धर्म की चेतना खारिज करके धर्मनिरपेक्षता की वकालत की जमीन भारत में फिलहाल नहीं
धर्म की चेतना खारिज करके धर्मनिरपेक्षता की वकालत की जमीन भारत में फिलहाल नहीं
राहुल गांधी का मंदिर जाना और बुद्धिजीवियों का अफसोस।
बहुत से प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को ये खराब लगा है कि राहुल गांधी गुजरात चुनाव प्रचार के लिए मंदिरों के चक्कर काट रहे हैं। कुछ लोग इसे एक बात का प्रमाण भी मान रहे हैं कि देखिये साहेब, हम तो पहले ही कहते रहे हैं कि भाजपा कांग्रेस एक ही टाइप की पार्टियां हैं।
कुछ बातें हैं, जो कहना जरूरी है।
- जब हम राजनीतिक दलों की बात करें तो हमें उनकी मूल सोच या विचारधारा पर ही फोकस करना चाहिए। और कोई दूसरा विकल्प बुद्धिजीविता के पास नहीं हो सकता जिस पर हम राजनीतिक समझ बना सकें।
जैसे यदि भाजपा के नेता अभी मस्जिदों मजारों के चक्कर लगाने लगे तो वो मुस्लिम परस्त नहीं मान लिए जाएंगे, उसी तरह यदि कांग्रेस के नेता मंदिर गए हैं तो वे हिन्दू परस्त हो ही गए,यह कहना गलत है।
2. विचारधारा और उस विचारधरा को लोगों तक पहुंचाने और जनता का विश्वास अर्जित करने के लिए रणनीति की आवश्यकता होती है। बिना रणनीति के कोई भी विचारधारा मात्र अकैडमिक कोर्स है जिसका कोई प्रभाव नहीं होता। राजनीति के लिए ये बात सोलह आने सच है।
3. राजनीति के सबसे निर्णायक काम जनता की workable mass poiltical cultural conaciousness से co relate करना होता है। केवल आर्थिक मुद्दों के आधार पर यह connection नहीं बन सकता। इसके लिए काफी जटिल पॉलिटिकल डिस्कोर्स निर्मित करना होता है।
4. प्रायः बुद्धिजीवियों के तर्क में यह अंतर्निहित होता है कि हिंदुओं के धर्मनिर्पेक्षीकरण की जरूरत नहीं है और उन्हें मॉडर्न लिबरल रेशनलिस्ट तरीको से ही जोड़ा जा सकता है। यह तथ्यतः गलत है। असलियत है कि हिंदुओं का एक बड़ा तबका साम्प्रदायिकता की चपेट में है और उससे सम्वाद बना पाना निरतंर कठिन होता जा रहा है। भाजपा ने कांग्रेस को मूलतः हिन्दू विरोधी दल घोषित किया हुआ है और बहुत से लोग इस पर यकीन भी करते हैं। जो हमारे सामने available mass consciousness है उससे दूरी maintain करके यह फासीवादी उभार नहीं रोक जा सकता। धर्म की व्याख्या जरूरी है। धर्म की चेतना को खारिज करके धर्मनिरपेक्षता की वकालत की जा सके यह जमीन भारत में फिलहाल नहीं है।
इस पोस्ट का यह तात्पर्य नहीं कि मंदिर जाके और खुद को सॉफ्ट हिन्दू घोषित करके भाजपा से लड़ा जा सकता है या नहीं, लेकिन एक समग्रतावादी राजनीतिक डिस्कोर्स में धर्म को लतिया के कुछ नहीं हासिल हो सकता।


