देशवासियों पर देश भारी
देशवासियों पर देश भारी
हमारे देश पर मुस्लिम शासकों ने हमले किये, यह ठीक भी है। वे बाहर से आये थे, परन्तु उन राजाओं ने बाहर से आकर इस देश की माटी से अपने को जोड़ा और मृत्यु उपरांत इसी माटी में वे दफ़न भी हो गए।
जिस अखंड भारत का स्वरूप आज हमारे सामने है, उसे बनाने में मुस्लिम राजाओं का बड़ा योगदान रहा है।
सर्व प्रथम शेरशाह सूरी बादशाह ने पेशावर से कलकत्ता तक ग्रांट ट्रंक रोड बनाकर अखंड भारत की कल्पना को साकार किया था।
देश में हिन्दू मुस्लिम संस्कृतियों के मिलन से अनेक नई चीजें सामने आईं। भवन निर्माण की शैली का नायाब नमूना ताजमहल इसका प्रमाण है।
मुगलों के शासन के तौर तरीकों से धार्मिक भेदभाव का उतना प्रमाण नहीं मिलता, जितना संघ के लोग प्रचारित करते हैं। मुस्लिम राजाओं के सात सौ वर्षों के शासन काल में भी हिन्दू अल्पसंख्यक नहीं बने, परन्तु आजादी के 70 वर्षों के शासन में ही संघनिष्ठ हिन्दू अल्पसंख्यक होने की बात करने लगे हैं।
देश में राजाओं की आपसी लड़ाई को धार्मिक रंग दिया जाता है, जबकि ये जंग कभी धार्मिक थी ही नहीं, सबसे बड़ा उदाहरण महाराणा प्रताप व अकबर बादशाह की जंग है। यह पूर्णतया दो राजाओ की जंग थी, जिसे संघ के लोग हिन्दू-मुस्लिम राजाओं की धार्मिक लड़ाई का रूप देते हैं।
इस युद्ध के महत्वपूर्ण तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर अपनी सुविधा अनुसार संघवादी देश के सामने झूठ परोसते हैं।
इस ऐतिहासिक युद्ध को लड़ने वाले अकबर बादशाह व राणा प्रताप के सेनापति उनके विपरीत धर्म के अनुयायी थे।
अकबर बादशाह की सेना के सेनापति आमेर के हिंदू राजा मानसिंह थे जबकि राणा प्रताप की सेनाके सेनापति हकीम खां सूरी पठान जाति के वीर पुरुष थे। जबकि इस निर्णायक युद्ध में राणा प्रताप का सगा भाई अकबर की सेना में शामिल होकर राणा की सेना से युद्ध कर रहा था।
महाराणा प्रताप के द्वारा अपनी सेना का सेनापति मुस्लिम पठान जाति के वीर को बनाने पर मेवाड़ के राजपूत सरदारों ने अपनी आपत्ति जताई।
इस पर भरे दरबार में वीर पठान जाति के हकीम खां ने कसम उठाई कि राणा जी युद्ध भूमि में यह पठान जब तक उसके शरीर में प्राण रहेंगे तब तक उसके हाथ से तलवार नही छूटेगी। यह पठान युद्ध भूमि से जीवित वापस नही आएगा? यदि आएगा तो विजय होकर ही आप को मुह दिखाएगा। इतिहास गवाह है कि युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त कर शहीद होने वाले इस पठान के हाथ से जीवित रहते तलवार नहीं छूटी।
मरने के बाद भी इस पठान के हाथ से तलवार नहीं छुटा पाने के कारण अंत में हकीम खां को तलवार के साथ ही कब्र में दफ़न किया गया। राणा प्रताप के इस वीर सेनापति ने दुनिया से जाने के समय भी राणा प्रताप की वफादारी में उठाई अपनी तलवार नहीं छोड़ी। तलवार के साथ ही कब्र में उन्हें मृत्यु के पश्चात दफनाया गया है। मगर अफ़सोस है कि संघ के लोग राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वफादारी को याद करते हैं और हकीम खां सूरी के बलिदान को भूल जाते हैं।
हकीम खां सूरी इस युद्ध में अपने परिवार सहित शामिल हुए थे। देश के इतिहास के शानदार पन्नों को संघ के लोग पढ़ना नहीं चाहते या फिर उन पर अपनी आँखों में भरी नफरतो की काली स्याही फेरकर आगे बढ़ जाते हैं।
हमारे देश में दूसरा उदाहरण हमारी आजादी की लड़ाई का है इस लड़ाई में देश के हिन्दू मुस्लिम सभी ने अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र को अपना नेता मानकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध का बिगुल फूंका था।
अनेक राजे रजवाड़ों की वफादारी मुगलों व अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कंपनी से दिल्ली दरबार में शासन होने के कारण ही थी।
आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत का साथ देने में मराठे पेशवा के साथ देश के अनेक राजे रजवाड़े शामिल थे।
