दुनिया के मजबूरों एक हो!!!
दुनिया के मजबूरों एक हो!!!
नई दिल्ली। आइए, आज की तीन दिलचस्प तस्वीरें देखिए। जब संसद मार्ग पर वाम दलों, जन संगठनों और एनजीओ की विशाल किसान रैली चल रही थी, उस वक्त दो सौ मीटर दूर आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच का तम्बू अलग से किसानों के हक़ में तना हुआ था जहां गोविंदाचार्य के साथ कृषि वैज्ञानिक देविंदर शर्मा (पहली तस्वीर) और राजगोपाल पी व्ही (दूसरी तस्वीर) बैठे पाए गए। देविन्दर शर्मा तो खैर "वैज्ञानिक" हैं इसलिए हो सकता है कि वे संघ को विज्ञान का पाठ पढ़ाने गए हों, लेकिन पीवी राजगोपाल वही शख्स हैं, जो पिछली बार 24 फरवरी को किसानों की रैली में देर शाम अपनी कथित पदयात्रा लेकर पहुंचे थे और तीन साल पहले जिन्होंने आगरा में जयराम रमेश के हाथों आदिवासी किसानों के हितों का सौदा किया था। रवीश कुमार ने इन्हीं का आधे घंटे का इंटरव्यू लिया था गोया किसानों के सबसे बड़े नेता राजगोपाल ही हों। तीसरी तस्वीर में स्वामी अग्निवेश हैं। आज उन्हें कहीं भी मंच नहीं मिला- न किसानों के बीच, न आरएसएस के। वे बड़ी बेचैनी से हर पंडाल को टहल-टहल कर देर तक निहारते रहे।
बहरहाल, सबसे ज्यादा दिलचस्प बात यह रही कि उत्तराखण्ड से खनन माफिया के खिलाफ रैली के लिए जिन लोगों को बसों में भरकर उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी दिल्ली ले आयी थी, उसके मंच पर अचानक सतपाल महाराज प्रकट हो गए जिसका सामूहिक बहिष्कार आनंद स्वरूप वर्मा, भूपेन सिंह, सुरेश नौटियाल और अन्य ने तुरंत कर दिया।
बता दें कि कांग्रेस के खिलाफ उत्तराखण्ड के इस प्रोटेस्ट में भाकपा-माले के नेतृत्व वाली नवनिर्मित एआइपीएफ और विजय प्रताप वाला समाजवादी समागम भी हिस्सेदार थे।
उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के पीसी तिवारी से जब पूछा गया कि सतपाल महाराज का क्या मामला है, तो उनका कहना था कि आंदोलन किताबी तरीके से नहीं चलते।
इन तमाम विडम्बनाओं के बीच सबसे मज़़ेदार चीज़ शाम पांच बजे गांधी शांति प्रतिष्ठान में मनायी गयी "मार्क्स जयन्ती" रही। जब मार्क्स की "जयन्ती" मनायी जा सकती है तो माले के मंच पर सतपाल महाराज भी हो सकते हैं। इसे कहते हैं असली समाजवादी समागम। उदारीकरण के दो दशकों में अगर किसी एक समस्या का नाम पूछा जाए जो जड़ से खत्म हो गयी है, तो "अस्पृश्यता" से बेहतर जवाब और कोई नहीं होगा। मार्क्स जयन्ती पर एक बार फिर कस के बोलिए- दुनिया के मजबूरों एक हो!!!


