क्या देवयानी के संदर्भ में उस पीड़ित मजदूर नौकरानी से अब भारत के कम्युनिस्टों को कोई सरोकार नहीं ?
श्रीराम तिवारी

मेरिका में पदस्थ भारतीय उपमहावाणिज्य दूत देवयानी खोब्रागड़े पर आपराधिक मुकदमे की तलवार लटक रही है। कमोवेश पूरा भारत देवयानी के पक्ष में और अमेरिका के खिलाफ खड़ा हो गया है। किन्तु किसी को भी उस पीड़ित नौकरानी संगीता रिचर्ड की फ़िक्र नहीं जिसको सताने के आरोप देवयानी पर लगे हैं। हालांकि इस समय जो शानदार एकता भारत में दिख रही है उसकी तो सदैव ही बहुत जरूरत है। इस एकता को में भी सलाम करता हूँ। अमेरिका को मैंने कभी भी भारत का मित्र या हितैषी नहीं माना। मेरा मानना है कि दुनिया के छँटे हुए बदमाशों से जो भूभाग भरा पड़ा है, उसी का नाम अमेरिका है। इन छँटे हुए चतुर-चालाकों, बदमाशों में केवल यूरोपियन, अफ्रीकन या एसियन ही नहीं कुछ भारतीय भी हो सकते हैं। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की तमन्ना रखने वाले ही तो अमेरिका की ओर भागते हैं। बेशक इनमें अधिकाँश अपराधी ही हों यह जरूरी नहीं, किन्तु देवयानी को निर्दोष करार देने की भारतीय मानसिकता से मैं अपने आप को अलग पाता हूँ। मैं इस पक्ष में भी नहीं हूँ कि देवयानी प्रकरण पर अमेरिका से 'शीत युद्ध' लड़ा जाये! या संगीता रिचर्ड नामक पीड़िता को केवल अमेरिकी क़ानून के भरोसे छोड़ दिया जाये!

राजनीति के महापंडित आचार्य चाणक्य कह गये हैं कि "यदि एक व्यक्ति के कारण परिवार संकट में आ जाये तो उस व्यक्ति का त्याग किया जाना चाहिए। यदि एक परिवार के कारण पूरा गाँव संकट में आ जाये तो उस परिवार का त्याग किया जाना श्रेयस्कर है। यदि एक गाँव के कारण पूरा देश ही संकट में आ जाये तो उस गाँव का त्याग भी किया जा सकता है।"

ह एक बिडंबना ही है कि केवल एक क्षुद्र आईएफएस की वैयक्तिक भूल के कारण, अमेरिका में उसकी दुस्साहसिक अवैधानिक गतिवधि और उसके द्वारा घरेलू नौकरानी का बेजा शोषण करते पाये जाने के कारण आज भारत और अमेरिका एक दूसरे के आमने-सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं। भारत सरकार ने देवयानी को यूएनओ में स्थानांतरित करके मामले को और उलझा दिया है। जबकि उसे तत्काल बर्खास्त करके अमेरिकी क़ानून के हवाले किया जाना चाहिए था। उसकी जाँच में सहयोग करना चाहिए था। इससे देश का नाम रह जाता और भ्रष्ट आईएफएस अफसरों को नसीहत मिलती कि वे विदेश में केवल ऐय्याशी के लिये नहीं बल्कि भारत के हितों की देखभाल के लिये पदस्थ किये गये हैं। उन्हें शानदार वेतन भत्ते और राजनयिक सुविधाएं अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति के लिये नहीं बल्कि सक्षम भारतीय विदेश सेवा के लिये ही दिये जा रहे हैं।

