाई है।

इसी प्रकार ये अभी से मध्य प्रदेश और राजस्थान में संघ के लोगों के उतर पड़ने और अपना जाल बिछाने की कहानियाँ भी गढ़ कर पूरे विस्तार से बताया करते हैं। वे सभी मोदी-शाह के कटु आलोचक होते हैं और बताते हैं कि संघ के बूते वे बने हुए हैं, वर्ना कब के उखाड़ दिये गये होते।

तोगड़िया का अस्तित्वीय भय आज संघ के तमाम लाठियाँ चलाने वाले और मुस्लिम-विद्वेष का जहर फैलाने में उस्ताद सभी मंद-बुद्धि संघ वालों का डर है। निस्सन्देह वे अभी सत्ता के भौतिक सुखों के नशे में भी डूबे हुए हैं।

थोड़ा सा हिटलर के उदय के इतिहास को देख लीजिए। उसने अपने सबसे उग्र समर्थकों का ही सबसे पहले सफ़ाया किया था। अपने तूफ़ानी दस्ते के प्रमुख को ही जेल में सड़ाया था। जिन उद्योगपतियों ने उसकी मदद की उनमें से अधिकांश को या तो देश छोड़ कर भाग जाना पड़ा या मार दिया गया। विलियम शिरर की राइज़ एंड फ़ाल आफ थर्ड राइख में यह पूरा इतिहास दर्ज है।

आरएसएस के लोग हिटलरी शासन के पूजक रहे हैं। इसीलिये उन्हें ऐसी तमाम विडंबनाओं के लिये तैयार रहना होगा। इनके बिना हिटलर का उदय नहीं होता है।

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