दुनिया भर की मेहनतकश इंसानियत के कत्लेआम की तैयारी है
दुनिया भर की मेहनतकश इंसानियत के कत्लेआम की तैयारी है
यह मानवीय त्रासदी जितनी नेपाल की है, उससे कहीं ज्यादा भारत और समूचे महादेश की है
हिमालय में जो उथल पुथल हो रहा है। उसका खामियाजा बदलते मौसम चक्र, जलवायु और आपदाओं के सिलसिले में हमें आगे और भुगतना है। इसलिए नेपाल के महाभूकंप को हम किसी एक देश की त्रासदी नहीं मान रहे हैं। यह मानवीय त्रासदी जितनी नेपाल की है, उससे कहीं ज्यादा भारत और समूचे महादेश की है।
अभी-अभी शुरुआत है, पूरी लड़ाई बाकी है...
दुनिया भर के मेहनतकशों और सर्वहारा जन गण की एकता के जरिये वर्गविहीन समाज की शोषणमुक्त दुनिया बनाने वाले हमारे कामरेड अब किस दुनिया में हैं, इसका अता पता लगाना नेपाल के भूकंप से जख्मी हिमालय में मलबे और विध्वंस मध्ये दम तोड़ती मनुष्यता से ज्यादा कठिन है।
मई दिवस के दिन ही देश की तमाम ट्रेड यूनियनों की रण हुंकार के मध्य पहली मई को मिले पे पैकेज के साथ आईटी सेक्टर के हजारों बंधुआ मजदूरों को सेवामुक्ति का गुलाबी प्रेमपत्र मिल गया। तो अकेले बंगाल में छह-छह जूट मिलें बंद हो गयीं। चालीस हजार कामगारों के हाथ पांव एक झटके के साथ काट दिये गये।
दुनिया भर की मेहनतकश इंसानियत के कत्लेआम की तैयारी है
गौरतलब है कि ट्रेड यूनियनों की अपील पर बंगाल में तीस अप्रैल को बंद रहा अभूतपूर्व कामयाब रहा। इस कामयाबी में लेकिन कांग्रेस और संघ परिवार की भी भूमिका है। यह कामरेडों की कामयाबी या उनकी वापसी का सबूत नहीं है। इसी दिन परिवाहन हड़ताल भी देश व्यापी हो गयी।
अगले दिन मई दिवस पर जुलूसों के महानगर कोलकाता में लाल झंडों के साथ कोई जुलूस फिर भी नहीं निकला। शाम को शहीद मीनार पर ट्रेड यूनियनों की सभा में मेहनतकशों के हक हकूक के लिए लगातार लड़ाई की युद्ध घोषणा जरुर हुई, लेकिन मेहनतकश जनता की आजादी का नारा अब हमारे कामरेड लगाते नहीं है। जो दुनिया भर के वामपंथी बिरादरी का मुख्य नारा है। न वे राज्यतत्र में बदलाव या वर्गीय ध्रुवीकरण पर संवाद कर रहे हैं ताकि फासिस्ट धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण को रोकने का कोई सिलसिला बने और बाबा साहेब और उनके जाति उन्मूलन के एजेंडे से तो उनका कुछ लेना देना है ही नहीं।
सुबह कोलकाता दखल करके सत्तादल तृणमूल कांग्रेस के मजदूर संगठन इंटक तृणमूल ने ट्रेड यूनियनों के बंद और हड़ताल तोड़ने की नाकामयाब कोशिश कर मई दिवस की रस्म अदायगी में तब्दील कर दिया और लाल धागा बांधने की वैदिकी अनुष्ठान के साथ इस मजदूर संगठन की सभानेत्री सांसद दोला सेन के दस मिनट के वक्तव्य में मां माटी मानुष सरकार का मई दिवस निपट गया।
देश भर में पहलीबार कोलकाता में अंबेडकर के अनुयायियों ने संघ परिवार के बाबासाहेब के विरासत के हिंदुत्वकरण के प्रयासों के खिलाफ बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजेंडा के तहत उनके आर्थिक विचारों, उनके आंदोलन और मेहनतकश जनता, स्त्रियों और समूची मानवता के लिए उनके हक हकूक के लिए किये कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों, ट्रेड यूनियन आंदोलन में उनकी निर्णायक भूमिका को याद करते हुए कोलकाता मेट्रो चैनल से जुलूस निकालकर रेड रोड पर कूच करते हुए बाबासाहेब की प्रतिमा के समाने मेहनतकश जनता के हक हकूक बहाल करने के लिए मनुस्मृति शासन के जनसंहारी आर्थिक सुधारों के खिलाफ आजादी की लड़ाई शुरु करने का ऐलान कर दिया।
कारपोरेट मीडिया ने कोई सूचना नहीं दी लेकिन हमारे वैकल्पिक मीडिया के जरिये देश भर के बहुजनों और अंबेडकर अनुयायियों में खबर हो गयी है। हमें देश भर के साथियों के संदेश और फोन मिल रहे हैं। वे अपने अपने क्षेत्रों में कोलकाता की इस शुरुआत को एक सिलसिला बनाने का वायदा भी कर रहे हैं।
उन सबके लिए विनम्र निवेदन है कि अभी अभी शुरुआत है, पूरी लड़ाई बाकी है।
कितना कठिन है हकीकत की जमीन पर खड़े होने की कवायद और सामाजिक यथार्थ की चुनौती का मुकाबला करना और कितना सरल है हवा में तलवारें भांजना, चुनावी समीकऱण सहेजना, इसका जीता जागता उदाहरण है बंगाल। जहां छप्पन हजार कल कारखानों को खुलवाने के वायदे के साथ गद्दीनशीं होने वाली ममता बनर्जी के राज काज में मेहनतकश तबकों पर दसों दिशाओं से कहर बरप रहा है।
