देश अमेरिका बनता रहा और गुजरात मॉडल के अश्वमेधी घोड़े दौड़ते रहे। फतह ही फतह।
गुजरात मॉडल-होरी को तो मरना ही है आखेर। गोदान का सिलसिला भी जारी रहना है।
स्वाइन फ्लू का बढ़ते शिकंजे के साथ मनसेंटो बहार, दूसरी हरित क्रांति और भुला दिया गया भूमि सुधार
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं ,
दो के नहीं ,
लाखों -लाखों कोटि -कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा
और उसके खिलाफ सत्ता वर्चस्व के अश्वमेधी घोड़े और मुक्त बाजार के सांढ़
नित्यानंद गायेन ने लिखा है कि गौर करें- इस कविता को पढ़ते हुए देश की वर्तमान सरकार की किसानों के प्रति तानाशाही व्यवहार को सोचिये, हमें किसके साथ खड़ा होना है यह भी तय करना होगा हमें ।
बाबा की कविता और स्वाइन फ्लू से फैलते अंधियारा और दूसरी हरित क्रांति से देश में तमाम बीमारियों और त्रासदियों और आपदाओं की गगन घटा घहरानी के मध्य बजट ते जरिये क्षत्रपों को साधने, तोड़ने, फतह करने के अश्वमेध अभियान से जब सारे खेत, सारी फसलें, सारी कायनात पूंजी के हवाले हैं, तो जिस ब्रह्मराक्षस की दीक्षा से हम अग्निपाखी जी रहे हैं, उन पूज्यवर गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी की ताजा सूक्ति से आज का रोजनामचा शुरू कर रहा हूं-
मन की बात
भूमि ग्रहण अध्यादेश के अनुसार जमीन उनकी, जिनके पास धनबल है या बाहुबल। बाकी लोगों के लिए देश की नदियों में पर्याप्त पानी है। जो भले ही जीने के काम का न भी हो, मरने के के लिए कम नहीं है।
सुबह लिखा था, जरूरी काम से कोलकाता निकलना है थोड़ी देर में दो तीन बजे तक लौटकर खा पीकर न जाने कब बैठना होगा कंप्यूटर पर। तब तक आप भी लिखें अपनी मन की बात, प्रसारण करने के लिए एक डीएक्टीवेटेड बंदा आपका दोस्त हो न हो, दुश्मन भी नहीं है।
लौटकर, टीवी उभी देखदाखकर फिर पीसी के मुखातिब हूं, मन की कोई बात फुसफुसाकर भी बोल नहीं रहा। ऐसा गजब सन्नाटा बट्टा दो है।
जनता ससुरी हमेशा की तरह खामोश जुती है हल बैल भैंस से।
राजनीति उसे हांके जा रही है और सारी फसल उसी राजनीति की।
बाकी किसान वास्ते वही खुदकशी और बेदखली का विकल्प।
होरी को तो मरना ही है आखेर।
गोदान का सिलसिला भी जारी रहना है।
सुबह से एक खास टीवी चैनल पर लैंड वार फोकस था।
हमारे सबसे प्रिय एंकर बारी-बारी से सबके मुखौटे खोल रहे थे।
पता चल रहा था कि राजस्व मंत्रियों की बैठक में पहले ही राजनीतिक सहमति हो चुकी है कारपोरेट पूंजी के खातिर विकास के बहाने जमीन अधिग्रहण की कारपोरेट की असुविधा वाली शर्तों को लेकर, सहमति की अनिवार्य सहमति को खारिज करने के मुद्दे पर।
किस्सा यह कुलो है कि मोदी सरकार एक मुश्त नाना किस्म के अध्यादेश जारी करके देशी विदेशी पूंजी की आस्था हासिल करती रही और विकास के हीरक एफडीआई, निजीकरण माडल पेश करती रही, सुधार दमादम लागू करती रही।
देश अमेरिका बनता रहा और गुजरात मॉडल के अश्वमेधी घोड़े दौड़ते रहे। फतह ही फतह।
बाकी राजनीति इस कारपोरेट राज के आगे खिसियानी बिल्ली कि सुधार और विकास केखिलाफ,कारपोरेटपंडिंग और कारपोरेट लाबिइंग के खिलाफ बोले तो सत्ता में भागीदारी की कौन कहें ,राजनीति ही खत्म।
अब मजा देखिये कि जब जंतर मंतर पर हल्ला है,बाकी देश में भी हल्ला है तो भाजपा सरकार कह रही है कि खामी तो कांग्रेसी संशोधन में ही है।उसे दूर करने का तकाजा है और सहमति है।
मजा यह है कि सहमति है और बहुमत की बंदरघुड़की दी जा रही है।
डाउकैमिकल्स के वकील एक नहीं कई हैं, जिन्हें बजट बनाने की आदत रही है।
एको सुर में अलग अलग रंग में अलग-अलग मुहावरे में वे विकास, गरीबी उन्मूलन, समरसता करते हुए देश बेचने का साझा नक्शा तैयार करने में लगे हैं।
चिदंबरम बाबू अब मोदी की ताकत लोकसभा में हरक्युलियन कहिके आवाजें दे रहे हैं कि मत चूको चौहान।
