अनेक लोग हैं जो कार्ल मार्क्स के धर्म संबंधी विचारों को विकृत रूप में जानते और व्याख्यायित करते हैं। वे मार्क्स की धर्म संबंधी मान्यताओं को गलत देखते हैं फिर मार्क्सवादियों पर हमला आंरंभ कर देते हैं। सवाल यह है कि क्या मार्क्स की धर्म संबंधी मान्यताओं से धर्म की कोई सही समझ बनती है ?

What Marx Wrote About Religion

मार्क्स ने धर्म के बारे में लिखा-

"धर्म, संसार का सामान्य सिद्धान्त है, वह इसका सर्वज्ञान गुटका है, इसकी लोकप्रचलित तर्कपद्धति है, इसका आध्यात्मिक कीर्ति शिखर है, इसकी उमंग है, इसकी नैतिक स्वीकृति है, इसका भव्य अभिनंदन है, यह संतोष और औचित्य स्थापना का सार्वभौमिक स्रोत है। यह मानवीय सारतत्व की विलक्षण अनुभूति है, यद्यपि इसका मानवीय सारतत्व में सच्ची वास्तविकता निहित नहीं है। अतः धर्म के विरूद्ध संघर्ष का मतलब है, उस संसार के विरूद्ध किया जाने वाला परोक्ष संघर्ष, धर्म जिसकी आध्यात्मिक सुरभि है।"

मार्क्स ने धर्म के बारे में लिखा है-

"अधार्मिक आलोचना का आधार हैः मनुष्य धर्म की रचना करता है, धर्म मनुष्य की रचना नहीं करता है। धर्म मनुष्य की स्व-चेतनता और स्व-प्रतिष्ठा है, ऐसे मनुष्य की जो अभी तक अपने आपको जान नहीं पाया है, या फिर फिर से भटक गया है। लेकिन मनुष्य जिसने इस संसार से बाहर पड़ाव डाल रखा हो, कोई अमूर्त प्रणी नहीं है। मनुष्य तो मनुष्य का संसार,राज्य और समाज है।"

कार्ल मार्क्स ने अपनी धर्म संबंधी मान्यताओं का विकास हेगेल की न्याय संबंधी मान्यताओं के मूल्यांकन के क्रम में किया था।

मार्क्स ने लिखा-

"धार्मिक व्यथा, एक साथ वास्तविक व्यथा की अभिव्यक्ति तथा वास्तविक व्यथा का प्रतिवाद दोनों है। धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह है, एक हृदयहीन संसार का हृदय है, ठीक उसी तरह जैसे वह भावविहीन परिस्थितियों की भावना है। वह जनता के लिए अफीम है। जनता के प्रातिभासिक सुख के रूप में धर्म के उन्मूलन का अर्थ है उसके वास्तविक सुख की माँग करना। मौजूदा हालात के संबंध में भ्रमों का परित्याग करने की माँग उन हालात के परित्याग की माँग करती है जिनके लिए भ्रम जरूरी बन जाते हैं। अतः, धर्म की आलोचना भ्रूण रूप में आँसुओं की घाटी, धर्म जिसका प्रभामंडल है, की आलोचना है।"

मार्क्स-एगेल्स का मानना था- आदर्श की कसौटी आर्थिक वास्तविकता होती है।

मार्क्स-एंगेल्स ने इसी आदर्श को सामने रखकर अपना व्यावहारिक कार्य किया। यही वजह है कि उन्होंने पूंजीपतियों की सेवा करने की बजाय उत्पादक शक्तियों की आत्मचेतना को विकसित करने का काम किया।

मार्क्स-एंगेल्स का एक साझा आदर्श था- आवश्यकता को स्वतंत्रता के अधीन बनाने,अंधी आर्थिक शक्तियों को मानव बुद्धि के अधीन बनाने का आदर्श। आप क्या सोचते हैं ?

जगदीश्वर चतुर्वेदी

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