दुरंतो आए कहां से , दुरंतो जाए कहां रे …
दुरंतो आए कहां से , दुरंतो जाए कहां रे …
जुगनू शारदेय
यह तो बहुत नाइंसाफी है । देश के विदेश बिहार के साथ बहुत ही नाइंसाफी है । इस नाइंसाफी से तड़प कर दुरंतो के असली जनक 2002 के रेल मंत्री नीतीश कुमार ने बहैसियत बिहार के मुख्य मंत्री निर्वहन कुमार रेल मंत्री ममता बनर्जी से मांग कर डाल ली कि हमको भी देइ दो न एक दुरंतो ।
भइए,मांगना ही था तो एक ठो राजधानी मांग लेते । ठेकेदार बेचारा खुश होता – चलो एक और दुकान तो खुली खाने पीने की । पूर्व और वर्तमान सांसद प्रसन्न होते कि कितना सादा है जीवन कि सुबह का नाश्ता – रात का भोजन मिल जाता है इस महंगाई में । पर कहां ! अब तो निर्वहन कुमार हवाई जहाज से चलते हैं । गाहे बगाहे रेलगाड़ियों का उदघाटन करते हैं । तब कहां सोचते हैं अपने दुरंतो के बारे में । मानना पड़ेगा ममता बनर्जी को कि दुरंतो को कल्ट बना दिया कि निर्वहन कुमार को भी मांगना पड़ा कि हमको भी देइ दो न एक दुरंतो ।
अब यह जो है न दुरंतो किसी ने बताया कि बांग्ला भाषा में इसका मतलब बड़ा नटखट सा शोख बालक होता है । इसीलिए इसका रंग शोख है – लगता नहीं कि अपनी छुक छुक गाड़ी का रंग है । तो यह दुरंतो छैला – रंग रबीला हावड़ा से बंगलुरु , मुंबई ,पुणे ,पुरी और दीघा ( बिहार वाला नहीं बंगाल वाला ) सियालदह से नई दिल्ली तक जा कर भारतीय रेल की बाकी गाड़ियों को ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा बना देते हैं । अभी तक रोजाना कहीं नहीं हैं । दिल्ली से जम्मूतवी , लखनऊ ,इलाहाबाद ,भुवनेश्वर ,सिकंदराबाद ,चेन्नई और यशवंतपुर तक जाती है । मुंबई से नागपुर ,सिकंदराबाद ,एरणाकुलम ,इंदौर और जयपुर की गुलाबी नगरी तक पहुंच जाते हैं इतना ही नहीं चंडीगढ़ से चल कर अमृतसर में मत्था भी टेक लेते है । चेन्नई से कोयंम्बटूर तक भी हो जाते हैं । पर पटना नहीं आते हैं । हाय रेल बाबू ,यह क्या जुल्म तूने ढाया । हमें दुरंतो अता नहीं फरमाया । और कहना पड़ा निर्वहन कुमार को कि हमको भी देइ दो न एक दुरंतो ।
बड़ा पुराना किस्सा है । अब यह बिहारी है कि मैथिली कि रामचरितमानसी कि राजा जनक को विदेह भी कहा गया था । वैसे ही हमारे निर्वहन कुमार भी विदेह हो गए हैं । ज्ञानवान तो पहले से ही थे ,इधर मुख्यमंत्रित्व करते करते ज्ञान के भंडार हो गए हैं । फोकस बहुत साफ है कि बिहार का विकास करना है । जब वह देहधारी थे और उनकी काया में रेल मंत्रालय समाया था तभी जनता ने उन्हें विकास पुरुष का ओहदा अता फरमाया था । रेल विकास निगम भी उन्होने बनाया था । अपनी समझ से रेल को खूब चमकाया था । लेकिन ममता बहना से दुरंतो नहीं पाया था । सो लिख डाली चिट्ठी कि देइ दो न एक दुरंतो ।
ममता बहना तो इस लिए रेल के पीछे पड़ी हैं कि कभी बंगाल के एबीए गनी खान चौधरी ने मालदा को रेल मंडल बना कर बंगाल में नाम कमाया था । देहधारी नीतीश कुमार ने तो 16 रेल मंडल बना डाला था । जब जी में आता था रेल में क्रांतिनुमा एक गाड़ी चलाते थे । वैसी ही एक गाड़ी है संपूर्ण क्रांति - पटना से नई दिल्ली बिना रुके जाती है । रोक के नाम पर मुगलसराय – कानपुर में टेकनिकल स्टॉप खाती है । यही है असली दुरंतो । अब कहां है क्रांति का जमाना । संपूर्ण क्रांति तो बिहार हो गई है । सेर भर सतुआ ,मधुरी चाल हो गई है । आज न पहुंचब , पहुंचब काल हो गई है । ऐसे में निर्वहन कुमार मांगता है देइ दो न एक दुरंतो ।