चूकने का सवाल ही नहीं उठता है, सज्जनों और देवियों। नाटक के सीन पदलते हैं, पात्र बदलते हैं, लेकिन नाटक अंत में वहींच होता है, जो उसका मकसद है।
कारपोरेट का कोई विरोध कर नहीं सकता।
सभी लोग सभी पक्ष कारपोरेट के पक्ष में है।
जाहिर सी बात है कि किसानों के हित कारपोरेट हित के खिलाफ है।
कारपोरेट पक्ष किसानों का पक्ष हो नहीं सकता।
कुल तमाशा कारपोरेट पक्ष अपने को किसानों का पक्ष साबित करने को बेताब है।
कुलो किस्सा यहींच।
कारपोरेट के पास पूंजी है, जिससे राजनीति और सत्ता का भोग है तो किसान ससुरे वोट बैंक हैं।
आखिर या होरी है या फिर धनिया या कुलो गोबर हैं।
देश अमेरिका भयो।
गुजरात मॉडल दसों दिशाओं में।
हर शख्स यहां मौत का सौदागर।
सीमेंट का जंगल दसों दिशाओं में लेकिन खेती से जुड़े लोग कोट पैंट सूट बूट पहिनकर लंडन से लौटे साहिब बने रहने के बावजूद वही बुरबके बुरबकै है, जिसका दिल नारेबाजी, शगूफै, ऐलान, बजट तो धर्म और प्रवचन से भी हांका जा सकता है।
महाजन के खाते बही में टीप छाप का सिलसिला अभी जारी है।
देहात की दुनिया फिर वही मदर इंडिया है जो जुल्म के खिलाफ अपनी औलाद को गोली तो दाग सकती है, गीत सुहावने गा गाकर जहर जिंदगी पी सकती है, लेकिन जुल्मोसितम के खिलाफ लामबंद हो नहीं सकती है। खुदकशी करेगा किसान। बागी नहीं किसान। किसानों की बगावत का कोई डर नइखै।
बूझो पहेलियां, भूज सको तो
सहमति है, लेकिन सहमति नहीं है।
सहमति की गुहार है।
लेकिन सर्वदलीय बैठक नहीं है।
संघ परिवार नाराज है।
स्वदेशी मंच नाराज है।
भाजपा नाराज है।
संसद में अटके भटके हैं अध्यादेश सकल।
फिर भी सरकार बिजनेस फ्रेंडली है।
फिर भी केसरिया में रंग सारे एकाकार हैं और सेल्फी से सोशल मीडिया लबालब है।
रेबड़ियां बांटी जा रही हैं। रे
बड़ियां बटोरी जा रही हैं।
सरकार अपनी रणनीति पर कायम है।
मनुस्मृति राज बहाल है। हिंदुत्व अश्वमेध जारी है।
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का जिहाद जारी है।
राष्ट्रवाद राष्ट्रद्रोह एकाकार है।
देश नीलामी पर है।
नस्ली कत्लेआम है।
दाना दाना जहर है।
हवाओं पानियों में जहर है।
काहे को झुकने लगी कारपोरेट केसरिया सरकार।
बिजली पानी से जनता खुश।
स्मार्ट महानगरी जलवे से लोकतंत्र का कायकल्प।
सीमेंट का जंगल विकास है तो हरियाली का क्या काम है।
संशोधनों पर जोड़ तोड़ है कि वोटबैंक सध जाय हुजूर मेरे बाप, फिर किसानों का कत्लेआम जायज है। समां यही बांधा है।
जिस चैनल पर सुबह से भूमि पर महाभारत था, वहीं अब फिर युवराज की ताजपोशी सबसे बड़ी खबर है।
कांग्रेस का ईश्वर बनकर युवराज देश और कायनात बचा लेंगे, यह क्रिया प्रतिक्रिया क्रियाकर्म साथे साथ है।
कोई माई का लाल लेकिन कह नहीं रहा है कि जो जोते खेत, खेत उसी का।
उस खेत से उसकी मर्जी के बिना बेदखली का हर कानून नाजायज है।
सब राजनीतिक और तकनीकी दलीलें पादै हैं।
कोलकाता में अपनी दीदी ने स्वाइन फ्लू मच्छरों के जिम्मे कर दिया है। लोग उनकी मजाक उड़ा रहे हैं।
मेडिकैली करेक्ट जो मंतव्य है वह भी आखिर पोलिटिकैली करेक्ट है।
भोपाल गैस त्रासदी से आमद विकलांगता अब इस देश की सेहत है और पहाड़ों में भी मधुमेह का कहर है।
हवा पानी की क्या कहिये, हरित क्रांति है, दूसरी हरित क्रांति है, मनसेंटो है और भोपाल त्रासदियों की फिर तैयारी है, देश परमाणु भट्टी पर है।
हर रोग अब स्वाइन फ्लू है।
मौसम बदलने पर जो हरारत होती रही है हजारों सालों से अब वह कयामत है।
कयामत के कारोबारी डाउ कैमिक्लस के बजट से हमें इम्मयून बनाकर आत्मध्वंसी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में ऐसे इनक्लूड कर रहे हैं कि सुबह सवेरे गो मूत्र पान निदान है और हनुमान चालीसा यंत्र बेलजियम कांच रक्षा कवच है।
गीता महोत्सव में सपरिवार शामिल होकर सनातन हिंदुत्व का बजरंगी बन जाइये।
तंत्र मंत्र यंत्र से ही जान बचेगी अब।
खेत और फसलों से बेदखली का अंजाम लेकिन दाना दाना रेडियोएक्टिव पोलोनियम 210 है।
पलाश विश्वास