दरअसल संघी विचाधारा ही पश्चिमी है, सारा इतिहास इसका प्रमाण है
दरअसल संघी विचाधारा ही पश्चिमी है, सारा इतिहास इसका प्रमाण है
आरएसएस की विचारधारा का भारतीय दार्शनिक धाराओं से कोई संबंध नहीं है, बल्कि वह इसके ठीक उलट है.
यूरोप और वामपंथ के रिश्ते की बहस कब की, लोहिया जी के ज़माने में ही ख़त्म हो गयी, लेकिन कुछ लोग उसे अब भी ढो रहे हैं.
भौतिकवादी दर्शन हमारी परंपरा में बहुत है और उसका प्रभाव तमाम नास्तिक दर्शनों और बौद्धजैनश्रमण परम्पराओं में अत्यधिक है. पश्चिम में भी मार्क्स के बहुत बाद तक वामपंथ हाशिये पर रहा-वहाँ चर्च और भारत में ब्राह्मणवाद के कारण.
दरअसल संघी विचाधारा ही पश्चिमी है, सारा इतिहास इसका प्रमाण है. उनकी ड्रेस तक फाशियों से ली गयी है. आरएसएस की विचारधारा का भारतीय दार्शनिक धाराओं से कोई संबंध नहीं है, बल्कि वह इसके ठीक उलट है. क्या तमाम वैष्णव संतों या शंकरदेव, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, महर्षि रमण,नारायण गुरु, बंगाल के पुनर्जागरण के चिंतकों से संघ गिरोह का कभी कोई वैचारिक या भावनात्मक रिश्ता रहा? और यह सिर्फ संयोग नहीं कि हमारे देश में संघी विचार तभी थोडा सा ताकतवर और सत्तासीन हो पाया जब अमीर और मध्यवर्ग पश्चिमी और अमेरिकी ग्लोबलोइज्ड रंग में रंग गया और अपनी अध्यात्म परम्पराओं से छिटक गया. इसका गहरा विश्लेषण करने की ज़रूरत है.
हिंदी के वरिष्ठ कवि और पत्रकार Mangalesh Dabral मंगलेश डबराल की फेसबुक टाइमलाइन से साभार