देश की आजादी के मतवाले रामप्रसाद बिस्मिल एवं अशफाक उल्ला खान उत्तर प्रदेश के फेजाबाद जिले की एक ही जेल की दो बैरकों में बंद रहकर भी गीता और कुरान पढ़ते थे। इनका मजहब कभी दोनों के आजादी प्राप्त के करने के लक्ष्य के बिच आड़े नही आता था।
देश में कांग्रेस पार्टी व उसके नेता देश की जाजादी की लड़ाई में जेल जा रहे थे इसी समय आजादी के पश्चात देश में उच्च जातियों की व देश के राजे रजवाड़ों के शासन की सामंत शाही कैसे चलेगी इस पर विचार मंथन शुरू हो गया। इस विचार मंथन के परिणाम स्वरूप देश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हुई। दुर्भाग्य से देश में शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने संघ की नफरत की विचारधारा को खूब पनपाया।
कांग्रेस पार्टी और संघ के सवर्णवादी कर्मकांडी नेतृत्व का गठजोड़ देश में जब तक कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश विहार में मजबूत थी तब तक चलता रहा।
कांग्रेस पार्टी की राजीव गाँधी सरकार के गृह मंत्री स्वर्गीय सरदार बूटा सिंह द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए देश भर में निकाली गई रामजानकी रथयात्रा को दिल्ली से हरी झंडी दिखाकर उसे देश भर के लिए रवाना करना इसका प्रमाण है।
मस्जिद में मूर्ति स्थापित करना एवं फिर ताला खुलवाना और अंत में उसका विध्वंस करने तक में कांग्रेस नेतृत्व संघ से मिला हुआ था।
बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर का कांग्रेस में रहकर इसी प्रकार की मानसिकता के कांग्रेसी नेताओ से संघर्ष रहा है।
बाबा साहब को अंतत: भेदभाव व उंच-नीच से ग्रसित हिन्दू धर्म का त्याग करना पड़ा। तत्कालीन परिस्थितियों में धर्म त्यागने का बाबा साहब का निर्णय उनके जीवन काल में निर्णायक साबित हुआ।
आज भी संघ भाजपा के लोग हमारे देश मे धर्म आधारित व्यवस्था के पक्षधर बनकर हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रयत्नशील है।
भाजपा के शासन वाले राजस्थान राज्य में राज्य का प्रमुख शासन सचिव दलित व्यक्ति को नही बनाया गया जबकी राज्य के नौकर शाहों में सबसे वरिष्ठ होने के कारण उमराव सालोदिया का चीफ सेकेट्री बनना तय था।
राज्य सरकार के दलित विरोधी रवैये के कारण बाद में सालोदिया ने बाबा साहब की तरह भेदभाव आधारित हिन्दू धर्म का त्याग करके इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। बाबा साहब द्वारा बनाये देश के संविधान ने इस देश के दलितों, पिछडो, अल्पसंख्यको को धार्मिक विध्वंश से बचाने के लिए संरक्षण दिया है।
संघ के लोगों को भारतीय संविधान द्वारा दलित, पिछडो, अल्पसंख्यक वर्ग को दिए विशेष अधिकार काफी खलते हैं। इस कारण समय-समय पर संघ के लोग देश के संविधान पर आरक्षण के बहाने हमले करते रहते हैं।
दुर्भाग्य से जब से देश में नरेन्द्र मोदी की बहुमत की भाजपा सरकार बनी है तब से इस प्रकार के हमले कुछ ज्यादा ही हो रहे हाल ही में जयपुर में हुए लिटरेचर फेस्टिवल में संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वेध ने आरंक्षण समाप्त करने की संघ की चिर परिचित मांग दोहरा दी। इससे पूर्व संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी बिहार चुनाव से पूर्व आरक्षण पर संघ की सोच बयान कर चुके हैं।
हमारे देश में हर वर्ष किसी ना किसी राज्य में चुनाव होते रहते है। चुनावो में वोटो के ध्रुवीकरण के लिए संघ भाजपा वाले अनर्गल बयान देकर देश की जनता को आशंकाओं में जीने के लिए मजबूर कर देते हैं।
देश के नागरिकों में भय पैदा करके उन्हें आशंकित करना कौन सी से राष्ट्र भक्ति है। सत्ता प्राप्ति के लिए संघ भाजपा वाले धार्मिक जातीय मुद्दों को हवा देते रहते हैं। इसके पीछे उनका क्या मकसद है संघ के देश प्रेमी राष्ट्रवादी आज तक स्पष्ट नहीं कर पाए हैं। 30 करोड़ मुस्लिमों को क्या संघ के लोग इस देश में सामूहिक नरसंहार के बल पर समाप्त करेंगे या फिर उन्हें दुनिया के किसी अन्य देश में भेज देंगे?
