दलित होने के नाम पर देश को ब्लैकमेल करना बंद करें। बहुत हो गया।
दलित होने के नाम पर देश को ब्लैकमेल करना बंद करें। बहुत हो गया।
दयानन्द पाण्डेय
कुछ लोग हैं जो नाथूराम गोडसे को भूल नहीं पाते कि वह गांधी का हत्यारा था। मैं भी नहीं भूल पाता हूं। गांधी के उस हत्यारे के प्रति मेरे मन भी गुस्सा फूटता है। इस लिए यह भूलने वाली बात है भी नहीं। लेकिन मैं यह भी नहीं भूल पाता हूं कि जीते जी अपनी मूर्तियां लगवा लेने वाली मायावती गांधी को शैतान की औलाद कहती हैं। यह कह कर अराजकता फैलाती हैं। नफ़रत के तीर चलाती हैं। इन के आका कांशीराम की राजनीतिक पहचान ही इसी अराजकता के चलते हुई जब वह गांधी को शैतान की औलाद कहते हुए दिल्ली में गांधी समाधि पर जूते पहन कर भीड़ ले कर वहां पहुंचे। वहां तोड़-फोड़ की। गांधी समाधि की पवित्रता को नष्ट किया। उस गांधी समाधि पर जहां दुनिया भर के लोग आ कर शीश नवाते हैं। श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं।
लोग यह क्यों भूल जाते हैं ? यह कौन मौकापरस्त लोग हैं ?
ऐसे हिप्पोक्रेटों की शिनाख्त कर इन की सख्त आलोचना क्या नहीं की जानी चाहिए ?
ठीक है आप गांधी से असहमत हो सकते हैं, पूरी तरह रहिए, कोई हर्ज़ नहीं है। लेकिन किसी पूजनीय महापुरुष को आप शैतान की औलाद क़रार दें और उस की समाधि पर जूते पहन कर भारी भीड़ ले कर जाएं और वहां तोड़-फोड़ करें, पवित्र समाधि को अपमानित करें, अपवित्र करें। और आप चाहते हैं कि लोग आप के इस कुकृत्य को भूल भी जाएं ? इस लिए कि आप दलित हैं ?
मुश्किल यह है कि हमारे तमाम हिप्पोक्रेट मित्र इस अराजक घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते।
यह सब याद दिलाते ही उन्हें बुखार हो जाता है। वह दवा खा कर चादर ओढ़ कर सो जाते हैं।
यह वही राजनीतिक संस्कृति है जो तिलक तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार बकती हुई कालांतर में किसी मूर्ख के अपशब्द के प्रतिवाद में उस की बेटी बहन को पेश करने की खुले आम नारेबाजी में तब्दील हो जाती है। क्यों कि लोग दलित एक्ट और दलित फोबिया के बूटों तले दबे हुए हैं। और हिप्पोक्रेट्स चादर ओढ़ कर, कान में तेल डाल कर सो जाना अपने लिए सुविधाजनक पाते हैं।
ज़रुरत इसी मानसिकता और हिप्पोक्रेटों को कंडम करने की है। अभी से।
क्यों कि गांधी को शैतान की औलाद कहना भी अपराध ही है।
आप दलित हैं तो आप को किसी को कुछ भी कहने का अधिकार किस संविधान ने दे दिया ? गांधी को शैतान की औलाद कहना , किसी की बेटी बहन को पेश करने का नारा लगाना अपराध है।
गोडसे हत्यारा है गांधी का लेकिन मायावती भी गांधी की चरित्र हत्या की दोषी हैं।
राजनीति में गाली गलौज की दोषी हैं। मायावती और उन की बसपा को यह तथ्य भी ज़रुर जान लेना चाहिए कि भारत सिर्फ़ दलितों का देश नहीं है। दलित होने के नाम पर वह देश को ब्लैकमेल करना बंद करें। बहुत हो गया।
दयानन्द पाण्डेय की फेसबुक टाइमलाइन से साभार


