16वीं लोकसभा का चुनाव कोई सामान्य चुनाव नहीं है. देश के दुश्मनों ने बड़ी चतुराई के साथ देश की वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था तथा गंगा जमुनी तहजीब की ईंट से ईंट बजाने की योजना दबे पाँव बना ली है. उनका निशाना कुल मतदाताओं का एक तिहाई वह नवजवान है जो भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ है तथा भौतिकवाद की दुनिया में पला बढ़ा है.

16 मई की प्रतीक्षा क्यों है ?

देश के प्रमुख दलों में से एक भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर जिस आक्रामक तेवर के साथ कॉरपोरेट जगत व मीडिया के सहारे अपने चुनाव प्रचार के गुब्बारे में हवा भरी है क्या उसका उत्तर देश की जनता देगी? इसका बेचैनी से इन्तजार न केवल देश के शत्रुराष्ट्रों को है बल्कि मित्र राष्ट्र भी उत्सुकता के साथ 16 मई के दिन का इन्तजार कर रहे हैं.

वर्ष 2002 में गुजरात प्रान्त में हुए साम्प्रदायिक दंगे और उसके चलते गोधरा में हुए मुस्लिम नरसंहार के आरोपी नरेन्द्र मोदी, जिस प्रकार विगत एक वर्ष से झूठ व अर्द्धसत्य का सहारा लेकर अपनी ही पार्टी के अनुभवी व पार्टी के संस्थापक दिग्गजों को हाशिए पर ढकेल कर स्वयं को प्रधानमंत्री मानकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं वह कोई मामूली बात नहीं है.

भाजपा की पैतृक संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), the parent organisation of BJP), उसकी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था हिन्दू सेवा संघ (एच.एस.एस.) और देश की आर्थिक उन्नति एवं औद्योगिक विकास से फिक्रमंद शत्रु राष्ट्रों ने मिलकर इस बार देश के युवा मतदाताओं की राजनीतिज्ञ अपरिपक्वता व उनकी अनुभवहीनता का लाभ उठाने का एक मंसूबा बनाया है और देश के वर्तमान लोकतांत्रिक स्वरूप व इसके ताने बाने को नष्ट कर फासीवादी व्यवस्था की ओर ले जाने का एक षड्यंत्र रचा है.

RSS के लिए लोकतंत्र व प्रजातंत्र का क्या अर्थ है ?

नरेन्द्र मोदी का स्वयं के अनुकूल पोषण उस आर.एस.एस. ने किया है जहाँ महिलाओं के अधिकार का कोई प्रश्न नहीं, अल्पसंख्यकों के जीने के हक का कोई सवाल नहीं. लोकतंत्र व प्रजातंत्र का कोई मतलब नहीं, जो संघ संचालक का आदेश वही कानून, हिटलर व मुसोलिनी की विचारधारा से प्रभावित इस संस्था ने बहुत दिन पर्दे के पीछे रहकर, अटल बिहारी और जसवन्त सिंह जैसे मृदुभाषी एवं सभ्य राजनेताओं के मुखौटे लगाकर पहले जनसंघ व बाद में भाजपा जैसा राजनैतिक दल बनाकर सत्ता हासिल करने के प्रयोग किए परन्तु नाकामी हाथ लगी.

अब खुलकर दो-दो हाथ करने के मूड में आ चुके संघ ने इस चुनाव में काफी पहले से ही तैयारी करके मैदान पकड़ा है. पहले तो समाजसेवी अन्ना हजारे को महाराष्ट्र से उठाकर दिल्ली लाया गया, साथ में साधु संतों, रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट व सेवानिवृत्त फौजी अफसरों को जमाकर अपने संघी सिपाहियों की सेना उतारकर देश में अराजकता फैलाने का प्रयास किया गया. भ्रष्टाचार व महँगाई को मुद्दा बनाया गया जबकि इस हमाम में भाजपा स्वयं भी नंगी थी. बावजूद इसके काफी दिन यह माहौल गर्म रहा, परन्तु जब केन्द्र सरकार ने बरसों से लम्बित पड़े लोकपाल बिल को लोकसभा से पारित कराकर राज्यसभा में भेजा तो भाजपा के गले गुड़ भरे हँसिया के समान वह लटक गया. अंत में राज्यसभा में बिल न पास होने से भाजपा का किरदार नंगा होकर सामने आ गया.

यहाँ से अन्ना की टीम बिखर गई और आप पार्टी का वजूद अमल में आ गया जो भाजपा के लिये स्वयं जी का जंजाल बनकर खड़ी हो गई और दिल्ली विधानसभा सत्ता प्राप्ति के सफर को उसने ब्रेक डाउन कर भाजपा को करारा झटका दे दिया लेकिन कांग्रेस का दिल्ली से एक दम सफाया कर भाजपा के दिल को खुश करने का एक काम वह जरूर कर गई.

