दलित आन्दोलन को आर्थिक कष्टों के निवारण पर केन्द्रित करतीं फायर ब्रांड दो बहुजन कन्यायें !

एच.एल.दुसाध

गत 23 दिसंबर को माता सावित्रीबाई फुले महासभा की अध्यक्षा निर्देश सिंह के अनुरोध पर अमरोहा के जानकी रिसोर्ट (मीरा सराय) में आयोजित ‘समाज जगाओ संविधान बचाओ ’महासम्मेलन में शिरकत मेरे लिए एक विरल अनुभव रहा. सबसे विरल इस मायने में कि पहली बार भीम आर्मी के युवाओं को करीब से देखने को मिला. आयोजन की जिम्मेवारी नीला गमछाधारी इन्ही आर्मी वालों पर थी और सभा स्थल के चारो ओर आयोजन की निगरानी करते यही नजर आ रहे थे.

जानकी रिसोर्ट के शानदार लॉन पर आयोजित सभास्थल पर जब पंहुचा, श्रोता चार-पांच सौ की संख्या में पहुँच चुके और अतिथि अपना आसन ग्रहण कर लिए थे. रिसोर्ट का मुख्य गेट पार करते ही मेरे आगमन की एकाधिक बार घोषणा करते हुए हुए संचालकों ने भारी प्यार का इजहार किया. अभी मंच पर आसन ग्रहण किया ही था कि दीदी निर्देश सिंह संघर्ष करो-हम तुम्हारे साथ हैं का शोर सुनाई पड़ने लगा. अनुमान लगाया शायद मुख्य अतिथि निर्देश सिंह आ रही है. आवाज की ओर नजर उठाकर देखा निर्देश 15-20 नौजवानों के साथ सधे कदमों से चली आ रही हैं. 20-25 साल के ये नौजवान भीम आर्मी का प्रतीक बन चुके नीला गमछा अपने गले में लपेटे हुए थे. वे आसमान में मुठ्ठियाँ उछालकर जय-जय-जय, जय- भीम के नारे लगाते हुए निर्देश को मंच के करीब ले आये. उनका उत्साह देखते ही बन रहा था. मंच के करीब पहुच कर एक कुशल नेता की भांति आत्मविश्वास से युवाओं को कुछ निर्देश देते हुए वह अपनी जगह पर आकर बैठ गयीं.

उनके आसन ग्रहण करने के बाद रूटीन औपचारिकतायें पूरी होते ही विषय पर चर्चा शुरू हो गयी. चर्चा शुरू हो इसके पहले कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शेर सिंह बौद्ध साहब ने साफ़ हिदायत दे दिया कि वक्ताओं को विषयांतर किये बिना संविधान कैसे बंचाया जाय इस पर अपनी राय रखनी है.शुरुआती वक्ता भीम आर्मी से जुड़े युवा ही थे. उनके संबोधन में दलितों पर हो रहे अन्याय-अत्याचार के खिलाफ आग तो थी, पर विषय पर पकड़ कमजोर थी, लिहाजा वे विषयांतर करते रहे. यह सिलसिला टूटा विशिष्ट अतिथि अरुण कुमार बौद्ध के संबोधन से. उन्होंने संविधान बचाने पर कुछ बुनियादी सवाल उठाते हुए निष्कर्ष दिया कि संविधान को अगर बचाना है तो बहुजनों को हाथ में लेना होगा सत्ता और सत्ता हाथ में लेने के लिए इस्तेमाल करना होगा बाबा साहेब द्वारा दिए गए वोट के अधिकार का.

अरुण जी के बाद बारी आई निर्देश सिंह की और उन्होंने भी विषयांतर तो किया पर, समा बाँध दिया.