हमारे कतिपय स्वनामधन्य बुद्धिजीवी, चिंतक, वाम-विचारक, प्रगतिशील लेखक, जन -संगठनों से लेकर घोर दक्षिणपंथी संघ परिवार तक सभी मिलकर देवयानी प्रकरण में अमेरिका को शैतान का अवतार और देवयानी खोब्रागडे को पीड़िता बता रहे हैं। जो कि सरासर झूठ है। जिनको इस घटना क्रम की कुछ भी समझ नहीं है वे भी केवल अमेरिकन विरोध के लिये भौं-भौं कर रहे हैं। देवयानी के पिताश्री उत्तम खोब्रागडे जी <सेवानिवृत्त आईएएस> ने तो घोषणा ही कर दी है कि उनकी पुत्री देवयानी पर उत्पीड़न-शोषण का आरोप लगाने वाली घरेलू नौकरानी संगीता रिचर्ड तो सीआईए एजेंट है। उनका एक और अजीबो गरीब बयान आया है कि " मेरी बेटी को अमेरिका में किसी षड्यंत्र के तहत फँसाया जा रहा है।" उनकी आशँका बिलकुल आसाराम और नारायण साईं जैसी है, जो गिरफ्तारी से पूर्व पुलिस पर या नेताओं पर आरोप लगाकते थे कि 'हमें फँसाने में किसी माँ-बेटे का हाथ है 'यानी आसाराम एंड संस ने अपने अपराधों से बचने के लिये जो विशेष छूट की अपेक्षा की थी, वही उत्तम खोब्रागडे अपने बेटी के लिये माँग रहे हैं !

जय हो ! भारत भाग्य विधाता !जय हो ! अब उस बेचारी नौकरानी संगीता रिचर्ड को तो कम्युनिस्टों ने भी बेसहारा छोड़ दिया है। कम्युनिस्ट एवं संघी सभी एक साथ मिलकर देवयानी के ग्लैमर और झूठे राष्ट्र सम्मान का रोना रो रहे हैं।

यूनओ चार्टर के अनुसार दुनिया के तमाम राष्ट्र परस्पर दौत्य सम्बन्ध कायम रखने, व्यापार-पारगमन और कूटनीतिक सम्बन्धों का साहचर्य बनाये रखने के लिये, अपने प्रतिनिधि एक-दूसरे के यहाँ भेजते हैं। इनमें राजदूत, उच्चायुक्त, महावाणिज्य दूत, उपवाणिज्य दूत और कनिष्ठ राजनयिक हुआ करते हैं। इन सफेद हाथियों को पालने के लिये देश के खजाने से हर माह भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है। इनका काम सिर्फ इतना होता है कि वे अपने पैतृक देश और पर-राष्ट्र <जिसमें वे पदस्थ हैं> के बीच बेहतर तादात्म्य और अन्योन्याश्रित रिश्ता बनाये रखने में अपने व्यक्तित्व का पूर्ण इस्तेमाल करें। अतीत में अनेक विभूतियों- जी पार्थसारथी, केपीएस मेनन, मुचकुंद दुबे और रिखी जैपाल जैसे कई बेहतरीन राजनयिकों ने अपने-अपने श्रेष्ठतम गुणों से दुनिया में भारत का नाम ऊँचा किया है। किन्तु जिस तरह राजनीति में योग्यता की जगह आरक्षण और राजनीतिक पहुँच का बोलबाला बढ़ा है उसी तरह इंडियन सिविल सर्विस, पुलिस सर्विस तथा विदेश सेवा में भी पहुँच वालों के बाल-बच्चों को ही मलाई खाने अमेरिका, इंग्लेंड या विदेश भेजा जाने का सिलसिला जारी है। इन अकुशल और लापरवाह राजनयिकों की मूर्खता या ऐय्याशी का खामियाजा देश को भुगतना पड़ता है।

जिस देवयानी खोबरागड़े की ये जिम्मेदारी थी कि भारत और अमेरिका के बीच विदेश व्यापार और दौत्य सम्बन्धों को अपने देश के पक्ष में बेहतर बनाने में अपने उत्तरदायित्व का शिद्दत से पालन करे यदि उस राजनयिक की किसी भूल-चूक या गैर कानूनी हरकत के कारण भारत और अमेरिका में तलवारें खिची हुई हैं तो ऐसे राजनयिकों की नियुक्ति भी संदेहास्पद है। इनकी काबलियत और योग्यता पर सवाल उठना चाहिए। सवाल तो यह भी उठना चाहिए कि इन अयोग्य राजनयिकों का चयन करने वाले कौन हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि बाप कलेक्टर था तो बेटी को आईएफएस बनवा दिया! बहुत सम्भव है कि मध्यप्रदेश के भ्रष्ट आइएएस दंपत्ति की तरह देवयानी भी बाप के चरण चिन्हों पर चल पड़ी हो ! हो सकता है कि घोड़े को नाल ठुकवाते देख मेंढकी को भी नाल ठुकवाने का शौक चर्राया हो ! यदि देवयानी ने कोई गुनाह नहीं किया तो क़ानून का सामना क्यों नहीं करती ? उनके पिता को सीआईए के सपने क्यों आ रहे हैं ? क्या देश के कंधे पर बन्दूक रखकर ये लोग अपने गुनाह छिपाने में कामयाब हो जायेंगे? क्या इनके द्वारा सताई गई नौकरानी संगीता को न्याय नहीं मिलेगा ?

