दीमापुर की घटना-कहाँ घुस गया अब अफस्पा कानून ?
दीमापुर की घटना-कहाँ घुस गया अब अफस्पा कानून ?
दीमापुर की घटना ने यह साबित कर दिया है कि पुलिस, जेल कर्मियों व केन्द्रीय जेल की सुरक्षा हेतु लगे केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल सीआरपीएफ का चरित्र पूर्णतः सांप्रदायिक हो गया है। जिस तरह से 2000 से कम लोग एक सुनियोजित साजिश के तहत दीमापुर की केन्द्रीय जेल पर गए और वहां बलात्कार के आरोपी को जेल से निकाल कर सात किलोमीटर तक घसीटते हुए पीट-पीट कर मार डाला, उससे सवाल खड़े हुए हैं। केन्द्रीय व स्थानीय पुलिस व जेल कर्मी मूकदर्शक होकर तमाशाई बने देखते रहे।
मृतक सैयद शरीफुद्दीन खान के भाई जमालुद्दीन खान ने दावा किया है कि जिस महिला ने उनके भाई के खिलाफ रेप की एफआईआर दर्ज कराई थी, मेडिकल रिपोर्ट्स में उसके साथ ऐसी कोई भी घटना सामने नहीं आई थी। खान ने आरोप लगाया कि नागा संगठनों ने उनके भाई सैयद शरीफुद्दीन खान को फंसाने के लिए 'बलि का बकरा' बनाया। उन्होंने पुलिस को भी कठघरे में खड़ा किया और कहा कि वह घटना के वक्त हाथ पर हाथ धरे बैठे रही।
जमालुद्दीन खान ने एक निजी समाचार चैनल एनडीटीवी से कहा, 'क्या नागालैंड सरकार जंगलराज चला रही है? जिस लड़की ने एफआईआर दर्ज कराई वह मेरे भाई की पत्नी की रिश्तेदार थी। नागालैंड पुलिस यह कह चुकी है कि मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है।' वहीं रेप पीड़िता ने भी बयान दिया है कि पूरी घटना के बाद उसे शांत रहने के लिए रुपयों की पेशकश की गई।
दूसरी तरफ, जमालुद्दीन ने कहा कि मेरे परिवार से कई लोग सेना में हैं, वह उसे बांग्लादेशी कहकर कैसे मार सकते हैं?
जमालुद्दीन खान ने कहा कि वह और उनके एक और भाई, कमाल खान इस वक्त भारतीय सेना की असम रेजिमेंट में हैं। उनके एक और भाई, ईमामुद्दीन खान भी सेना में थे, और 1999 की करगिल लड़ाई में शहीद हो गए थे। उनके पिता, सैयद हुसैन खान, भारतीय वायु सेना से रिटायर हुए थे और मां अभी उनकी पेंशन ले रही हैं। जमालुद्दीन खान ने दावा किया कि उनका परिवार असम के करीमगंज जिले का रहने वाला है।
वहीं, इस पूरे मामले में कई सवाल एक साथ खड़े होते दिखाई दे रहे हैं। सवाल सैयद शरीफुद्दीन खान को आरोपी बनाए जाने को लेकर भी है कि आखिर किस मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उन्हें एक नागा महिला से रेप का आरोपी बनाया गया। पीड़िता कहां की रहने वाली है, इस बात को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं और किस आधार पर पुलिस ने शुरुआत में ही यह दावा किया कि सैयद शरीफुद्दीन खान अवैध रूप से रह रहा बांग्लादेशी है।
सैयद शरीफुद्दीन खान को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। दीमापुर के सेंट्रल जेल में रेप के आरोप में बंद शरीफुद्दीन को 2 हजार लोगों की गुस्साई भीड़ ने बाहर निकाला और कपड़े उतारकर परेड निकाली। भीड़ उन्हें दम तोड़ने तक मारती रही और उसके बाद क्लॉक टावर से उनकी लाश टांग दी।
इस घटना के बाद इन्टरनेट पर नागपुरी प्रचार तंत्र ने अपना अफवाह अभियान जारी किया और कहा जाने लगा यह बहुत अच्छा काम जनता ने किया है और इस भीड़ की प्रशंसा के गीत
गाये जाने लगे। कुछ लोगों ने बगैर जाने बूझे हिन्दू मुसलमान का रंग देने की कोशिश की। तरह-तरह के मैसेज नागपुर मुख्यालय की तरफ से जारी होने लगे, लेकिन जब एनडीटीवी की तरफ से मृतक के भाई जमालुद्दीन का साक्षात्कार प्रसारित हुआ तो गिरगिट की तरह से रंग बदलने का काम नागपुरी प्रचारतंत्र ने शुरू किया। असम में जब इस घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए तो नागालैंड सरकार चेती या दिखावटी प्रदर्शन करने के लिए 18 लोगों को गिरफ्तार किया है।
नागालैंड में एक तरह से भारतीय सेना का राज्य है क्योंकि नागालैंड में अफस्पा कानून लागू है जिसकी निगरानी केंद्र सरकार करती है। सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्रवाई में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। अफस्पा कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब वो क्षेत्र वहां की सरकार अशांत घोषित कर देती है। इसके लिए संविधान में प्रावधान किया गया है और अशांत क्षेत्र कानून यानी डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) मौजूद है जिसके अंतर्गत किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है। जिस क्षेत्र को अशांत घोषित कर दिया जाता है वहां पर ही अफस्पा कानून लगाया जाता है और इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं।
लेकिन सांप्रदायिक ताकतों के सत्तारूढ़ होने के बाद इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि अफस्पा कानून या भारतीय सेना का कोई मतलब नहीं रह गया है। साम्प्रदायिकता के सामने इनकी कानूनी ताकत समाप्त हो जाती है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण दीमापुर की घटना है।
रणधीर सिंह सुमन