मैं निर्देश सिंह से जो सुनने की उम्मीद लेकर आया था वह पूरी हुई. दरअसल पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और लोगों की जुबानी खबरें मिल रही थीं कि मुरादाबाद और उसके निकटवर्ती इलाकों में निर्देश सिंह जोर-शोर से तमाम क्षेत्रों में बहुजनों की संख्यानुपात में भागीदारी की मांग उठाकर बहुजनों को उद्वेलित कर रही हैं. यह पढ़-सुनकर ही उनके अनुरोध पर उस सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचा था. बहरहाल जैसा सुना था, वैसा ही उन्हें बोलते देखकर भारी सुखद अहसास हुआ. उन्होंने अपने संबोधन को मुख्यतः उद्योग-व्यापार सहित शक्ति के स्रोतों में बहुजनों की न्यूनतम भागीदारी पर केन्द्रित रखा. लगभग आधे घंटे के अपने संबोधन में सवाल उठाया छोटे-छोटे कस्बों की छोटी-बड़ी दुकानों से लेकर बड़े –बड़े शहरों में जो शॉपिंग माल्स हैं, उनमें दलित कहाँ हैं? कितने लोग हमारे सप्लायर, ठेकेदार डीलर हैं? मंदिरों पर कब्ज़ा शासक जातियों का है, न्यायपालिका पर भी उन्हीं का कब्ज़ा है. जहां तक राजनीति का सवाल है सांसद-विधायक तो हमारे हैं, पर मंत्रीमंडल और ब्यूरोक्रेसी में हम कहा हैं? कहीं नहीं! आज अपर कास्ट का धन-दौलत पर 90 प्रतिशत से कब्ज़ा है और दलित समाज 1 प्रतिशत से भी कम धन-दौलत पर जिंदगी जीने के लिए मजबूर है. आजादी के इतने साल बाद भी बहुजन समाज गुलामों जैसी स्थिति में दिख रहा है. इस स्थिति से समाज को उबारने का एक ही उपाय है, सर्व-व्यापी आरक्षण की लड़ाई: सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी प्रकार की नौकरियों से लेकर ठेकेदारी, सप्लाई, डीलरशिप, पार्किंग-परिवहन इत्यादि सभी क्षेत्रों बहुजनों को संख्या के अनुपात में आरक्षण! और मैंने अब से यही लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया है. जीवन की आखरी सांस तक मैं सर्व-व्यापी आरक्षण की लड़ाई लडती रहूँगी.’

उनके इस संकल्प ने उपस्थित स्रोतों को उत्साह से भर दिया. व्यक्तिगत तौर पर मैं कहूं तो जीवन की आखरी साँस तक सर्वव्यापी आरक्षण की लड़ाई लड़ने के निर्देश सिंह के फैसले से सर्वाधिक रोमांचित मैं हुआ. अगर वह अपने इस फैसले पर कायम रहती हैं, जिसकी सम्भावना उनके बॉडी लंगुएज में दिखी, तो निश्चय ही बहुजन आन्दोलन ब्राह्मणवाद विरोध और नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर उद्योग-व्यापर, ठेकों, फिल्म-मीडिया इत्यादि सहित सर्व-व्यापी आरक्षण के व्यापक एजेंडे पर खड़ा हो सकता है.

मेरे नज़रों में इस समय हिंदी पट्टी में तीन फायर ब्रांड बहुजन-कन्यायें’ हैं जो पुरुषों को पीछे छोड़ते हुए बहुजन आन्दोलन में नयी जान फूंक रही हैं. वे हैं विद्या गौतम, डॉ.इंदु चौधरी और निर्देश सिंह. इनमें डॉ. इंदु चौधरी का आन्दोलन जहां बाबा साहेब के संघर्षों से बहुजनों को अवगत कराने और बहुजन सत्ता पर केन्द्रित हैं, वहीं विद्या गौतम देश की हर ईंट में संख्यानुपात में भागीदारी की अनवरत लड़ाई लड़ते हुए बहुजनों की आर्थिक मुक्ति की लड़ाई को नयी उंचाई दे रही हैं. उनके प्रयासों से उत्तराखंड में ठेकों, सप्लाई, डीलरशिप में भागीदारी की मार्ग प्रशस्त हुआ है. इससे भारी संख्या में युवा उनके साथ जुड़ रहे हैं. इसी युवा-शक्ति के भरोसे उन्होंने पिछले अगस्त में चालीस दिनों से अधिक दिनों तक भूख हड़ताल किया, जिसमें कई जनपदों के चार हजार से अधिक लोगों ने लगातार उनके साथ भूख हड़ताल किया. निर्देश सिंह में भी विद्या गौतम वाला तेवर है. उनके साथ भी मुरादाबाद और उसके निकटवर्ती जिलों के भीम आर्मी वाले तेवर के हजारों युवा जुड़ गए हैं, जिनके उत्साह और समर्पण का नजारा मैंने 23 दिसंबर को अमरोहा में देखा.

