दिलीप मंडल

बरमेश्वर सिंह मुखिया कुख्यात रणवीर सेना का सरगना है। उनके कारनामे तो कई है लेकिन एक का ब्यौरा बीबीसी ने इस तरह लिखा- भोजपुर के बथानी तोला गाँव पर 1996 में प्रतिबंधित संगठन रणवीर सेना के 60 से अधिक सदस्यों ने हमला किया था. मारे गए लोगों में अनेक महिलाएँ और बच्चे थे. पुलिस के अनुसार इस मामले में 60 से अधिक लोगों के ख़िलाफ़ आरोप तय हुए थे. इस घटना में जीवित बच गए एक दलित किशन चौधरी ने पूरी घटना पुलिस के सामने बयान की थी. इसके बाद रणवीर सेना के प्रमुख बरमेश्वर सिंह के ख़िलाफ़ आरोप तय हुए थे और उन्हें भगौड़ा करार दिया गया था. इसके बाद उन्हें गिरफ़्तार किया गया और वे आजकल जेल में बंद हैं http://www.bbc.co.uk/hindi/ind​ia/2010/05/100512_bhojpur_dali​ts_as.shtml इस बारे में हिंदुस्तान टाइम्स 8 जुलाई 2011को लिखता है- He was arrested in 2002 from Patna. He is believed to have masterminded the killings of at least 300 Dalits and backward caste people since forming the group in 1994. http://www.hindustantimes.com/​Ranvir-Sena-chief-gets-bail/Ar​ticle1-718922.aspx लेकिन क्या कोई अखबार इस शख्स को "जी" कहकर संबोधित कर सकता है। क्या अखबार उसे आदर दे सकते हैं? बिहार में सबसे ज्यादा बिकने वाले दो अखबारों-दैनिक हिंदुस्तान और दैनिक जागरण में तो स्पष्ट तौर पर बरमेश्वर मुखिया को आदरणीय माना गया है। हिंदुस्तान की खबर का शीर्षक है-जेल से छूटे रणवीर सेना के प्रमुख बरमेश्वर मुखिया। अगर किसी और खूंखार अभियुक्त के बारे में लिखा जाता तो इस शीर्षक में छूटे की जगह "छूटा" और के प्रमुख की जगह "का सरगना" होता। शीर्षक ऐसे लिखा जाता - जेल से छूटा रणवीर सेना का प्रमुख बरमेश्वर मुखिया। खैर खबर इस तरह लिखी गई है- "नरसंहार हत्या और कई और मामलों में अभियुक्त रणवीर सेना प्रमुख बरमेश्वर मुखिया 9 वर्षों बाद जमानत पर शुक्रवार को जेल से बाहर निकले। ...इसके बाद से ही वे जेल में थे। मुखिया के खिलाफ भोजपुर में 22 मामले दर्ज हैं। 16 मामलों में उनकी रिहाई हो चुकी है। अन्य 6 मामलों में से पांच में मुखिया पहले से ही जमानत पर थे।" अब इस खबर में से यह टुकड़ा हटा दीजिए "नरसंहार हत्या और कई और मामलों में अभियुक्त।"इसके बाद " रणवीर सेना प्रमुख बरमेश्वर मुखिया" की जगह किसी स्वतंत्रता सेनानी का नाम लिख दीजिए। आपको खबर की भाषा में कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं होगी। इसे कहते हैं भाषा के जरिए आदर देना। स्वतंत्रता संग्राम की वजह से जेल गया कोई व्यक्ति जब जेल से बाहर आए, तो उसके लिए जो क्रिया पर और कारक चिन्हों का भाषा में प्रयोग होता, बिल्कुल उसी तरह की भाषा यहां देखी जा सकती है। यह खबर इस तरह तरह लिखी जानी चाहिए- "नरसंहार हत्या और कई और मामलों में अभियुक्त रणवीर सेना प्रमुख बरमेश्वर मुखिया 9 वर्षों बाद जमानत पर शुक्रवार को जेल से बाहर निकला(निकले)। ...इसके बाद से ही वह (वे) जेल में था (थे)। मुखिया के खिलाफ भोजपुर में 22 मामले दर्ज हैं। 