जहाँ तक भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को सामने रखकर, तानाशाही के अंदाज में जो प्रचार प्रारम्भ किया गया है वह भारतीय राजनीति में एक तरह का प्रयोग है और यह प्रयोग पूँजीवादी राष्ट्रों के सरगना अमरीका की लोकतांत्रिक व्यवस्था की नकल है, जहाँ दो पार्टी सिस्टम है और चुनावी प्रचार व्यक्तित्व पर केन्द्रित रहता है. यहीं से भाजपा, आर.एस.एस., एच.एस.एस. व सी.आई.ए. के तालमेल का इशारा मिलता है.

पूँजीवादी राष्ट्र भले ही अपने यहाँ लोकतंत्र व प्रजातंत्र की सुदृढ़ता को बल देते रहे हों, परन्तु उनकी मंशा कभी भी विकासशील व अविकसित राष्ट्रों में लोकतंत्र की मजबूती व राजनैतिक स्थिरता की नहीं रही. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान इसका स्पष्ट उदाहरण है, जो स्वतंत्रता के बाद से आज तक पूँजीवादी राष्ट्र अमरीका के चंगुल से आजाद न हो सका, परिणाम स्वरूप वहाँ के नागरिक सदैव लोकतंत्र के खुले माहौल को तरसते रहे. राजनैतिक अस्थिरता के चलते वहाँ की अर्थव्यवस्था कराह रही है, आतंकवाद का दानव फनफना कर मानवता को डँसता जा रहा है.

नरेन्द्र मोदी अपनी कट्टरपंथी विचारधारा व हिटलर शाही रवैये के लिये अपनी पार्टी में पहचाने जाते हैं, उन्होंने गुजरात में चार-चार मुख्यमंत्रियों को गर्त में ढकेल कर सत्ता पर कब्जा कर रखा है. अल्पसंख्यक क्या, किसी की मजाल नहीं कि कोई उनकी मर्जी के विरुद्ध एक शब्द बोल सके. मायावती, जयललिता और ममता सभी उनके हिटलरशाही मिजाज के मामले में पीछे हैं.

नरेन्द्र मोदी ने इस बार भी अपनी ही पार्टी में गदर पैदा कर दिया है. भाजपा के आन्तरिक लोकतंत्र को वह नष्ट कर चुके हैं. आडवाणी, शिवराज सिंह, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवन्त सिंह, शत्रुहन सिन्हा, विनय कटियार, मुख्तार अब्बास नकवी, लालजी टण्डन पार्टी में दुबक से गए हैं. अपनी ही पार्टी में वे बेगाने हो चुके हैं. नेता विरोधी दल की हैसियत रखने वाली नेत्री सुषमा स्वराज व शोला बयान नेत्री उमा भारती की भी बोलती बंद कर दी गई है.

यदि यूँ कहा जाए तो गलत न होगा कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदलने का संकल्प लेकर उतरने वाली भाजपा व उसके प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने शुरूआत अपने घर से ही प्रारम्भ कर दी है. शायद इसीलिये भाजपा से निष्कासित वयोवृद्ध भाजपा नेता जसवन्त सिंह को यह कहना पड़ा कि हम लोगों की भाजपा पुरानी भाजपा थी और अब यह नई भाजपा है.

भाजपा के इस रूप परिवर्तन का पहला प्रभाव एन.डी.ए. के गठबंधन पर पड़ा और उसका प्रमुख सहयोगी दल जनता दल (यू0) का उससे तलाक हो गया. नीतीश कुमार व शरद यादव से डेढ़ दशक पुरानी दोस्ती का अंत हो गया, बदले में दलित नेता रामविलास पासवान का साथ पकड़ कर भाजपा ने अपने कुछ आँसू अवश्य धो डाले.

भाजपा ने लोकसभा चुनाव की घोषणा से बहुत पहले ही मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का न केवल उम्मीदवार घोषित कर दिया बल्कि अपने प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी दल कांग्रेस को भी इसी तर्ज पर चुनाव लड़ने की दावत दी. भाजपा के इस प्लान में मदद कांग्रेस के उन नेताओं ने करनी शुरू कर दी जो राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की बात करते रहे हैं. इससे पूर्व कांग्रेस ने कभी भी न तो अपना मुख्यमंत्री चुनाव से पूर्व घोषित किया और न प्रधानमंत्री. कांग्रेस नेतृत्व भले ही किसी को मुख्यमंत्री नामजद कर देता था परन्तु अन्तिम निर्णय प्रदेश के विधान मण्डल द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के द्वारा किया जाता रहा. यही प्रक्रिया प्रधानमंत्री के चयन में भी की जाती रही है. कांग्रेस हाईकमान ने भाजपा की चाल का पूर्वानुमान करते हुए राहुल गांधी के नाम का एलान बतौर प्रधानमंत्री करने से परहेज कर लिया और कांग्रेस ने पूर्व की परम्परा की भाँति एक नेता के नेतृत्व में चुनावी अभियान चलाने का निर्णय लेकर कुछ हद तक भाजपा के गेम प्लान को आघात पहुँचाया.

