दिल्ली विधानसभा चुनाव- फिलहाल मोदी विरोधी बहुजन चाहें तो ‘आप’को जीत की अग्रिम बधाई दे दें पर, उसकी जीत पर जश्न मनाते समय संयम जरूर बरतें।
किसी क्रिकेट मैच की भांति रोमांचक बन चुका दिल्ली विधानसभा चुनाव का चुनावी मैच अंतिम दौर में पहुँच चुका है। इस मैच में सामाजिक न्याय के नायक/ नायिकाओं की अदूरदर्शिता के कारण बहुजनवादियों की स्थिति बेगाने शादी में अब्दुल्ला दीवाना जैसी हो गयी है। कारण, सामाजिक न्यायवादी दल चुनावी मुकाबले में दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं और पूरी लड़ाई भाजपा, कांग्रेस और कल की भूमिष्ठ आप जैसे सवर्णवादी दलों के बीच सिमट कर रह गयी है, जिसमें दलित-पिछड़े समाज के जागरूक लोग निरा दर्शक बनकर रह गए हैं। बहरहाल एकाधिक कारणों से दिल्ली विधानसभा का मौजूदा चुनाव राष्ट्रीय महत्व के चुनाव का दर्जा पा लिया है किन्तु इसमें उठाये जा रहे मुद्दे निहायत ही सामान्य, जिनसे राष्ट्र को कोई दिशा मिलने की रत्ती भर भी सम्भावना नहीं । तीनों ही दल बिजली के दाम आधा करने, मुफ्त पानी और सीवर मुहैया करने के साथ कच्ची कालोनियों को नियमित करने जैसे वादे करने में एक दूसरे से होड़ लगा रहे हैं। मतलब साफ़ है राष्ट्रीय महत्व के इस चुनाव में अतीत की भांति फिर एक बार राहत और भीखनुमा घोषणाओं के सहारे चुनाव जीतने की होड़ लगी है। इन दलों द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों को देखकर जरा भी नहीं लगता कि महिला सशक्तिकरण के मोर्चे पर श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश जैसे पिछड़े राष्ट्रों से भी भारत का पिछड़ापन और सच्चर रिपोर्ट में उभरी मुस्लिम समुदाय की बदहाली इनके लिए कोई मुद्दा है। इनके लिए इस बात की भी कोई चिंता नहीं कि लोगों के विभिन्न तबकों के मध्य शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक) के अत्यंत असमान बंटवारे के कारण यहां आर्थिक और सामाजिक विषमता का भीषणतम साम्राज्य कायम हो चुका है, जिसके कारण प्रायः 200 जिले नक्सलवाद के चपेट में आ चुके हैं और विषमता से पीड़ित एक तबके के हित की लड़ाई लड़ते हुए एक संगठन ने बन्दूक के बल पर 2050 तक भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर कब्ज़ा ज़माने का एलान कर दिया है। अगर इन बातों की चिंता इन दलों को होती तो वे शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता के प्रतिबिम्बन कराने का वादा करने में होड़ लगाते लेकिन ऐसा कुछ दिल्ली विधानसभा चुनाव में नजर नहीं आ रहा है। लिहाजा लोकतंत्र प्रेमियों को यह मानकर चिंतित होना चाहिए कि दिल्ली विधानसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र के ध्वंस की दिशा में एक और कदम है।
बहरहाल 7 फरवरी को अनुष्ठित होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव से जुड़े ओपिनियन पोल 3 फरवरी को सामने आ चुके हैं। एक नहीं चार-चार चुनावी सर्वे की रिपोर्ट बता रही है कि एनजीओ वालों की पार्टी ‘आप’ को स्पष्ट बहुमत मिलने जा रहा है और अगर ऐसा होता है तो निश्चय ही यह चुनाव परिणाम इस लेखक लिए व्यक्तिगत रूप से कष्टकारी होगा, क्योंकि जनलोकपाल की आड़ में बहुजन राजनीति पर सुपर कंट्रोल स्थापित करने का षड्यंत्र करने के कारण मैं बहुजन नजरिये से केजरीवाल को भारतीय राजनीति का सबसे खतरनाक तत्व मानता हूँ। ऐसे व्यक्ति को दिल्ली के सीएम के रूप में देखना कितना मुझ जैसे व्यक्ति के लिए कष्टकारी हो सकता है, इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है।
ओपिनियन पोल सामने आने के बाद मेरी बहुजन समाज के कई जागरूक लोगों से बात हुई। मैंने पाया कि दलित-पिछड़े बहुजन समाज के अधिकांश लेखक-एक्टिविस्ट ही जन लोकपालवादी केजरीवाल का विरोधी होने के बावजूद दिल्ली विधानसभा चुनाव के पूर्वानुमान से बेहद खुश हैं। भारतीय लोकतंत्र के हित में सभी ही चाहते हैं कि केजरी के समान ही सब्जबाग दिखाने वाले नरेंद्र मोदी की पार्टी हार जाए। यदि केजरीवाल के असाधारण प्रयास से भाजपा की हार होती है तब तानाशाह के रूप में उभर रहे मोदी की अपराजेय बने रहने की छवि टूट सकती है। इसका सुखद परिणाम यह होगा कि भविष्य में उनके खिलाफ बनने जा रहा वंचित