16 मामलों में उसकी (उनकी) रिहाई हो चुकी है। अन्य 6 मामलों में से पांच में मुखिया पहले से ही जमानत पर था (थे)।" और हद तो दैनिक जागरण ने कर दी है। इसका तो विश्लेषण करने की भी जरूरत नहीं है। इस खबर की भाषा को आपको जरूर देखना चाहिए। खबर 9 जुलाई को पटना संस्करण के पेज-2 पर छपी है। नीचे आप खबर की तस्वीर देख सकते हैं। शीर्षक है - शपथ लेना तो सरल पर निभाना कठिन उपशीर्षक है- ढेर सारे कंट्रास्ट जीते रहे हैं मुखिया जी; की राष्ट्र, धर्म, वेद, गांधी से लेकर सहूलियत की गर्दन व बम-गोली की बातें लेखक हैं - मधुरेश, खबर पढ़िए: पटना। शपथ लेना तो सरल पर निभाना कठिन; साधना का पथ कठिन, मद भुलाना कठिन ..। यह बरमेश्र्वर सिंह मुखिया की कविता की एक लाइन है। और यह अभी की स्थिति में उन पर पूरी तरह फिट है। वे जो सोच, तय कर आगे बढ़े थे-पूरा हुआ? उनकी इस लाइन में वस्तुत: उनकी विवशता ही है। च
लिये, कम से कम यह तो पता चला कि मुखिया जी कवि भी हैं। असल में उन्होंने खुद को लगभग सभी रूपों में पेश किया। दरअसल, वे इकट्ठे ढेर सारे कंट्रास्ट जीते रहे हैं। दुबली-पतली काया व गंवई पहरावे वाले इस बुजुर्ग को देख-सुन कोई कह ही नहीं सकता कि यही मौत का काफिला कहलाने वाली रणवीर सेना के कथित सुप्रीमो रहे हैं। उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर सुप्रीमो से इंकार रहा, वे इसे नकारते रहे। आज उन्होंने सामाजिक जीवन जीने की बात कही। तब, उनका दूसरा चेहरा था। एक मौके पर आयी उनकी राय सुनिये- दुश्मनों को एकदम से खत्म कर देने के लिए महिलाओं और बच्चों की हत्या जरूरी है। ऐसा करने से कोख और भविष्य खत्म हो जाता है। और इसी दौरान वे धर्म-अध्यात्म पर लंबा बोले। वे महात्मा गांधी और उनकी अहिंसा पर बोलते रहे, तो साढ़े तीन सौ से ज्यादा हत्याओं के आरोपी भी बने। उनके अनुसार अहिंसा में उनका भरोसा है पर यह वहीं तक सीमित है, जहां शोषण न हो। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी जुबानी देशभक्ति खूब दिखी। राजनेता और प्रशासन के पुरजोर विरोधी, तो न्यायालय पर अद्भुत आस्था। 26 मुकदमों में से 16 में बरी हो चुके हैं। वे गोला-बारूद के इंतजाम के साथ ग्रामीण उत्थान के सूत्र भी गिनाते रहे-योजनाओं का ग्रामीणीकरण, गांवों का औद्योगिकीकरण, उद्योगों का श्रमीकरण, श्रमों का पूंजीकरण, पूंजी का विकेंद्रीकरण। कहा-मैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मानव एकात्मवाद से प्रेरित हूं। उनकी लाल डायरी में भगवान परशुराम की यह टिप्पणी भी दर्ज है-अनीति ही वस्तुत: हिंसा है। .. शांति की स्थापना के लिए प्रयुक्त अशांति सराहनीय है। .. धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए यही क्रम अपनाया भी जाता रहा है। रणवीर सेना के टपकते खून वाले मास्ट (पैड) से उनका मिजाज परिलक्षित है। इसमें शंख फूंकते धनुर्धारी वाले लोगो पर लिखा है-विद्रोह, बलिदान, बदलाव और युद्धाय कृत नि:य:। सूत्र वाक्य है-विपरीत परिस्थितियों में भी जो अपना ईमान, साहस और धैर्य बनाये रखता है, वही सच्चा शूरवीर है .. शास्त्र ने वैदिकी हिंसा को हिंसा नहीं माना है। उन्होंने अपनी मनोनुकूल व्यवस्था के लिए बाकायदा समानांतर व्यवस्था बनानी शुरू कर दी थी या ऐसा दावा किया था। अखंड भारतवर्षीय रणवीर सेना भी बनी। स्क्वायड, एरिया, जोनल कमांडर, प्रवक्ता, खजांची, कारा एवं मुकदमा संचालन प्रभारी, कुल 13 मुख्य उद्देश्य और इसके बूते धर्म की संस्थापना करते हुए चरित्र प्रधान समाज का निर्माण .., अब सब हवा में है। वे हिमगिरि प्रदेश के आकांक्षी रहे। अयोध्या-मथुरा-काशी की मुक्ति की बात कही। पर सेना के भटकाव व आपसी विवाद को नहीं रोक पाये। शपथ लेना तो सरल पर निभाना कठिन .. बिहार के मीडिया की सामाजिक बनावट और न्यूजरूम की जातीय संरचना पर अब अलग से बात करने की जरूरत नहीं है।