मध्यप्रदेश में मुन्ना भाइयों <नकली डाक्टरों> की तरह न केवल देश में बल्कि विदेश सेवा में भी रिश्वत, जुगाड़ और आरक्षण की बैसाखी पर सवार होकर, फ़ोकट में मलाई जीमने वाले दुनिया भर में हमारी नाक कटा रहे हैं। नकली बीजा पासपोर्ट वनवाकर या तो अपनों को उपकृत कर रहे हैं या घरेलू नौकरों के नाम पर शोषण कर रहे हैं। जब उनकी पोल खुलती है और जाँच होती है तो देश की साख को दाँव पर लगा देते हैं। इन भ्रष्ट तत्वों की हिफाजत के लिये जब हमारे एसऍफ़आई या वाम मोर्चे के क्रांतिकारी साथी सड़कों पर संघर्ष करते हैं तो मेरा कलेजा मुँह को आता है। मुझे मजबूर होकर कहना पड़ता है कि मैं उस शोषित- पीड़ित घरेलू नौकरानी को न्याय दिलाने के पक्ष में हूँ जिसे अमेरिकी प्रशासन और 'अमेरिकन डोमेस्टिक वर्कर यूनियन' का संरक्षण प्राप्त है।

कमलनाथ जी और भारत सरकार को सलमान खुर्शीद साहब का शुक्रगुजार होना चहिये जिन्होंने इस मौके पर संतुलित बयान दिये और आपा नहीं खोया।

भारतीय महिला राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े के साथ अमेरिकी प्रशासन द्वारा तथाकथित बदसलूकी विषयक मामला जरा ज्यादा ही पेचीदा होता जा रहा है। विगत दिनों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने, डीवाईऍफ़आई के साथियों ने, एसऍफ़आई छात्र संगठन ने अमेरिकन सेंटर के सामने प्रदर्शन किया! अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया ने मुम्बई में अमेरिकन काउंसुलेट जनरल के ऑफिस पर प्रदर्शन किया ! इसमें क्या उद्देश्य हो सकता है ?इससे बेहतर और उद्देश्यपूर्ण तो वो आंदोलन है जो अमेरिका के न्यूयार्क शहर में 'अमेरिकन डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन' ने भारतीय महा वाणिज्य दूतावास के समक्ष प्रदर्शन करके किया है।