वर्गों का मोर्चा नए जोश के साथ वजूद में आयेगा और खुद मोदी बहुजन हितकारी नीतियां ग्रहण करने के लिए बाध्य होंगे। बहरहाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा का विजयरथ स्तब्ध होने की सुखद कल्पना से मोदी से त्रस्त लोगों को भले ही कुछ राहत मिल जाय किन्तु केजरीवाल जैसे कट्टर बहुजन विरोधी नेता के और ताकतवर होने की सम्भावना भी बढ़ जाएगी। इस प्रसंग में पाठकों का ध्यान 16 मई, 2014 की सुबह सोलहवीं लोकसभा का चुनाव परिणाम प्रसारित होने पूर्व फेसबुक पर’ आज जन्म लेगा भारतीय राजनीति का लाइलाज वायरस ‘शीर्षक से डाले गये निम्न पोस्ट की ओर आकर्षित करना चाहूँगा, जो मेरी पुस्तक ‘लोकसभा चुनाव-2014:भारतीय लोकतंत्र की ध्वंस की दिशा में एक और कदम’ के पृष्ठ, 91-92 पर भी प्रकाशित हुआ है।
‘मित्रों! आज का दिन भारतीय राजनीति के लिए के लिए एक खास कारण से बेहद चिंताजनक होगा। आज भारतीय राजनीति में एक ऐसा वायरस विकसित होगा जो बहुजनों के लिए लाइलाज बन जायेगा। ना! ना! यदि आप समझ रहे हैं कि मैं मोदी की बात कर रहा हूँ तो आप गलत हैं। हालाँकि विविधता के सबसे बड़े शत्रु मोदी भी एक वायरस हैं। जब तक हिन्दू हीन-मानसिकता से और दुनिया तालिबानियों से मुक्त नहीं हो जाती है, संघ के लोग सवर्ण-समाज के हित में छोटे-बड़े मोदियों को जन्म देते रहेंगे। लेकिन जिस तरह भारतीय राजनीति दो सबसे बड़े सवर्णवादी दलों, कांग्रेस और भाजपा के लिए म्यूजिकल चेयर बनकर रह गयी है, उसमें कोटि-कोटि खर्चे करके कभी मोदी, तो कभी प्रियंका गाँधी जैसे चमत्कारिक शख्सियतों को जन्म देकर सवर्णवादी भारतीय लोकतंत्र के ध्वंस का सामान स्तुपिकृत करते रहेंगे पर, जिस दिन हमारी बहुजनवादी पार्टियाँ सवर्णपरस्ती छोड़कर मुक्त गले से शक्ति के तमाम स्रोतों (आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक-सांस्कृतिक) में डाइवर्सिटी अर्थात ‘जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागीदारी’ लागू करने का नारा बुलंद कर देंगी, उस दिन बहुजन भारत मोदी और प्रियंका इत्यादि जैसे मीडिया निर्मित चमत्कारी वायरस से मुक्त हो जायेगा।
लेकिन जो वायरस आज जन्म लेगा वह शायद लाइलाज होगा। हाँ मैं बात एनजीओ गैंग द्वारा परिचालित राजनीतिक संगठन की कर रहा हूँ। आज यह संगठन ‘राष्ट्रीय राजनीतिक दल’ का चेहरा धारण करने जा रहा है। यही है वह सबसे डेंजरस सवर्णवादी दल है जिसके पीछे सवर्णों के मीडिया, बौद्धिक, कारपोरेट, एनजीओ, फिल्म, शैक्षणिक इत्यादि तमाम क्षेत्र के बेहतरीन टैलेंट तन-मन-धन से लामबंद हैं। खासकर वह युवा मध्यम वर्ग, जिसने 2011 में भ्रष्टाचार तथा 2012 में दिल्ली गैंग रेप के खिलाफ अपनी जोरदार गतिविधियों से राष्ट्र को हिलाकर रख दिया था, इसके पीछे सबसे बड़ा न्यूक्लियर बनेगा। यह वायरस धीरे-धीरे भारतीय राजनीति का ट्रेडिशनल चरित्र बदल देगा जिसके कारण बाबा आदम के युग में जी रहे बहुजनवादी दल अपंगता के शिकार बन सकते हैं। तो मोदी नहीं, नए वायरस का मुकाबला करने के लिए तैयार रहे। मेरी शुभकामना है कि कुदरत नए वायरस का मुकाबला करने की तरकीब आपको सुझाये। वैसे मेरा मानना है यह एकमात्र डाइवर्सिटी है जिसका दामन थामकर भारतीय राजनीति में उभरे नए-पुराने तमाम वायरसों को निष्क्रिय किया जा सकता है। यद्यपि सोलहवीं लोकसभा चुनाव में ‘आप’ राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं हासिल कर पाई। बावजूद इसके उसने 2। 1 प्रतिशत वोट हासिल कर तृणमूल कांग्रेस, एआईडीएमके, बीजद जैसे ढेरों सीटें जीतने वाले दलों के मुकाबले भारतीय राजनीति में ज्यादा प्रभावी होने का संकेत दे दिया था। कारण भाजपा, कांग्रेस और बसपा जैसे प्रमुख राष्ट्रीय दलों के बाद ‘आप’ ऐसी पार्टी है, जिसका जनाधार पूरे भारत में है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद बहुजन राजनीति के लिए के समक्ष ‘आप’ का एक नयी चुनौती के रूप में उभरना तय सा दिख रहा है। फिलहाल मोदी विरोधी बहुजन चाहें तो ‘आप’को जीत की अग्रिम बधाई दे दें पर, उसकी जीत पर जश्न मनाते समय संयम जरूर बरतें।
एच. एल. दुसाध
एच. एल. दुसाध, लेखक प्रख्यात बहुजन चिंतक व बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।