निर्देश सिंह लगातार लोगों से संवाद कर रही हैं. कोई भी घटना हो वह पहुंचकर लोगों के दुःख दर्द में शामिल होती हैं, पर बात मुख्यतः सर्व व्यापी आरक्षण की करती हैं. यही कारण है युवाओं में उनको लेकर जूनून बढ़ता जा है. इससे उनका आत्म-विश्वास भी बढ़ता जा रहा है. यही कारण है, पिछले 15 मार्च को मैंने लखनऊ में आयोजित ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ के स्थापना दिवस में जिस निर्देश को देखा, उन्हें जब 23 दिसंबर को देखा तो सुखद विस्मय हुआ. इन विगत महीनों में उनके बॉडी लैंगुएज में गजब का आत्म-विश्वास आया है. कहा जा सकता है अब उनके अंदर की गिफ्टेड नेतृत्व क्षमता उभर कर सामने आने लगी है. ऐसे में उन्होंने जीवन के अंतिम बूंद तक सर्व-व्यापी आरक्षण की लड़ाई लड़ने का जो संकल्प लिया है, उस पर यदि कायम रहती हैं तो बहुजन मूवमेंट में एक और विद्या गौतम का उभार अवधारित है. इससे निश्चय ही बहुजन मूवमेंट की शक्ल बदलेगी और यह मूवमेंट आर्थिक कष्टों के निवारण पर केन्द्रित हो जायेगा, जिसकी हिदायत बाबा साहेब 12-13 फ़रवरी,1938 को मनमाड के ऐतिहासिक सम्मलेन में दी थी.

स्मरण रहे मनमाड, नासिक के जिस सम्मेलन में बाबा साहेब ने ‘ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद’ को दो सबसे बड़ा शत्रु करार दिया था, उस सम्मेलन में उन्होंने इस बात के लिए अपार ख़ुशी जाहिर किया था कि दलित अब आर्थिक कष्टों के निवारण पर अपने आन्दोलन को केन्द्रित करने जा रहे हैं. उन्होंने उसमें दलित रेलवे कर्मचारियों की भारी संख्या देखते हुए कहा था, ’मुझे ख़ुशी है कि आज आप अछूत के रूप में नहीं, कर्मचारी वर्ग के रूप में उपस्थित होकर इस बात को बताया है कि आप अपने आर्थिक कष्टों के निवारण के प्रति गंभीर हुए हो. इसके पहले जब अछूत के रूप में सभा करते थे तो उसका मकसद सामाजिक कष्टों का निवारण होता था. हालाँकि ऐसा नहीं कि आप सामाजिक कष्टों के निवारण पर अपने आन्दोलन को केन्द्रित कर गलत दिशा में थे. लेकिन अब जरूरत आर्थिक कष्टों के निवारण की दिशा में आगे बढ़ने की है. इसलिए आपके इस सम्मेलन को एक नया प्रस्थान बिंदु कहूँगा’.

भारी अफ़सोस की बात है कि बाबा साहेब द्वारा 1938 में दलित आन्दोलन को आर्थिक कष्टों पर निवारण की हिदायत देने के बावजूद इस मोर्चे पर अपेक्षित प्रगति न हो सकी. आज भी दलित आन्दोलन आर्थिक मुद्दों पर आश्चर्यजनक रूप से उदासीन है.इसलिए आज भी दलितों के आर्थिक कष्टों के निवारण पर कोई खास चर्चा नहीं होती. जबकि संविधान सौंपने के एक दिन पूर्व बाबा साहेब ने 25 नवम्बर,1949 को आर्थिक और सामाजिक विषमता,जोकि मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या है, को जल्द से जल्द ख़त्म करने की हिदायत देकर इस समस्या को और गंभीरता से लेने का संकेत कर दिया था. किन्तु देश के शासकों ने इस सबसे बड़ी समस्या के खात्मे में कोई रूचि नहीं ली, खुद आंबेडकर लोग भी इसकी अनदेखी करते गए.आज जबकि मोदी सरकार की नीतियों के कारण आर्थिक विषमता की समस्या विस्फोटक बिंदु पर पहुँच चुकी है तथा आरक्षित वर्ग,विशेषकर दलित अथिक रूप से विशुद्ध गुलाम में परिणत होने जा रहे हैं, दलित संगठन अब भी अपना सारा जोर मुख्यतः बहुजनों को ईश्वरवाद से विमुख करने व उन्हें शासक वर्ग में तब्दील करने में सारी उर्जा लगा रहे हैं: दलितों के आर्थिक कष्टों के निवारण की चर्चा सबसे नीचले पायदान पर रखते हैं. ऐसे दुर्दिन में यदि विद्या गौतम के साथ कदमताल करते हुए निर्देश सिंह भी बाकी बातों को कुछ समय के लिए स्थगित कर सर्वव्यापी आरक्षण के मुद्दों पर अपनी लड़ाई को केन्द्रित करती हैं, बाबा साहेब का मुद्दों को दलितों के आर्थिक कष्टों पर निवारण पर केन्द्रित करने का सपना अंततः हिंदी पट्टी में जरुर बड़ा आकार ले लेगा.

(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)

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