भारतीय वामपंथी जन संगठनों ने, विद्यार्थी परिषद् ने, भाजपा ने, आरपीआई ने और समस्त भारतीय मीडिया ने तो बेहिचक मान लिया है कि अमेरिका ही पाप का घड़ा है! और रहेगा। इन सभी को ये भी लगता है कि तथाकथित निर्दोष भारतीय राजनयिक देवयानी पर बड़ा भारी जुल्म हुआ है। भारत के मीडिया प्रगतिशील विचारक और वामपंथ से लेकर घोर दक्षिणपंथी संघ परिवार सभी एक होकर अमेरिका को नरक का कीड़ा बता रहे हैं। देवयानी को भारतीय अस्मिता मानकर उसके अपमान को अपना मानकर अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे हैं। इसीलिये सबके सब अमेरिका को सबक सिखाने के लिये शब्द भेदी बाण उगलते हुए संघर्ष के मैदान में कूद पड़े हैं। कुछ लकीर के फ़कीर हैं जो अपने आप को कम्युनिस्ट या वामपंथी कहते हैं और उनकी अति दयनीय समझ है कि अमेरिका कभी कुछ सही नहीं कर सकता ! इसीलिये यदि अमेरिका कहेगा कि सूरज पूर्व से उदित होता है, तो ये रूढ़िवादी-प्रगतिशील विश्वास नहीं करेंगे और तब उनका सूरज पश्चिम से भी उदित हो सकता है। देवयानी खोब्रागड़े जो की स्वयं अब एलीट क्लास को सुशोभित करती है, जिसने निसंदेह गैर कानूनी हरकतें कीं हैं, अपनी घरेलू नौकरानी का शोषण-उत्पीड़न किया है और वीजा प्रकरण समेत कई मामलों में अपराधी है, उसे बचाने के लिये मेरे कम्युनिस्ट मित्र अमेरिका को ललकार रहे हैं। धन्य है उनकी क्रांतिकारिता! मार्क्स, लेनिन और शहीद भगतसिंह ने स्प्ष्ट कहा है कि ;- "पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था में न्याय शक्तिशाली का पक्षधर हुआ करता है" एक तरफ विशेषाधिकार प्राप्त उच्चाधिकारी-देवयानी खोब्रागड़े है और दूसरी ओर उसके द्वारा सताई गई, उत्पीड़ित-उसकी घरेलू नौकरानी है। इस सन्दर्भ में भारतीय वामपंथ को किसका पक्षधर होना चाहिये ?

क्या यह वैसा ही मामला नहीं है जब कोई कुटिल सास अपनी अप्रिय बहू से नफरत करे और क्रोध में उसे अभिशाप भी दे डाले कि "जा रांड हो जा" याने बहू से नफरत इतनी कि क्रोध में सास ने अपनी बहू के पति के मर जाने की बद्दुआ भी दे डाली ! जबकि बहू का पति सास का अपना बेटा भी होता है।

मेरिका को गरियाने के लिये क्या भारतीय वामपंथ ने कसम खा रखी है ? क्या देवयानी के संदर्भ में उस पीड़ित मजदूर नौकरानी से अब भारत के कम्युनिस्टों को कोई सरोकार नहीं ? क्या एलीट क्लास के ऐय्याशीपूर्ण आपराधिक जीवन में अमेरिकी क़ानून की दखल से भारतीय क्रांतिकारियों के पेट में दर्द होने लगा है ?

संघ परिवार, भाजपा-विद्यार्थी परिषद् और दक्षिणपंथी विचारकों को अमरीका से कभी कोई शिकायत नहीं रही। वे तो अमेरिका और सीआईए के सहज मित्र हैं ही। उन्हें देवयानी की बेइज्ज्ती से भी कोई लेना-देना नहीं। वे तो अमेरिका हो, पाकिस्तान हो, चीन हो, बंगला देश हो, नेपाल हो या श्रीलंका हो जब भी भारत की किसी से तकरार हुई तो संघ परिवार की तिकड़म रहती है कि कैसे 'सोनिया,राहुल और कांग्रेस' को घेर-घारकर निपटाया जाये। किन्तु कम्युनिस्टों, समाजवादियों और अन्य राष्ट्र भक्तों को तो इन घटनाओं की सही जानकारी और सही समय पर सही प्रतिक्रिया व्यक्त करनी ही चाहिए। अभी भी कुछः नहीं बिगड़ा, भारतीय वामपंथ को चाहिए कि अमेरिका में घरेलू कामगारों की यूनियन 'अमेरिकन डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन' की आवाज में आवाज मिलाये और शोषित पीड़ित नौकरानी संगीता रिचर्ड के बहाने देश और दुनिया में मजदूरों, नौकरों और कामगारों के शोषण को समाप्त करने की, उन्हें काम के घंटे कम करने की, उचित मेहनताना और गुजर बसर दिलाने की माँग को अपना समर्थन दे ! देवयानी और उसके जैसे एलीट क्लाश के लोग तो प्रकारांतर से शोषक शासक वर्ग का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।

श्रीराम तिवारी , लेखक जनवादी कवि और चिन्तक हैं. जनता के सवालों पर धारदार लेखन करते हैं।