क्या आज के इस सेटेलाईट के युग में जब दुनिया बहुत छोटी हो गयी है तब संघ भाजपा वालो के लिए यह संभव है?
इन सवालों के उत्तर संघ से कभी नहीं मिलते हैं। देश की फिजां में लगातार विवादित वोल बोलकर जहर फैलाना ही इनका मकसद है। संघ की विचारधारा की सरकार इस समय देश व देश के राज्यों में बनी हुई है।
अपनी सरकारों पर दबाव बनाकर संघ आरक्षण व अल्पसंख्यक वर्ग के विरोध में क़ानून बनाकर हमेशा के लिए इन से छुटकारा पाने के लिए क्यों कोई निर्णय नहीं करवाता है?
संघ का घर वापसी अभियान किसके लिए होना चाहिए? इसकी शुरुआत सर्वप्रथम मुख्तार नकवी, शाहनवाज, नजमा हैतुल्ला एवं एम. जे. अकबर जो आपकी सत्ता प्राप्ति में सहायक हैं, उन से होनी चाहिए।
विश्व को दिखाने के लिए ये आप की पार्टी का चेहरा-मोहरा बन जाते है ये आपके लिए आदरणीय है। इस देश का गरीब हिन्दू मुस्लिम जो मजदूर है उसका धर्म मजदूरी के लिए हाथ फैलाना है। मजदूर हिन्दू हो या मुस्लिम वह सभी समाज के लोगों के सामने मजदूरी के लिए हाथ फैलाता है।
इसी प्रकार व्यापारी व्यापार करने के लिए हिन्दू मुस्लिम नहीं देखता है। उचित कीमत देख कर व्यापर करता है। इनके जीवन में नफरत का जहर घोलना कहाँ तक उचित है ?
यहाँ बड़ा सवाल यह है कि देश की जनता को वोट देने के लिए उपयुक्त पात्र के बजाए धर्म जाति देखकर वोट देने की सीख देने वाले संघ भाजपा के नेता देश की जनता से दोगलापन नहीं करते हैं ? संघ भाजपा वालों का दोगलापन देश में अनेक अवसरों पर सामने आता रहा है।
संघ की भारत माता के हाथ में भगवा ध्वज है और संघ के लोग देश में तिरंगा फहराने के लिए हुबली में आन्दोलन करते हैं। भारत माता धरती माता के ऊपर रहने वाले असहाय निर्बल लोगो को भुलाकर भी क्या राष्ट्रवाद होता है ?
संघ के राष्ट्रवाद में सेवा का दायरा भी संकुचित है।
जाति धर्म के आधार पर राष्ट्रवासियों से भेदभाव करने वालो की राष्ट्रीयता व राष्ट्रवाद में देशवासियों के लिए बड़े धोखे छिपे हैं। निहत्थे अख़लाक़ को मारना, रोहित वेमुला को मरने के लिए विवश करना, जे. एन. यू. में छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया पर झूठ, छल, प्रपंच करके राष्ट्रद्रोह का मुकदमा लगाना, होनहार छात्र नजीब की माँ के आंसुओं को न्याय से महरूम करना, सामाजिक न्याय का रास्ता बने आरक्षण को समाप्त करना भी कोई राष्ट्रवाद है।
देश के पांच राज्यों के चुनावो में देश की जनता को इन सभी मुद्दों पर विचार करके वोट देना चाहिए।
लोकतंत्र में असहमति को विरोधी मानकर कुचलना, नागरिकों में भय का संचार करना और नवाज शरीफ की नातिन की शादी में बिन बुलाये जाना, देशवासियों को अपनी जमा पूंजी प्राप्त करने के लिए भी लाईनों में लगाकर रुलाना क्या यही सब संघ भाजपा का राष्ट्रवाद है ?