हिमालय में जो उथल पुथल हो रहा है। उसका खामियाजा बदलते मौसम चक्र, जलवायु और आपदाओं के सिलसिले में हमें आगे और भुगतना है। इसलिए नेपाल के महाभूकंप को हम किसी एक देश की त्रासदी नहीं मान रहे हैं। यह मानवीयत्रासदी जितनी नेपाल की है, उससे कहीं ज्यादा भारत और समूचे महादेश की है।
केदार त्रासदी के तुरंत बाद हमने हिमालय को दक्षिण एशियाई देसों की साझा विरासत मानते हुए आपदा प्रबंधन की साझा ट्रांस नेशनल मेकानिज्म बाने की मांग की थी और तब हम बामसेफ में भी थे। हिमालयन वायस ने हामारा यह इंटरव्यू यूट्यूब पर प्रसारित किया थाः
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
यूट्यूब पर यह वीडियो खुल नहीं रहा है और प्राइवेट मार्क है। हमने हिमालयन वायस के संपादक से निवेदन किया है कि वे इसे फिर अपलोड करें। हम इस मसले पर आगे संवाद जारी रखेंगे।
हम आदरणीय सुंदर लाल बहुगुणा के साथ साथ भूगर्भशास्त्री हमारे गुरुजी खड़गसिंह वाल्डिया और चिपको माता गौरादेवी की अगुवाई में हमारे हिस्से के पहाड़ की इजाओं और बैणियों से जो पर्यावरण का पाठ पिछले चार दशकों से लेते रहे हैं, उसके मुताबकि हिमालय की सेहत प्रकृति, पर्यावरण और पृथ्वी की सेहत के लिए उतना ही जरुरी है, जितनी मनुष्यता और सभ्यता के लिए। जिनपर एकाधिकारवादी कारपोरेट केसरिया हमला दिनोंदिन तेज होता जा रहा है।
हिमालय सबसे बड़ा एटम बम है, फटेगा तो पूरी कायनात कयामत में तब्दील हो जायेगी। फासिज्म को रोकना कोई विधर्मियों और अल्पसंख्यकों के धार्मिक नागरिक और मानवाधिकार को बचाने की लड़ाई में सीमाबद्ध नहीं है, यह अस्पृश्य अनार्य अश्वेत मेहनतकशों की दुनिया को बचाने की लड़ाई है।
इसीलिए हम यथासंभव गुरखाली में नेपाल के अपडेट आप तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं।
हम हस्तक्षेप पर ग्राउंड जीरो से लगातार रपटें लगा रहे हैं और लगातार बता रहे हैं कि इस कारपोरेट साम्राज्य की असली ताकत कारपोरेट मीडिया है। इस कारपोरेट कयामत के मुकाबले वैकल्पिक मीडिया खड़ा किये बिना हम कोई मोर्चा खोल ही नहीं सकते। इसलिए हम हस्तक्षेप के लिए आपसे बार बार मदद की गुहार भी लगा रहे हैं।
नेपाल पर अपडे़ट के लिए कृपया हस्तक्षेप लगातार देखते रहें और हो सके तो इसे जारी रखने में हमारी कुछ मदद भी करें।
नेपाल भूकंप पर विशेष #WithNepal
http://www.hastakshep.com/oldtag/with-nepal-2
इस लड़ाई में जाहिर है कि सिर्फ देश बचाने से हम हिंदू साम्राज्यवाद और वैश्विक मुक्तबाजारी जायनी गठबंधन के फासिस्ट जनसंहारी तंत्र मंत्र यंत्र से मेहनतकश आवाम और बहुजनों को नहीं बचा सकते। हमें आर्थिक मोर्चे के अवलावा पूरे कायनात को बचाने की भी फिक्र करनी होगी। देश ही नहीं, इस महादेश को जोड़ना होगा कायनात और इंसानियत की बहाली के लिए। यही गौतमबुद्ध और बाबासाहेब का आंदोलन है दरअसल, जिसे हमने शुरु ही नहीं किया है।
बाबासाहेब संपूर्ण मानवता के नेता थे, जो मेहनतकश अस्पृश्य अनार्य अश्वेत दुनिया के एकच मसीहा हैं। इस दुनिया को बचाने की जवाबदेही अब हमारी है। इसके लिए अस्मिताओं और कारपोरेट केसरिया धर्मोन्मादी राजनीति को तोड़ने के वास्ते दुनिया भर की मेहनतकश आवाम की आजादी की लड़ाई में भी हमारी हि्सेदारी होनी चाहिए। क्योंकि राजनीतिक सीमाओं के आरपार विध्वंस का यह तांडव मुकम्मल मनुस्मृति शासन है जो अभी नेपाल को दखल किये है तो बाकी दुनिया दखल करने के लिए भी उसका ग्लोबल हिंदुत्व एजेंडा है। जिससे इस कायनात की तमाम नियामतें और बरकतों का काम तमाम है।
अब अंबेडकरी आंदोलन को गौतम बुद्ध के आंदोलन की तरह दुनिया भर में विस्तार देकर ही इस कायनात को हम कयामत के इस केसरिया कारपोरेट सिलसिले से बचा सकते हैं।
उन विद्वान भाषाविदों से निवेदन है कि हमारी जल्दबाजी में तमाम मुद्दों को फौरन जनता के बीच संवाद बनाने की प्राथमिकता समझें, जो हमारी वर्तनी और व्याकरण से पीड़ित हैं। हमारे मुद्दों में अगर उनकी दिलचस्पी है तो हमारी अक्षमता या चूक को माफ करें और हमारा साथ दें।
पलाश विश्वास