भारतीय लोकतंत्र पर भाजपा-आरएसएस का आक्रमण

भारतीय लोकतंत्र पर भाजपा व आर.एस.एस. का यह आक्रमण कोई नया नहीं है इससे पूर्व गृहमंत्री व उपप्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि समय आ गया है कि देश की जनता का विचार इस मुद्दे पर लिया जाए कि देश में प्रधानमंत्री फार्म ऑफ गवर्नेन्स की लोकतांत्रिक व्यवस्था रहना उचित रहेगा. जैसा कि अभी तक चल रहा है या फिर अमरीकी स्टाइल की राष्ट्रपति फार्म ऑफ गवर्नेन्स अधिक प्रभावशाली व उपयोगी रहेगा इसका जब विरोध सभी दलों की ओर से सामने आया तो आडवाणी को अपने कदम वापस खींचने पड़े.

भारतीय संविधान में संघीय स्वरूप को बल दिया गया है, प्रान्तों की राजनैतिक स्वतंत्रता व अधिकार को महत्व दिया गया है. केन्द्र को प्रान्तों की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता व स्वायत्तता पर अंकुश लगाने का अधिकार संविधान में केवल आपातकाल में दिया गया है जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के द्वारा 1975 में आन्तरिक सुरक्षा के नाम पर किया गया था और जिसके दुष्परिणाम सामने आए थे और नतीजे में जो राजनैतिक अस्थिरता देश में उत्पन्न हुई उससे आज भी देश उबर नहीं सका है.

मोदी को आगे रखकर, नवजवानों के ऊपर अपना सारा प्रचार केन्द्रित करके आर.एस.एस. तथा देश व विदेशों में बैठे अपने पूँजीपति मित्रों के निर्देशों पर भाजपा ने जिस राजनैतिक प्रयोग का प्रारम्भ भारतीय राजनीति में किया है वह देश के लोकतंत्र, प्रजातंत्र, धार्मिक सद्भाव, कौमीयकजहती के लिये तो खतरा है ही, साथ ही मानव अधिकारों के ऊपर भी जबरदस्त संकट सिद्ध होगा.

अब प्रश्न उठता है कि देश के शत्रु राष्ट्रों ने यह प्रयोग मोदी के द्वारा क्यों देश में प्रारम्भ किया तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र की सरकार से जितना काम इन शक्तियों को लेना था वह ले लिया गया. एफ.डी.आई. से लेकर परमाणु समझौते पर कांग्रेस सरकार इन विदेशी शक्तियों के इशारे पर काम करती रही, लेकिन कहीं न कहीं कांग्रेस की अपनी मजबूरियाँ हैं जो इन विदेशी पूँजीपतियों के साथ तालमेल आड़े आ रही थीं, इसीलिये इन सरमाएदारों ने एक बार फिर अपने पुराने मित्र भाजपा पर दाँव लगाने को मन बनाया है और उसकी सफलता के लिये प्रचारतंत्र का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है. आर.एस.एस. जिसकी विदेशी यूनिट हिन्द सेवा संघ (एच.एस.एस.) है, को भी पूरी तरह से खुलकर इस बार मैदान में उतार दिया गया है. हिन्दुत्व की बयार के स्थान पर इस बार अनेक झूठे वायदों व सुन्दर सुहाने भविष्य के सपने दिखाने का काम इलेक्ट्रानिक व प्रिन्ट मीडिया से कराया जा रहा है. मोदी सरकार के गुणों का गान माडर्न संगीत से लेकर हर-हर मोदी के धार्मिक नारों का प्रयोग करके किया जा रहा है.

यह समय भारतीय नागरिकों की राजनैतिक परिपक्वता व दक्षता की परीक्षा का है. अभी तक यदि पूँजीवादी व साम्प्रदायिक शक्तियों को देश का नेतृत्व करने में पूर्णतया सफलता नहीं मिल सकी है तो उसका सारा श्रेय भारतीय जनता को जाता है जिनका आम मिजाज शान्तिप्रिय व सामाजिक समरसता का रहा है. उसे प्रदूषित कर दिमागों में ज़हर भरने का काम स्वतंत्रता संग्राम के समय से देश के दुश्मनों द्वारा किया जाता रहा है, परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिल सकी.

कांग्रेस, सपा, बसपा व अन्य प्रान्तीय दलों के भीतर भ्रष्ट साम्प्रदायिक व आपराधिक तत्वों की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता परन्तु इन दलों की विचार धारा को देश के लिये घातक कदापि नहीं कहा जा सकता. भाजपा देश की एकमात्र, एक ऐसी राजनैतिक जमात है जो संकीर्ण धार्मिक विचार धारा, सामन्ती प्रबंध तंत्र एवं पूँजीवाद की पैरोकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निर्देश पर काम करती है. इस प्रकार की विचारधारा इस देश की बहुरंगी सभ्यता तथा गरीब परवर मुल्क के लिये कदापि उचित नहीं ठहरायी जा सकती.

मो. तारिक खान

तारिक खान, जाने माने वेब पत्रकार हैं. वे जनता के सवालों पर कलम चलाते रहते हैं. हस्तक्षेप.कॉम की टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं

Narendra Modi is a threat to the country, democracy and Ganga-Jamuni civilization