दिल्ली हो या श्रीनगर, चप्पे-चप्पे में तुम्हारी यादें हमारे साथ रहेंगी शुजात
दिल्ली हो या श्रीनगर, चप्पे-चप्पे में तुम्हारी यादें हमारे साथ रहेंगी शुजात
देश के जाने-माने पत्रकार और जम्मू कश्मीर के लोकप्रिय़ अखबार 'राइजिंग कश्मीर' के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की नृशंस हत्या की खबर सुनकर बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था। कुछ देर पहले जब यह खौफनाक सूचना मुझे मिली, कुछ देर के लिए लगा मानो पता नहीं मैं किस अंधेरी अतल गहराई में गिरता जा रहा हूं, जहां सिर्फ शून्यता ही शून्यता है! खबर पर यकीन करने में कुछ वक्त लगा।
style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268″
data-ad-slot="8763864077″>
शुजात मेरे लिए सिर्फ एक पत्रकार-संपादक नहीं, वह एक प्यारा दोस्त भी था। जहां तक याद आ रहा है, पहली बार हम लोग सन् 1997 या 98 के अगस्त-सितम्बर महीने में श्रीनगर में मिले थे। तब शुजात कश्मीर टाइम्स के श्रीनगर ब्यूरो में संवाददाता थे। बाद में वह 'द हिन्दू' के साथ जुड़े और कुछ बर्ष बाद फिर अपना अखबार 'राइजिंग कश्मीर' लेकर आये। बहुत कम समय मे ही उनका अखबार सरहदी सूबे का प्रमुख अखबार बन गया।
शुजात प्रतिभाशाली संपादक-पत्रकार के अलावा बेहद जहीन इंसान था।
वह न जाने कितने लोगों का दोस्त था। और हर दोस्त उसे अजीज समझता था। सचमुच हरदिल-अजीज! पता नहीं, किसने और क्यों उससे दुश्मनी पाली थी!
शुजात के इस तरह के जाने के बाद अब मैं कह सकता हूं कि जम्मू कश्मीर में आज अनेक जगहें फिर से बेहद खौफनाक हो गई हैं। शायद, मिलिटेंसी के सबसे काले दिनों से भी ज्यादा! पर वहां पत्रकारों पर लंबे समय से कभी जानलेवा हमले नहीं हुए थे। पर आज गुरुवार की मनसूस शाम शुजात बुखारी जैसी मशहूर शख्सियत को खत्म कर दिया गया।
मिलिटेंसी के शुरुआती दिनों में (सन् 1993में) श्रीनगर स्थित बीबीसी के दफ्तर में लेटर-बम के विस्फोट के जरिये मुश्ताक अहमद नामक एक प्रतिभाशाली फोटो पत्रकार की जान ली गई थी। वरिष्ठ पत्रकार युसूफ जमील बुरी तरह घायल हो गये थे।
इस बार शुजात को मार डाला गया, उसकी आफिस के बिल्कुल पास! क्या घाटी में शुजात या उनकी तरह के लोगों के विचार को कोई खत्म कर सकेगा? शुजात हम तुम्हें कभी नहीं भूल सकेंगे, दिल्ली हो या श्रीनगर, चप्पे-चप्पे में तुम्हारी यादें हमारे साथ रहेंगी।
श्रद्धांजलि दोस्त!


